Quotation

May 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

वह दिन धन्य है, जिस दिन एक आदमी यह अनुभव करता है कि वह स्वयं ही अपना रक्षक और भक्षक है, स्वयं उसमें ही उसके समस्त दुःखों और ज्ञानाभाव के कारण मौजूद हैं और स्वयं उसके अपने ही भीतर समस्त शान्ति तथा प्रकाश के स्रोत विद्यमान है।

*****

अपनी मानसिक अवस्थाओं को वश में करो, उत्तेजनाओं का शासन अस्वीकार कर दो।

*****

लगातार क्षमा माँगना या क्षमा माँगने जैसी सूरत बनाये रखना, रूढ़ियों और प्रथाओं का प्रभुत्व तथा शक्ति को स्वीकार करना है। इससे यह भी प्रकट होता है कि क्षमा-प्रार्थी आदमी भी समाज का गुलाम और रूढ़ियों का दास है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles