“बीसवीं सदी के बढ़ते औद्योगीकरण और नाभिकीय परीक्षणों से जो विष की मात्रा वातावरण में बढ़ी है, उससे आनुवाँशिक रोगों, शारीरिक और मानसिक व्याधियों की सारे विश्व में बाढ़ आ गयी है। अपाहिजों और अपंगों की नयी पीढ़ी तैयार हो रही है जो सन् 2000 के बाद विश्व की 6 अरब जनसंख्या की दो तिहाई होगी। यह मत है- क्रीस्टोफर नारवुड का जिन्होंने विकिरण परीक्षणों पर एक पुस्तक लिखी है- “एट हाइएस्ट रिस्क”। उन्होंने पाया कि अमेरिका के शहरी क्षेत्रों में विकिरण की मात्रा दस से पन्द्रह करोड़ गुना अधिक सघन है। इससे संव्याप्त विषाक्तता ने सारे विश्व के पर्यावरण सन्तुलन को बिगाड़ दिया है।