प्रज्ञा पुरश्चरण का लक्ष्य और स्वरूप

August 1983

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

व्यक्ति और समाज के सम्मुख बढ़ती विपन्नताओं और विभीषिकाओं से सभी परिचित हैं। इसका कारण मनुष्य द्वारा अपनाई गई अवाँछनीयतायें ही प्रधान कारण हैं। इससे प्रत्यक्ष समस्याएं विपत्तियाँ उत्पन्न होती हैं। इतना ही नहीं उनसे वायुमंडल की तरह अदृश्य वातावरण भी विषाक्त होता है। परिमार्जन-परिष्कार मात्र प्रत्यक्ष का ही नहीं परोक्ष का भी होना चाहिए। अदृश्य जगत से दृश्य परिकर प्रभावित होता है। प्रत्यक्ष और परोक्ष की सघनता अविच्छिन्नता समझने वाले जानते हैं कि महती और व्यापक समस्याओं के समाधान में प्रत्यक्ष सुधार उपक्रमों की तरह ही अदृश्य के अनुकूलन में आध्यात्मिक स्तर के सामूहिक उपचारों की धर्मानुष्ठानों के रूप में आवश्यकता पड़ती है।

युग सन्धि की इस विषम बेला में नियन्ता की गलाई-ढलाई प्रक्रिया तीव्र से तीव्रतम होती जा रही है। उसके साथ मानवी प्रयत्नों का भी सन्तुलन बैठना चाहिए। इस हेतु इन दिनों प्रज्ञा परिजनों द्वारा एक विशेष धर्मानुष्ठान आरम्भ किया गया है। नाम दिया गया है- प्रज्ञा पुरश्चरण।

प्रज्ञा पुरश्चरण के चार चरण हैं।

1. प्रातः सुर्योदय के समय पाँच मिनट मौन मानसिक गायत्री जप- प्रकाश का ध्यान- उस कृत्य का प्रतिफल- अदृश्य अनुकूल के लिए अन्तरिक्ष में बिखेरने के संकल्प के रूप में। इसे जो जिस भी स्थिति में जहाँ भी हो वहाँ कर सकता है। उसमें स्नान जैसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

2. महीने में एक बार किसी भी तिथि का क्रम बनाकर प्रज्ञा अग्निहोत्र- पाँच दीपक- पाँच-पाँच अगरबत्तियों के पाँच गुच्छक- चौबीस बार गायत्री मन्त्रों का सामूहिक पुरश्चरण। उपस्थित लोगों के मस्तिष्क पर चन्दन का तिलक। इस कृत्य की पन्द्रह मिनट में पूर्णता। 3. प्रज्ञा उद्बोधन- अग्निहोत्र के उपरान्त पन्द्रह मिनट युग संगीत एक घंटा प्रज्ञा प्रवचन। इसके लिए प्रज्ञा अभियान के किन्हीं चुने हुये लेखों को भावाभिव्यक्ति के साथ सुनाया जाना। इसमें एक घंटा।

इस प्रकार पंद्रह मिनट में अग्निहोत्र- पंद्रह मिनट युग संगीत और एक घंटा प्रज्ञा प्रवचन डेढ़ घंटे का समय मासिक आयोजन में लगता है। हर काम समय पर आरम्भ किया जाय।

प्रज्ञा पुरश्चरण का केन्द्र स्वाध्याय मंडल के रूप में स्थापित किया जाय। यह बिना इमारत के प्रज्ञा संस्थान छोटे रूप में उसी उद्देश्य की पूर्ति करते हैं, जिसका कि गायत्री शक्ति पीठें- प्रज्ञा पीठें- बड़े रूप में सम्पन्न कर रही हैं। प्रज्ञा युग के अवतरण में इन केन्द्र संस्थानों की महती भूमिका सुनिश्चित है।

प्रत्येक प्रज्ञा परिजन को इस नितान्त सरल किन्तु अतीव महत्वपूर्ण धर्मानुष्ठान में भागीदार बनने के लिए कहा गया है। और आशा-उपेक्षा की गयी है कि वे अपने संपर्क क्षेत्र में न्यूनतम पाँच और इसके भागीदार बनायें।

वर्तमान 24 लाख प्रज्ञा परिजनों के द्वारा किये गये इस अभूतपूर्व महापुरश्चरण में प्रतिदिन 24 करोड़ जप सम्पन्न होगा। लक्ष्य इसे इसी वर्ष पाँच गुना बढ़ा देने का है ताकि हर दिन 120 करोड़ जप नित्य नियमित रूप से सम्पन्न होता रहे। साथ ही उसी अनुपात में उसका अपेक्षित अग्निहोत्र भी साथ-साथ चलता रहे। इस शुभारम्भ के साथ-साथ युग परिवर्तन के लिए आवश्यक अनेकानेक महत्वपूर्ण दृश्य और अदृश्य उपक्रम सम्मिलित हैं। जिनकी कि चर्चा इस अंक में की गयी है।

वर्ष-46 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक-8


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles