आत्मा के सनातनत्व का प्रमाण पूर्वाभास

December 1969

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“मुझे अच्छी तरह स्मरण है, तब मैं सात वर्ष का बच्चा था। पिताजी किसी काम से बाहर गये थे। थे वे अपने ही शहर में। विचार और भावनायें कहाँ से आती है, मुझे कुछ मालूम नहीं हैं, किन्तु मुझे इनमें मान-जीवन का कुछ यथार्थ, दर्शन और अमरता का रहस्य छिपा हुआ जान पड़ता हैं। ऐसा मैं इस आधार पर कहता हूँ कि मुझे उस दिन योंही एकाएक खेलते-खेलते ऐसा लगा कि पिताजी एक ट्रास से घर आ रहे हैं। ट्राम दुर्घटना ग्रस्त हो गई हैं और उसमें पिताजी बुरी तरह घायल हो गये हैं। बिना किसी दर-दर्शन (टेलीविजन) यन्त्र के इस तरह का आभास क्या था, मुझे कुछ भी पता नहीं हैं।”

रीडर्स डाइजेस्ट नामक विश्व विख्यात मासिक पत्रिका के अप्रैल 1965 के अंक पेज 93 में “सैम बेन्जोन की सूक्ष्म शक्तियाँ” नामक शीर्षक का उल्लेख करते हुये इसमें लेखक ने स्वीकार किया है कि “संसार में कोई एक ऐसा तत्व भी है, जो हाथ-पाँव विहीन होकर भी सब कुछ कर सकता हैं, कान न होकर भी सब कुछ सुन सकता है, आँखें उसके नहीं हैं पर वह अपने आपके प्रकाश में ही सारे विश्व को एक ही दृष्टि में देख सकता हैं। त्रिकाल में क्या संभाव्य है, यह उसको पता हैं। उसका सम्बन्ध विचार और भावनाओं से है, इसलिये यह कहा जा सकता है कि विचार और ज्ञान की शक्ति चिरभूत और सनातन है।”

पैम वेन्सन अपनी माँ के पास गया और कहा-माँ! पिताजी घायल हो गये लगते है, मुझे अभी-अभी ऐसा आभास हुआ है कि वे जिस ट्रास से वापिस आ रहे थे, वह दुर्घटना ग्रस्त हो गई हैं।” माँ ने बच्चे को झिड़की दी- “तुझे योंही खयाल आया करते हैं, चल भाग जा अपना काम कर।”

बच्चा अभी वहाँ से गया ही था कि सचमुच उसके पिता घायल अवस्था में घर जाये गये। पूछते पर ज्ञात हुआ कि सचमुच वे जिस ट्रास से आ रहे थे, वह दुर्घटना ग्रस्त हो गई, उसमें कई व्यक्ति मारे गये। माँ को जितना पति की चोट का दुःख था, उससे अधिक पुत्र के पूर्वाभास का आश्चर्य। हमारे जीवन में ऐसे अनेक बार आत्मा से प्रकाश आता हैं, जिसमें हमें कुछ सत्य अनुभव होते हैं पर साँसारिकता में अतिरिक्त मनुष्य उनसे आत्म-ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता कहाँ अनुभव करते हैं।

क्रिसमस का त्यौहार आया। घर दावत दी गई। बहुत से मित्र, सम्बन्धी और पड़ौसी आये। दोनों ने अनेक तरह के उपहार दिये। उपहार के सब डिले एक तरफ रख दिये गये। प्रीतिभोज चनता रहा। सबको बड़ी प्रसन्नता रही। हँसी-खुशी के वातावरण में सब कुछ आनन्द सम्पन्न हुआ।

मेहमान घरों को विदा हो गये तब डिब्बों की पड़ताल प्रारम्भ हुई। माँ ने बच्चे से कहा- “बेनसब! तू बड़ा भविष्य-दर्शी बनता है, बोन इस डिब्बे में क्या हैं।” ‘बेसबवा’ माँ! ऐसे जैसे उसने खोलकर देखा हो। यदकि डिब्बा जैसा आया था, वैसे ही बन्द या, किसी को भी देखने तो क्या खोलने का भी अवकाश नहीं मिला था।

डिब्बा खोला गया। माँ बवाक् रह गई। सचमुच डिब्बे में ‘बेसवाल’ ही था।

अब जब एक्सरे जैसे यन्त्र बन गये हैं, जो त्वचा के आवरण को भी पारकर के भीतर के चित्र खींच देते है यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं रह गई है। किन्तु बिना किसी ‘लेन्स’ या मन्त्र के डिब्बे के भीतर की वस्तु का ज्ञान प्राप्त कर लेना यह बताता है कि विचार और भावनाओं की शक्ति इतनी दिव्य और सूक्ष्म है कि बहन अन्तराल में छिपी हुई वस्तुओं का भी ज्ञान बिना किसी माध्यम के प्राप्त कर सकती हैं। इससे उसकी सर्वव्यापकता का पता चलता हैं।

सैम बेन्जोन की घरों में रंग-रोगन करने वाले एक पेन्टर मार्टिन से जान-पहचान थी। एक दिन वह अपने आफिस में बैठे हुये कुछ काम कर रहे थे। जैसे चलचित्र में पर्दे पर कहानी के दृश्य एक पर एक उभरते हुए चले आते है, विचारों को फिल्म में एकाएक ऐसा दृश्य उपस्थित हुआ जैसे मार्टिन किसी दीवार को पेन्टिंग करते समय सीढ़ियों से लुढ़क कर गिर पड़ा है, उसके सारे शरीर में पेन्ट के से धब्बे पड़े दिखाई दिये।

यह तो वैज्ञानिक भी मानते हैं कि मस्तिष्क के कुछ भाग बड़े सूक्ष्म और अविज्ञात हैं। मस्तिष्क में ज्ञान क्षेत्र (सेन्सरी एरिया), दृश्य क्षेत्र (आप्टिक एरिया) जैसे स्थान हैं, जहाँ आँखों की रंटिना से होकर चित्र पहुँचते और मस्तिष्क को उनकी जानकारी देते रहते हैं पर वे यह नहीं जान पाये कि विचारों के द्वारा स्वप्न और जागृत अवस्था में जो चित्र मस्तिष्क में बना करते हैं, उनका सम्बन्ध किन परमाणुओं से है और मस्तिष्क के किन नाभि-केन्द्रों (न्यूक्लिक सेर्न्टस) से हैं। सम्भव है आगे ऐसी खोजें हों, जिनसे विश्व-ब्रह्माँड में फैली आत्म-चेतना के रहस्यों पर प्रकाश पड़े पर अभी इस तरह की अनुभूतियाँ ही क्या कम हैं, हम चाहें तो इनकी ही आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण मान सकते हैं।

यदि ऐसा न होता तो यह पूर्वाभास सत्य क्यों होते। बेन्जोने के मस्तिष्क में इस तरह का दिवास्वप्न आये तीन दिन ही हुये थे कि उसे समाचार मिला सचमुच मार्टिन मोहल्ले के ही एक मकान की रंगाई करते समय फिसल कर गिर पड़ा और मृत्यु हो गई हैं।

आत्मा सनातन ही नहीं पूर्ण शक्ति है। भारतीय तत्व दर्शन ने पग-पग पर उसे प्राप्त करके अपने जीवन को परिपूर्ण बनाने की प्रेरणा इसीलिये दी हैं कि मनुष्य शरीर जैसी बहुमूल्य वस्तु पाकर जीव उसे व्यर्थ न जाने दे, यदि इस शरीर से आत्मा को प्राप्त न किया जा सका तो और कोई उपाय और जन्म संसार में नहीं हैं, जो इस उद्देश्य में सहायक हो सके। शास्त्रकार इसीलिये कहते है- “आत्मा बरि दृव्यों, श्रोतव्यों निदिध्या हे मनुष्यों! आत्मा को देखो आत्मा को सुनो और मनन, चिन्तन द्वारा आत्मा को ही प्राप्त करो।”

