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August 1983

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चरित्र की रक्षा प्रयत्नपूर्वक करनी चाहिए। धन तो आता है और चला जाता है। धन से क्षीण मनुष्य विनष्ट नहीं होता, परन्तु चरित्र से क्षीण मनुष्य का पूर्णतया विनाश ही हो जाता है।

करना क्या होगा? यही वह धुरी है जहाँ सभी को संघबद्ध हो चिन्तन करना है। जब-जब ऐसी स्थिति आयी है, गिने-चुने व्यक्तियों के पुरुषार्थ ने ही महाप्रलय को टाला है। दिव्य दृष्टि सम्पन्न महामनीषी गणों का भी यही कथन है कि आगामी कुछ वर्षों में अवाँछनीयता विस्तार के साथ ही सत्प्रवृत्ति संवर्धन वाली गतिविधियाँ भी जन्म लेंगी। प्रज्ञा परिजनों के अन्तर इसके बीजाँकुर विद्यमान हैं। जिस गति से विभीषिकाओं के घटाटोप बादल उमड़े हैं, उसी अनुपात में जनमानस भी सारे विश्व में जागृत हुआ है। इस संघशक्ति के सामूहिक प्रयास प्रकारान्तर से अवतार प्रक्रिया के अभिन्न अंग के रूप में दैवी भूमिका निभा सकेंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं। आसन्न परिस्थितियों से घबराने की नहीं, अपितु उनसे जूझने उन्हें जन्म देने वाली दुष्प्रवृत्ति को मिटाने की आवश्यकता है। प्रज्ञा पुरश्चरण इसी निमित्त अगले दिनों करोड़ों परिजनों द्वारा सम्पन्न किया जाएगा। इसकी परिणति वैसी ही सुखद होगी, जिसकी कि सम्भावना व्यक्त की जाती रही है।


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