धरती खिसक जाय तो आश्चर्य नहीं

December 1969

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अमेरिका के एक वैज्ञानिक श्री मार्सटन बेट्स ने भविष्य वाणी को हैं, “यदि अगली शताब्दियों में विश्व की जन-संख्या वर्तमान गति से ही बढ़ती रही तो विश्व के कुल जन-समूह का वजन उतना हो जायेगा, जितना कि पृथ्वी का वजन है। अर्थात् पृथ्वी का भार दूना हो जायेगा।”

यह-नक्षत्र जिस गुरुत्वाकर्षण बल के सहारे आकाश में स्थिर हैं उसका कम या अधिक होना उनके भार से भी सम्बन्ध रखता है। भार बढ़ने के साथ गुरुत्वाकर्षण बल ढीला पड़े और पृथ्वी अपने कक्ष से खिसक कर कहीं और जा लगे तो कोई आश्चर्य नहीं।

डा0 वेट्स के अनुसार 1960 में विश्व की जनसंख्या तीन अरब तीस करोड़ थी, अमेरिकी जनसंख्या अध्ययन ब्यूरो द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व की जनसंख्या प्रतिवर्ष 6 करोड़ पचास लाख बढ़ रही हैं। 1950 तक 4 अरब 30 करोड़ और सन् 2000 तक वह 6 अरब अर्थात् 1960 से दूनी हो जायेगी। अकेले चीन को संख्या तक एक अरब 50 करोड़ होगी और यदि महामारी युद्ध जैसी विभीषिका न आई और भरण-पोषण के साधन-उपलब्ध होते रहे तो भारतवर्ष की ही जनसंख्या 1 अरब हो जायेगी।

ईसा से आठ हजार वर्ष पूर्व सारे संसार में कुल लगभग 25 लाख लोग थे। उस समय न कोई अकाल का भय था, न महामारी का। पृथ्वी का वातावरण शुद्ध था, खाने को प्रकृति ही इतना दे देती थी कि कृषि आदि में व्यर्थ परिश्रम न करना पड़ता था। लोग देशाटन और ज्ञानार्जन का आनन्द लेते थे। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी जटिलता बढ़ती गई और उसी अनुपात से स्वास्थ्य, आरोग्य, आजीविका, संरक्षण, खाद्य पदार्थ, निवास-स्थान, शिक्षा, सामाजिकता, अपराध आदि समस्यायें भी बढ़ती गई। आज तो जनसंख्या वृद्धि के कारण सारा संसार ही एक समस्या बन गया है।

ईसा जन्मे तब लगभग 30 करोड़ जनसंख्या थी। 1750 में दुगुनी से भी अधिक 75 करोड़ के लगभग हो गई। 1850 में 110 करोड़ लोग इस पृथ्वी पर आ चुके थे, 1900 ई॰ में 160 करोड़ की जनसंख्या थी। 1920 में 181 करोड़, 90 लाख और 1940 में 224 करो 60 लाख। 1961 में यह संख्या बढ़ कर 306 करोड़, 90 लाख हो गई। जनसंख्या की यह बढ़ोत्तरी कम होने का नाम नहीं लेती, पृथ्वी में अधिक से अधिक 1600 करोड़ जनसंख्या का भार उठाने की क्षमता हैं। इससे एक छटाँक वजन भी बढ़ा तो पृथ्वी रसातल को चली जायेगी। अर्थात् प्रलय हो जायेगी।

संयम न बरता गया तो यह स्थिति अधिक दूर नहीं। ‘1.9’ यह संख्या लिखने में जितना समय लगा, उतनी देर में 1.9 नये बच्चों ने जन्म ले लिया। अब अनुमान करें यह पूरा लेख लिखने तक ऊपर के दिये सब आँकड़े बदल जायेंगे। एक मिनट में 225 बच्चे जन्म लेते हैं, एक घंटे में उनकी संख्या 225*60=13500 हो जाती हैं। इस हिसाब से एक दिन में 13500*24=324000 होनी चाहिये पर बढ़ोत्तरी इससे भी अधिक होगी, क्योंकि अधिक से अधिक 20 वर्ष में यह बच्चे भी बच्चे पैदा करने लगते है, अर्थात् वृद्धि का क्रय चक्रवृद्धि ब्याज की दर से बढ़ती हैं। पहले प्रतिदिन वृद्धि का औसत 1 लाख 36 हजार 986 था। 1 घन्टे में 5 जहार 708 और 1 मिनट में 95 आदमी बढ़ते थे, उस हिसाब से 1975 में 382 करोड़, 80 लाख, सन् 2000 में 680 करोड़, 2050 ई॰ में 1300 करोड़ एवं 2034 में 1600 करोड़ हो जाने को थी पर अब 225 बच्चे प्रति मिनट पैदा होते हैं, यह पहले औसत से दो गुने से भी अधिक हैं, अर्थात् जनसंख्या से जो विस्फोट 100 वर्ष बाद होने वाला था, वह अब इसी शताब्दी के अन्त में हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं।


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