बसन्त-पंचमी अपने परिवार का सबसे बड़ा पुण्यपर्व है। अपनी सारी गतिविधियों का मूल-स्रोत-जन्म-दिन इसी पर्व को कहना चाहिये। 1. हमें पथ-प्रदर्शक के अनुग्रह की उपलब्धि उसी दिन से हुई और उसी दिन से हमारी गायत्री तप श्रृंखलाओं का शुभारम्भ हुआ। इसलिए हमारे ज्ञान जन्म का यही दिन हैं। जो हमारा जन्म-दिन पूछते हैं, उन्हें बसंत-पंचमी ही बताते हैं। 2. अखंड-ज्योति पत्रिका का आरम्भ इसी पर्व से हुआ। यह हमारे जनसंपर्क, प्रसार तथा संगठन कार्य के श्रीगणेश का शुभ दिन हैं। 3. गायत्री परिवार का जन्म बसन्त-पंचमी को हुआ और वह फला−फूला 24 लाख गायत्री उपासकों तथा 4 हजार देश-विदेश में फैली हुई शाखाओं में फैले हुए संसार भर में आध्यात्मिकता का प्रसार एवं उपासना पथ का मार्ग-दर्शन करने वाले इस महान् संगठन का जन्म दिन भी यही हैं। 4. धर्म और अध्यात्म की अभिनव चेतना प्रवाहित करने वाली ज्ञान गंगोत्री-गायत्री तपोभूमि का शिलान्यास इसी दिन हुआ। 5. 4 लाख नैष्ठिक गायत्री उपासकों के सान्निध्य में सम्पन्न हुए इस युग के महानतम सहस्र कुण्डों गायत्री महायज्ञ का संकल्प इसी दिन लिया गया। 6. वेद उपनिषद्, दर्शन, स्मृति, पुराण, ब्राह्मण आरण्यकों की, आर्ष ग्रन्थ अनुवाद, प्रकाशन एवं प्रसार की योजना तथा गतिविधियों का श्रीगणेश इसी दिन से हुआ। 7. युग-निर्माण आन्दोलन के उद्घोष तथा युग-निर्माण पत्रिका के अवतरण का दिन बसन्त-पंचमी ही हैं। 8. ट्रैक्ट साहित्य के सृजन तथा उनका विश्व की समस्त भाषाओं में अनुवाद तथा प्रसार का-संसार भर में अपने प्रतिनिधि भेजकर नव-निर्माण की चेतना उत्पन्न करने की तैयारी इसी दिन से आरम्भ हुई। 9. हरिद्वार और ऋषियों की तपोभूमि-सरोवर के निकट उपवन माता भगवती देवी की भावी तपश्चर्या का निवास उपवन बसन्त-पंचमी को ही रोपा गया। 10. हिमालय तथा गंगा की गोद में रहकर हमारे जीवन की अन्तिम उग्र तप साधना का श्रीगणेश भी बसन्त-पंचमी से ही होगा। इस प्रकार हमारी व्यक्तिगत एवं मिशन की समस्त महत्वपूर्ण गतिविधियों का बसन्त-पंचमी ही हैं।
अखण्ड-ज्योति परिवार के प्रत्येक सदस्य को वह पर्व अपना सर्वोत्तम एवं मानना चाहिए और उसे मनाने के लिए पहले से ही तैयारी करनी चाहिये। इस बार बसन्त-पंचमी दिनाँक 10 फरवरी सन् 70 मंगलवार की होगी। उस दिन जप, हवन, पूजा-प्रार्थना, संकल्प, पाठ, भजन, प्रवचन आदि के आयोजन रखने चाहिये, पहल ही से यदि सूचना आह्वान, आमन्त्रण एवं अवरोध की व्यवस्था की जाय तो उस दिन विचारशील व्यक्ति अच्छी संस्था में एकत्रित किये जा सकते हैं और उन्हें मिशन का उद्देश्य, स्वरूप एवं कार्यक्रम समझाकर सहयोग के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता हैं। रात्रि में दीपदान करना चाहिये। हमें दीपकों का अनुकरण कर स्वयं जमकर निकटवर्ती शेष में प्रकाश उत्पन्न करना है। जिज्ञासुओं का बितरल ज्ञान-दोष की पूर्ति करेगा। जिनने अभी न मँगाई हों, वे प्रकाशित विज्ञातियाँ 50 की संख्या में 10) मूल्य वाली 1000 विज्ञप्तियों का-एक सैट मँगा लें और अपने क्षेत्र में प्रसारित करें।
नव-निर्माण का क्षेत्र अतिव्यापक है पर अपना संपर्क तथा कार्य क्षेत्र बहुत सीमित हैं। उसे दस गुना इसी वर्ष बढ़ा देने का लक्ष्य रखा जाना चाहिये। वह कार्य अखण्ड-ज्योति तथा युग-निर्माण पत्रिकाओं के प्रसार बिना सम्भव नहीं। सो हम लोग अभी से इस कार्य में प्रवृत्त ही और अगले 40 दिनों का एक प्रसार अनुष्ठान करने के लिए दो-दो घन्टे का नित्य समय निकालें अच्छा साप्ताहिक छुट्टी का पूरा दिन इस कार्य के लिए दें। एकाकी या प्रभावशाली मित्र-मंडली के साथ दोनों पत्रिकाओं के एक वर्ष के नमूना अंक साथ लेकर 100 विचारशील लोगों के पास सदस्य बनने का आग्रह लेकर जाना चाहिये। उनमें से 10 सदस्य लक्ष्य सहज ही पूरा हो सकता हैं। यदि यह किया जा सका तो अपना बसन्त-पंचमी पर्व मनाया जाना सब प्रकार सार्थक होगा। जिनके झोला पुस्तकालय में जितनी कभी है- उसे भी शेष ट्रैक्ट मँगाकर इसी बीच पूरा कर लेना चाहिये।
आशा हैं पर अखण्ड-ज्योति परिजन व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से मनाने के लिए अभी से तैयारी करने में संलग्न होगा।