प्रार्थना आत्मा का सम्बल

December 1969

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“मुझे रोटी न मिले तो मैं व्याकुल नहीं होता पर प्रार्थना के बिना मैं पागल हो जाऊँगा। प्रार्थना भोजन की अपेक्षा करोड़ गुना ज्यादा उपयोगी चीज हैं। खाना भले ही छूट जाये लेकिन प्रार्थना कभी न छूटनी चाहिये। प्रार्थना तो आत्मा का भोजन है। यदि हम पूरे दिन ईश्वर का चिन्तन क्या करें तो बहुत ही अच्छा पर चूँकि यह सबके लिए सम्भव नहीं इसीलिये हमें प्रति दिन कम से कम कुछ घण्टों के लिये ईश्वर स्मरण करना ही चाहिये।”

“स्तुति, उपासना, प्रार्थना अन्ध-विश्वास नहीं, बल्कि उतनी ही अथवा उससे भी अधिक सच्च बातें है, जितना कि हम खाते हैं, पीते हैं, चलते हैं, बैठते हैं ये सच है। बल्कि यों कहने में अत्युक्ति नहीं कि यही एक मात्र सच है, दूसरी सब बातें झूठ हैं, मिथ्या हैं।”

“प्रार्थना करना, याचना करना यही हैं, वह तो आत्मा की सच्ची पुकार हैं। हम जब अपनी असमर्थता खूब समझ लेते हैं और सब कुछ छोड़कर ईश्वर पर भरोसा करते हैं, तब उसी भावना का फल प्रार्थना हैं।” “प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तुतले, मूढ़ सभी प्रार्थना कर सकते हैं, जीभ पर अमृत हो और हृदय में हलाहल हो तो जीभ का अकृत किस काम का? कागज के गुलाब से सुगन्ध कैसे निकल सकती हैं।”

प्रार्थना करने का उद्देश्य ईश्वर से सम्भाषण करना एवं अन्तर आत्मा की शुद्धि के लिए प्रकाश प्राप्त करना है, ताकि ईश्वर की सहायता से हम अपनी कमजोरियाँ पर विजय प्राप्त कर सकें। प्रार्थना मन से न हो तो सब व्यर्थ हैं। प्रार्थना में जो कुछ बोला जाता है, उसका मनन कर अपने जीवन को वैसे ही बनाने का प्रयत्न करना चाहिये। तभी उसका पूर्ण लाभ हैं।”

“परलोक की बात तो जाने दीजिये, इस लोक के लिये भी प्रार्थना सुख और शाँति देने वाला साधन है। अतएव यदि हमें मनुष्य बनना हैं तो हमें चाहिये कि हम जीवन को प्रार्थना द्वारा रसमय और सार्थक बना डालें। इसीलिये मैं आपको सलाह दूँगा कि आप प्रार्थना से भूत की तरह लिपटे रहें।” “मेरे सामने आने वाले राष्ट्रीय, सामाजिक अथवा राजनैतिक विकट प्रश्नों की गुत्थी का सुलझाव मुझे अपनी बुद्धि की अपेक्षा अधिक स्पष्टता और शीघ्रता से प्रार्थना द्वारा विशुद्ध अन्तःकरण से मिल जाता हैं।” -महात्मा गाँधी


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