अभिमान का नशा

December 1969

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बुखारा नगर के सहृदय राजकुमार को उसकी प्रजा जी-जान से चाहती थी, पर वहाँ एक ऐसा व्यक्ति भी था, जो राजकुमार की सदैव बुराई ही करता रहता था। दोष दर्शन की दृष्टि वाले व्यक्तियों को अच्छाई में भी बुराई नजर आती हैं। राजकुमार को सेवकों द्वारा सब कुछ पता लग गया था, फिर भी वह शाँत रहा और एक दिन मन ही मन काफी देर तक सोचता रहा।

अगले ही दिन शाम के समय राज्य का एक नौकर उस व्यक्ति के द्वार पर पहुँच कर बोला-”भाई! तुम राजकुमार की बहुत याद करते रहते हो, उन्होंने प्रसन्न होकर एक बोरी आटा, एक थैली साबुन और थोड़ी-सी शकर उपहार में भेजी हैं।”

उसकी प्रसन्नता का क्या ठिकाना! गर्व से फूला न समाया। वह अब अच्छी तरह समझ गया कि यह वस्तुयें राजकुमार द्वारा उसे सम्मानित करने के लिए भेजी गई है। वह दौड़ा-दौड़ा पादरी के पास गया और बोला-”अब तो राजकुमार भी मेरी सद्भावनायें प्राप्त करने के इच्छुक हैं, तभी तो उन्होंने यह सब कुछ मेरे लिए भेजा हैं।”

पादरी ने कहा-”सचमुच राजकुमार बहुत ही चतुर है, उसने तुम्हें सारी बातें इशारे। से समझाने का प्रयत्न किया है पर तुम तो बुद्धि का प्रयोग ही नहीं करना चाहते। जरा विवेक-शीलता से काम लो, आटा तुम्हारे खाली पेट के लिये हैं, साबुन तुम्हारे दुर्गन्ध युक्त गन्दे शरीर के लिए है और शकर तुम्हारी जवान को मीठा बनाने के लिए हैं।”


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