द्वाविमी पुरुषों लोके क्षरश्चाक्षर एवं च। क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते॥ -गीता 15। 16

हे अर्जुन! इस संसार में माझवान और अविनाशी दो प्रकार के तत्व है, सब प्राणियों में शरीर तो नाशवान् हैं पर जीवात्मा अविनाशी तत्त्व हैं।

पाश्चात्य दार्शनिकों और विज्ञान की प्रयति के कारण हम आत्म-तत्त्व की उपेक्षा करते हैं और इसी कारण अलौकिक सत्यों की प्राप्ति नहीं कर पाते। यह प्रमाण हमें इस बात के लिये विवश करते हैं कि अव्यक्त और अदृश्य को भी जान समझ लेने की क्षमता का रहस्य क्या है।

एक रात सैम बेन्जोन घर पर सो रहे थे। एकाएक उनकी नींद टूटी उन्हें ऐसा क्षमा कि कहीं से किसी के जलने की दुर्गन्ध आ रही हैं। अपनी धर्म-पत्नी को जमाकर उन्होंने पूछा-”देखना चाहिये कहीं कुछ खल तो नहीं रहा।” पति-पत्नी ने सारा घर ढूंढ़ लिया कही कोई आम या जलती हुई वस्तु नहीं, मिली। बेन्जोन ने कहा-”मुझे ऐसा लगता है, दुर्गन्ध तुम्हारी माँ के घर से आ रही है।”

दूर-दर्शन, दूर-माप के यन्त्र बन गये है सो इन प्रसंगों में आपेक्ष हो सकता है पर अभी कोई ऐसी मशीन नहीं बनी जो किसी भी स्थान में फैली हुई दुर्गन्ध या सुगन्ध की दूरानुभूति करा सके। पत्नी ने बिदक कर कहा- ‘‘पागल हुये हो, मेरी माता जी का घर आठ मील दूर है, इतनी दूर से कोई दुर्गन्ध आ सकती हैं।” सैम बेन्जोन ने घोड़ा जोर देकर कहा- “तुम जानती हो मेरा आत्म-विश्वास प्रायः अचूक होता है। देखो टेलीफोन करके ही पूछ लो, सचमुच कोई बात तो नहीं।”

पत्नी ने रिंग‘ बजाई उधर से कोई आवाज नहीं आई किसी ने टेलीफोन नहीं उठाया। लगभग 15 मिनट तक प्रयत्न करने के बाद भी जब उधर से किसी ने टेलीफोन ‘रिसोव’ (उठाया) नहीं किया तो पत्नी ने झिड़ककर कहा- “सब लोग सो रहे होंगे, व्यर्थ ही परेशान किया। पर तभी उधर से ‘हलो’ की आवाज आई-माँ ने बताया घर के पिछले हिस्से में आग लग गई थी, पड़ौसियों की सहायता से उसे बुझाया जा सका। इस घटना का उन पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि फिर उन्होंने आत्मा के अस्तित्व के कभी इनकार नहीं किया। वे रात भर इस विलक्षण तत्व के बार में सोचती रहीं। यह तो योल्प था जहाँ लोगों को जिज्ञासायें उठती है पर उन्हें समाधान नहीं मिलता है और हम भारतीयों का दुर्भाग्य यह है कि योग और आत्म-तत्त्व की शोध से हमारा सारा आर्ष वांगमय भरा पड़ा है पर हमारे मन में कभी इस अविनाशी तत्त्व के प्रति जिज्ञासायें ही जागृत नहीं होतीं।

कोई प्रश्न का सकता हैं कि सैम बेन्जोन कोई योगी नहीं था, उसने कोई साधना नहीं की थी, फिर उसे ऐसी सूक्ष्म अनुभूतियाँ क्यों होती थी, ऐसा प्रायः सबके साथ क्यों नहीं होता। एक ही उत्तर है- आत्मिक पवित्रता और पूर्वजन्मों के संस्कार। यह आवश्यक नहीं कि सूक्ष्म शक्तियाँ इस जीवन की साधना का ही परिणाम हों, वह पूर्वजन्मों की भी हो सकती हैं। इसकी पुष्टि स्वयं सैम के जीवन से होती हैं। उसके परिवार में और किसी भी व्यक्ति में ऐसा गुण नहीं था पर सैम वेन्जोन लिखते हैं कि- मेरे पुत्र में सम्भवतः वंशानुक्रम से यह गुण आ गये थे। उसका नाम टेड था। टेड मेरो आत्मा की आवाज को अच्छी तरह पकड़ लेता था।” इसके उन्होंने कई उदाहरण भी दिये हैं।

एक दिन बेन्जोन जैसे ही घर पहुँचे, उन्हें ऐसा लगा कि ‘टेड’ किसी तालाब में डूब रहा है। उसके हाथ-पाँव, दर्द कर रहे है। उन्होंने तीव्र शक्ति से अपनी भावनाओं से ही सन्देश दिया, पीठ के बल लेट जाओ। इसके बाद उसे ऐसा लगा ‘टेड’ उलटा हो गया और धीरे-धीरे बाहर आ गया। बाहर निकलकर वह साइकिल उठा रहा हैं। यह दृश्य देखते-देखते तक बेन्जोन घबड़ा गया और वह तालाब की ओर भागा। मार्ग में ही टेड मिल गया, उस में बताया कि ‘जब वह स्नान कर रहा था उसके पेट और पाँव में एकाएक मरोड़ उठा। वह डूबने ही वाला था कि किसी ने कहा- “पीठ के बल लेट जाओ।” मैंने वैसा ही किया और इससे मुझे दम मिल गया, मैं धीरे-धीरे किनारे निकल आया।”

प्रत्येक जीव में व्याप्त चेतना एक ही है, जन्म मरण, से रहित इस तत्त्व का न जन्म होता है, न नाश-

न जायते म्रियते वा कदाचि-न्नायं भूतवा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे -गीता, 2। 2

अर्थात्-यह आत्मा किसी काल में भी न जन्म लेता है और न हीं मृत्यु को प्राप्त होता हैं। ऐसा भी नहीं कि वह कभी न रहता ही, क्योंकि यह अजन्मा, नित्य शाश्वत और सनातन है, शरीर के नाश हो जाने पर भी इसका नाश नहीं होता।

गहराई से विचार करें तो ऊपर दी हुई घटनायें इसी सत्य का प्रतिपादन करती प्रतीत होंगी। जागृत अवस्था मिल यों पूर्वाभास का ओर कारण भी क्या हो सकता हैं?

शिष्य अपने गुरु के दर्शन के लिये घर से चल पड़ा। रास्ते में नदी पड़ी। उस अपने गुरु पर अपार श्रद्धा थे। नदी उसके मार्ग में बाधक बनना चाहती थी। पर जब वह नदी के किनारे पहुँचा तो अपने गुरु का नाम लेते हुये पानी पर कदम रखकर उस पार पहुँच गया।

नदी के दूसरे किनारे पर ही तो गुरु की कुटिया थी। गुरु ने अपने शिष्य को बहुत दिनों बाद देखा तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। शिष्य चरण स्पर्श के लिए नीचे भंग हुआ। उन्होंने सोचा- “मेरे नाम मैं यदी इतनी शक्ति हैं तो मैं बहुत ही महान् और शक्तिशाली हूँ।” और अगले दिन नाव का सहारा न ले नदी पार करने के लिये ‘मैं, मैं, मैं’ कहकर जैसे ही वह कदम बढ़ाया कि पाँव रखते ही वह तो नहीं मैं डूबने लगे। और देखते ही देखते उनका प्राणांत हो गया।


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