अपरिग्रह-शीलता

December 1969

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अपरिग्रह-शीलता :-

एक बार किसी महिला ने अमेरिकी दार्शनिक थोरो को एक चटाई भेंट की। चटाई को वापिस करते हुये वे बोले-”श्रीमती जी! न तो मेरे घर में इतना स्थान है कि मैं चटाई को बिछा सकूँ और न इतना समय ही है कि उसे झाड़ कर साफ कारूं। फिर घर को अनावश्यक वस्तुओं का संग्रहालय बनाने से लाभ भी क्या हैं? इसी प्रकार उन्होंने अपनी मेज पर रखे सफेद सुन्दर पत्थरों के तीन मनोरम पेपर वेटों को बाहर फेंक दिया। उनके मित्र ने इसका कारण पूछा-तो उन्होंने यही उत्तर दिया-”भाई! अपने मस्तिष्क को साफ करने का कार्य ही क्या कम हैं, जो विकार की वस्तुओं का ढेर लगाकर झंझट पील लूँ।”


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