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August 1983

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जीयन्ताँ दुर्जया देहे रिपवश्चक्षुरादयः। जितेषु ननु लोकोऽयुँ तेषु कृत्स्नस्त्वयाजितः॥

अपने ही शरीर में रहने वाले चक्षु, आदि दुर्जय शत्रुओं को पहले जीतना चाहिए। उनके जीत लेने पर ऐसा समझो कि मानो सारा संसार तुमने जीत लिया।


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