जो बुद्धि से परे है वह केवल ‘अन्ध-विश्वास’ ही नहीं

December 1969

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तूतन खगेन में एक वृद्ध फकीर ने बहुत दिन तक धार्मिक सेवा की। वह जहाँ भी जाता भगवान् की उपासना, आस्तिकता, नेकनीयती, प्राणियों को न सताने, माँस आदि अभक्ष न खाने की शिक्षा दिया करता। सामाजिक जीवन में साधु को बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त थी। उनका सभी लोग हृदय से आदर करते और उनके निर्णयों को स्वीकार करते। मृत्यु के बाद उन्हें भावनापूर्वक एक कब्र में दफना दिया गया पर तब भी लोग उनके नाम पर न्याय और सत्कर्म की प्रेरणा प्राण करते रहते। विशेष अवसरों पर उनके लिए लोग उनकी कब्र के पास जाकर प्रार्थना भी किया करते।

मानते है धार्मिकता के बीच अन्ध-विश्वास के लिये बहुत स्थान है। ऐसे भी लोग हैं, जो लोगों की श्रद्धाओं का दुहा करते और अपनी स्वार्थ पूर्ति किया करते हैं, ऐसी दृंत्तियाँ जहाँ भी पनप रही हो, उनका विरोध करना चाहिये, किन्तु हम यह मानने के लिए विवश नहीं कि ऐसी मान्यतायें सब अन्ध-विश्वास ही होती है, अनेक ऐसी बात है जिनको वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सका तो भी उसका अस्तित्व है, ध्वनि मौन दिखाई देती है, चुम्बक शक्ति को कितनी ही सूक्ष्मदर्शी (इलेक्ट्रानिक माइक्रोस्कोप) यन्त्रों द्वारा भी नहीं देखा जा सकता। हवा में धुली ईथर शब्द तरंगों को सेकेंडों में कहाँ से कहाँ पहुँचा देती है पर उसे कितने देखा हैं। कुछ वस्तुयें ऐसी है जिन्हें उद्भव किया जा सकता, देखा नहीं। भूत, अदृश्य आत्मायें देवता और परमात्मा का अस्तित्व भी इसी तरह एक स्वयं सिद्ध सिद्धान्त है, इनसे प्राणियों को अदृश्य और चमत्कारिक सहायतायें भी मिलती हैं, इसलिये यदि कोई उन पर श्रद्धा रखता है, कोई उन्हें पूजता है तो उसे पाखण्ड नहीं कहना चाहिये। संसार में सब कुछ अन्ध-विश्वास ही नहीं प्रस्तुत घटना उसी संदर्भ में हैं।

सन् 1922 ई॰ में डा0 ब्रेस्टड ने होवर्ड कार्टर, आर्थर बीगल, लार्ड कारन वर्ग आदि सामन्तों को वह कब्र उखाड़ फेंकने के लिए उत्तेजित किया। पूरा हल जब दरगाह पहुँचा तो समाचार-पत्रों के उक्ताओं ने उन्हें मना किया-सर! इस कब्र पर हम साँगोके विश्वास सुरक्षित है, आप इसे न उखाड़े हेवर्ड कार्टर ने उन्हें चमका कर कहा- “सह विज्ञान का युग है, वहाँ भावनायें, विश्वास और आत्मा एवं परमात्मा कुछ नहीं चमते। हमें इसका कुछ डर नहीं है। सिपाहियों तोड़ डालो इस कब्र को।” और आदेश के थोड़ी देर बाद ही सारी दरगाह व्यस्त पड़ी थी।

यह विज्ञान का युग है, इसमें धर्म, विश्वास, ईश्वर आत्मा आदि कुछ नहीं चलते।” यह कहना सरल है, उसे सिद्ध करना सरल नहीं। सापेक्षवाद के सिद्धान्त (ब्योरी आँफ रिलेटिविटी) का प्रतिपादन करते समय आइन्स्टीन जैसा महान् विज्ञान वेत्ता को भी यह मानना-पड़ा था कि सुनार में उच्च सत्ताये (सुपर पावर्स) भी काम करती है और उनका सोचना, करना सहायता पहुँचना या धकम करना सब कुछ विधि-विधान के साथ चमता रहता है। वह शक्तियाँ समय से नहीं हैं, उनके लिये एक एक सेकेंड की तरह है, इसलिये कर्मफल की बात हम नहीं पाते अन्यथा हमारे लिये छोटे से छोटे दुर्भाव नीर अपराध के लिए भी दण्ड निर्धारित है और हम उससे कभी बचकर नहीं निकल सकते। शक्ति प्रदर्शन कर सकते हैं। किसी का उत्पीड़न कर सकते हैं, उपहास है, छल-कपट, धोखा, बेईमानी, चोरी, व्यभिचार कर सकते हैं पर इनके दुष्परिणाम भी उतनी ईमानदारी से भुगतने पड़ते है, न्याय की दृष्टि से ईश्वरीय शक्तियाँ किसी को क्षमा नहीं करतीं। पाप का दण्ड भुगतना ही पड़ता हैं।

कब्र के साथ एक लकड़ी रखी थी, उसमें क्या कुछ कीटाणु है, इस वैज्ञानिक अनुसन्धान के लिये उसे गिलास में डालकर उबाला गया। पर अभी धाय धीमी तेज ही हुई थी गिलास एक धमाके के साथ फट गया और वैज्ञानिक यन्त्र प्रयोगशाला (लैबोरेटरी) में टूट-टूटकर बिखर गया 28 जून 1914 को कार एक शाही रंग-ढंग में अपने मालिकों को लेकर बोस्निया के गवर्नर के महल से निकली। युवराज फडिनेड अपनी धर्म पत्नी के साथ ऐठं और अभिमान के साथ उसमें बैठे थे। सेरोजेवो नगर अभी काफी दूर था कि बीच में ही हवा की तरह सनसनाता हुआ एक बम कार की बगल में आकर फटा। कार के साथ चल रहे चारों घुड़सवार अंग-रक्षक घायल हो गये। सिपाही आगे बढ़ने की स्थिति में नहीं थे पर अभिमानी युवराज ने उनकी मरहम पट्टी कराकर फिर आगे बढ़ने को कहा। सेराजेवों आ गया। का ड्राइवर शहर की एक-एक गली से परिचित था, किन्तु न जाने कैसे उसका हाथ अपने आप एक गलत गली में घूम गया। उधर एक मकान से एक युवक हाथ में में पिस्तौल लेकर लपका और कार का शीशा तोड़कर हाथ भीतर घुसेड़ कर गोलियाँ दागने लगा जब तक अंग-रक्षक उसे सँभाले शाही दंपत्ति के प्राण निकल चुके थे।

इस घटना ने ही आस्ट्रिया के महलों में युद्ध की ज्वाला भड़काई। युवक कोई दक्षिण पन्थी था, इसलिये दक्षिण पन्थी गुट पर सम्राट ने हमला बोल दिया। तब यह कार सेराजेवों के गवर्नर के महल में थी। इसी महल से 5 वीं आस्ट्रियन सेना के सेनापति जनरल पोत्योरेक ने युद्ध का संचालन किया। सेनापति ने वह कार अपने कब्जे में ली ठीक उसके 21 वें दिन वह युद्ध हार गया, उसे पदच्युत कर वापिस बुला लिया गया। इस सेनापति की मृत्यु बियना के एक भिखारी गृह में हुई। उसके बाद कार फाश्चामित्व पाया पोत्योरेक के ही एक कप्तान ने। किन्तु कार में चलते अभी नौ दिन ही हुये थे कि एक दिन उसने दुर्घटना कर दी। दो किपानों के कुचल कर कार एक पुलिया से जा टकराई और उसमें से कप्तान की जिन्दा नहीं मृत लाश निकाली गई। कार को गवर्नर के पास भेज दिया गया इस बीच युद्ध समाप्त हो गया और युगोस्लाविया का गवर्नर इस कार का मालिक बन गया। कार हाथ में आने के एक माह के भीतर उसने पाँच दुर्घटनायें कीं। अन्तिम दुर्घटना ऐसी जबर्दस्त थी कि उसमें गवर्नर का दाहिना हाथ ही जाता रहा। गवर्नर ने उस बदनाम कार को नष्ट-भ्रष्ट कर डालने की आज्ञा दे दी पर इसी बीच डा0 सरकिस नामक एक डाक्टर ने उसे कुल एक हजार रुपये खरीद ली। कार के साथ दुर्भाग्य की अफवाह चारों ओर फैल चुकी थी, इसलिये उसके लिये कोई ड्राइवर नहीं मिला। अन्त में सरकिस स्वयं ही उसे चलाने लगा और मुश्किल से तीन माह उसका प्रयोग कर सका था कि एक रात सड़क पर चलते समय कार न जाने कैसे लुढ़क गई। आज तक डा0 सरकिस लोगों को ताना मारा करता था, देखो कार कैसी अच्छी चल रही है, अन कहाँ गया उसका भूत, पर कल जब उसे कार से औंधा मरा बाहर निकाला गया तो उसकी लाश बिना प्राणों के पाई गई।

इस बार कार उलटी तो थी खराब नहीं हुई थी, इस लिये एक सोने-चाँदी के व्यापारी ने उसे खरीद लिया और खरीदने के कुछ दिन बार ही आत्म-हत्या करके मर गया। इसके बाद उसने एक और डाक्टर का स्वामित्व ग्रहण किया। डाक्टर ने उसे डरते-डरते खरीदा था, एम महीने में उसकी सारी कमाई पट्ट पड़ गई तो बेचारे ने डरकर आधी कीमत पर स्विट्जरलैंड में एक बार दौड़ जातियों गिता आयोजित की गई थी। इस कार वे उसमें हिस्सा लिया। दुर्भाग्य से वही कार ऐसी थी, धो एक दीवार से टकरा गई और अपने ड्राइवर को स्वर्गवासी बचाकर कर अकेली रह गई।

इस बार वह फिर सेरेजेवों लौट बाई। एक पर्ची किसान ने उसे खरीद लिया। अब तक वह रज चुकी थी, इसलिये शायद उसने पहचानने में भून की। एक दिन किसी यात्रा में कार बीच रास्ते में शराब हो गई और ऐसी जाम हुई कि अनेक प्रयत्नों के बाद भी वह इटाट नहीं हुई। आखिर हारकर दो बैलगाड़ियाँ किराये पर की वह जो रस्सों से खींचकर कार घर तक पहुँचा है। मोटे-मोटे रस्सों से कार बैलगाड़ी से बाँध दी गई पर अभी गाड़ी 10 गज की चल पाई थी कि इंजन अपने आप स्टार्ट हो गया। कार बेतहाशा भागी। गाड़ी को कुचल कर वह भी औंधी गिरी और अपने मालिक किसान को भी खा गई।

इस बार मेटर चकनाचूर हो गई थी पर दुर्भाग्य अभी भी उसके साथ बँधा रहा। इस बार उसे टाइवर हर्शफील्ड ने खरीद लिया और उसकी नये सिरे स मरम्मत कराकर स्वयं उसे जीतने लगा। कार ऐसी चलने लगी कि लोग भूल गय उसके साथ कोई दुर्भाग्य भी जुड़ा है। अदृश्य विधान होने के कारण लोग शीघ्र ही ऐसी बातें भूल जाते है पर सूक्ष्म शक्तियाँ भी तो अपने अस्तित्व के लिए विवश हैं। एक दिन हर्शफील्ड अपने 6 मित्रों के साथ एक भोज के लिये रवाना हुआ। सड़क पर कार तेजी से दौड़ी जा रही थी। एक मोड़ से गुजरते समय कार सामने से आती हुई दूसरी कार से टकरा गई। भिड़न्त बराबर की थी पर सामने वाली कार को काई नुकसान नहीं पहुँचा जबकि हर्शफील्ड अपने चार साथियों के साथ अपनी जान से हाथ धो बैठा केवल एक व्यक्ति ही उसमें जीवित बचा था।

