मैं कौन हूँ?

May 1942

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(पं॰ रामकृष्ण शर्मा, जौन, जयपुर)

मैं संसार में एक रसायन के समान हूँ, मैं ईश्वर की तरह तमाम संसार में व्याप्त हूँ, यहाँ तक कि मैं एक दूसरा ईश्वर ही हूँ, संसार का कोई भी क्षेत्र मुझसे खाली नहीं है, यथा पारिवारिक जीवन, सामाजिकता, देश-सेवा, आध्यात्मिक इन सब में मेरी ही सत्ता है। बतलाइये पाठकगण मैं ऐसा कौन हूं?

मैं संसार की तमाम सूक्ष्म व स्थूल वस्तुओं में व्याप्त हूँ। संसार की दैनिक क्रियाशीलता मुझ ही पर निर्भर है, प्रत्येक प्राणी के प्रयोग की प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व मेरे द्वारा ही है, उनके प्रत्येक काम में किसी न किसी तरह अवश्य छिपा हुआ हूँ।

सृष्टि का सृष्टा मैं ही हूँ, मेरे ही द्वारा संसार की उत्पत्ति व पालन होता है, लौकिक व पारलौकिक तमाम कार्यों में मेरी सत्ता व्याप्त है मैं सृष्टि के आदि से अन्त तक रहता हूँ। ऐसा अनन्त, अगोचर, अविनाशी, सर्वगुण सम्पन्न, मैं कौन हूँ?

ईश्वर के महान भक्तों, सेवकों, उपासकों, को उनके इष्ट लक्ष्य से मिलाने वाला मैं ही हूँ, मेरी ही प्रेरणा से भगवान को गरुड़ छोड़कर गजेन्द्र मोक्ष के लिए पैदल भागना पड़ा था। उस समय स्वर्ग में भगवान का सिंहासन मैंने ही हिलाया था।

जो मुझे हमेशा अपने साथ रखते हैं, उनको संसार में मैं किसी भी तरह का दुःख नहीं पहुँचने देता, लेकिन जो मुझे नहीं भजते उनको स्वप्न में भी सुख नहीं मिल सकता। यह मेरी ही शक्ति का कारण है। बतलाइये ऐसी शक्ति युक्त मैं कौन हूँ?

संसार के सैकड़ों, हजारों, लाखों वीर पुरुष क्यों अपने देश पर अपनी जान गंवा देते हैं, क्यों वर्षों तक जेलों की भयंकर यातनाएँ भोगते हैं, क्यों अपने ऐश व आराम को लाखों वीर लात मार कर गोलियों की बौछार के सामने अपना सीना तानकर खड़े हो जाते हैं, यह सब में ही महान प्रेरणा व आकर्षण का कारण है।

संसार में पारिवारिक जीवन बिताने वाले मेरे ही द्वारा स्वर्ग के समान सुख का उपभोग करते हैं, और जब मेरा तिरस्कार करते हैं तो वही स्वर्ग−सुख नारकीय यातनाओं में परिवर्तित हो जाता है।

मेरे अन्दर अविरल अमृत का स्रोत रहता है, दो व्यक्ति यों के मन-मुटाव को मैं मेरे क्षण भर के उपदेश से मिटाकर उनको एक दूसरे का घनिष्ठ मित्र बना देता हूँ यह सब मेरे ही चमत्कार हैं, कहिये विचारिये मैं ऐसा कौन हूँ?

मेरी हाट विचित्र ढंग की है, मेरा भिक्षुक एक महान आशा के पास में बंधकर मेरी प्राप्ति के लिए पैरों पड़ता है; प्रार्थना करता है, शतशः प्रार्थनायें करता है। यह सब किसलिए? केवल मेरी प्राप्ति के लिए लेकिन ओह! कितनी कठिन है मेरी साधना। मेरी साधना के साधकों पर दुनिया की शक्ति ठिठक जाती है लेकिन जब तक तुम पुजारी न बनोगे, लाख यत्न करने पर भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकते, कहिए ऐसी हाट वाला मैं कौन हूँ?

दो प्रेमियों के विछोह पर उनको रुलाने वाला तथा मिलन पर प्रफुल्लित करने वाला मैं ही हूँ।

इतिहास पर दृष्टि डालिये सब कहीं, मैं ओत-प्रोत नजर आऊँगा। प्राचीन पूर्व पुरुषों के जीवन पर निगाह डालिए शबरी को दिनों तक रास्ता साफ कराने वाला, रामचन्द्र जी को झूँठे बेर खिलाने वाला, कृष्ण भगवान को बासी साग और सूखे चावल खिलाने वाला सीता और लक्ष्मण जी को रामचन्द्र के साथ करने वाला, गोपियों की पागल सी हालत कोई करने वाला, कहाँ तक लिखा जाय जिधर नहीं उधर मेरी ही माया है, इन सब का आदिकारण मैं ही हूँ। विचारिये पाठकगण ऐसा मस्त बनाने वाला मैं कौन हूँ?

वर्तमान में संसार के अन्दर ईश्वर के अमर पुत्र मानव का जो भयंकर संहार हों रहा है, यह मेरी उपेक्षा करने का फल है अब भी मैं डंके की चोट कहता हूँ कि अगर अब भी संसार की वह शक्तियाँ जिनके कारण से संसार रौरव नरक की यातनायें भोग रहा है, मुझे अपना लें, तो वह भयंकर संकट जो कालान्तर में आने वाला है न आ सकेगा और इससे मानव सुख की नींद सो सकेगा कहिए पाठकगण ऐसी-2 पंक्तियों पर आतंक रखने वाला मैं कौन हूँ?

मेरी ही प्रेरणा से प्रेरित होकर यह अंक आपकी सेवा में अवतरित हुआ है। पाठकगण अब तो आप बतलाइये कि ऐसा ढाई अक्षर का शब्द में कौन हूँ?

उत्तर- “प्रेम”


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