अब सरकार चेती। उसने कार को अपने व्यय से ठीक कराकर आस्ट्रिया के एक मुर्दा अजायबघर को वे दिया गया। अब तक द्वितीय विश्व-युद्ध छिड़ चुका था। जिन दिनों कार अजायबघर पहुँची युद्ध के अन्तिम दिन थे। एक दिन दुर्भाग्य से उसी अजायबघर में कई बम गोले एक साथ फूटे जिसमें वह अजायबघर पूरी तरह ध्वस्त हो गया और वह ऐतिहासिक कार भी उसी के साथ गर्द में लीन हो गई। उसके साथ ही द्वितीय विश्व-युद्ध भी समाप्त हो गया।

इस घटना ने सारे योरोप में एक बार तहलका मचा दिया कि आत्मा में बड़ी जबर्दस्त शक्ति है, वह अभिशाप के रूप में किसी पर लग जाये तो कार की तरह ही सैकड़ों का विध्वंस करके ही छोड़ती है। उससे अनेक लोगों ने बुराई,पशुओं हिंसा और क्रूरता आदि बुराइयाँ छोड़ी थीं, और हजारों लोगों ने आत्म-परायणता, सेवा-भाव और सद्गुण अपनाना प्रारम्भ कर दिया था।

‘होप’ नामक हीरा भी इसी तरह यूरोप में अपने अमंगल के लिए बहुत विख्यात हो चुका है। वह जिसके पास भी रहा उसे चैन से नहीं रहने दिया। यह हीरा ब्रह्मा के किसी हिन्दू मन्दिर में भगवान् की मूर्ति में आँख में जड़ा हुआ था। 300 वर्ष पहले की बात हैं, वेपटिस्ट टवर्नियर नामक अँग्रेज उसे चुरा ले गया। उसने उसे एक जौहरी टामस होप को बेच दिया। उसी ने हीरे का नाम होप रखा। हीरे के पहुँचते ही उसका कारोबार बैठ गया। उसने घबड़ा कर उसे कम दामों में बेच दिया। बाद में वही हीरा वाशिंगटन (अमेरिका) की एक नवयुवती ईवसिलन मैकलीन रेनल्ड्लगे खरीदा और उसके कुछ दिन बाद ही उसने निद्रा की गोलियाँ अधिक मात्रा में लेकर आत्म-हत्प्रा कर ली।

इसके बाद हीरा एष्टायनट के पास पहुँचा। उसके पहुँचते हो उसके जीवन में झगड़ों की डाढ़ आ गई। अभी वह हीरे को बेचने की ताक में ही था, उसका सिर काट लिया गया। अब वह हीरा प्रिन्सेस दी लम्बल में पहना और उसकी भी हत्या कर दी गई। उसके पास से फास नामक एक जौहरी ने यह होराँ चुरा लिया उसने कुल सात दिन में आत्म-हत्या कर ली। तब फाँलीज बगर नामक एक ड्रामा करते समय वह हीरा पहना। रंगमंच (स्टेज) पर चढ़ते ही किसी ने उसे गोली मार दी। स्टाक मार्केट के प्रमुख उद्योगपति लाड फ्राँन्सिस होप ने यह हीरा लेकर अपनी सारी सम्पत्ति गंवा दी। तब वह पहुँचा अरब के सुल्तान अब्दुल हमीद के पास। उसे गद्दी से उतार दिया गया। तब उसे श्रीमती वाल्श मैकलीन ने खरीदा और उसी दिन उनका प्रिय पुत्र मोटर से कुचल कर मारा गया। इस तर यह हीरा भी सारे यूरोप में अपने अमहस के लिय सर्वत्र बदनाम हुआ।

उपरोक्त घटनायें यह बतातीं हैं कि मनुष्य अपनी दुष्टता के परिणाम और जीवनों में ही नहीं भुगतता वरन् वह हाथों हाथ भी दण्ड पाता हैं। चोरी, छल-कपट बेईमानी, बेइन्साफी के परिणाम समाज के लिए दुःखद होते हैं, व्यक्ति के लिये पतनकारी। इसलिये दोनों की हो भलाई इस बात पर टिकी है कि हम भावनाओं की शक्ति को मानें और इस संसार में बुरा कार्य करने का साहस न करें, अन्यथा किसी भी क्षण हम ईश्वरीय शक्तियों के कोप-भाजन बन सकते हैं।


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