जापान में जहाँ देवदारु के पेड़ तीन-चार सौ फीट तक ऊँचे होते है, वहाँ कुछ ऐसे भी होते हैं जो बहुत पुराने होने पर भी दो-चार फीट के ही रह जाते हैं। इन बौने पेड़ों के बारे में मुझे बड़ा अचम्भा हुआ और उनके न बढ़ने का कारण मालूम किया तो बताया गया कि जापानी लोग जान बूझकर कौतूहलवश इन्हें छोटा बनाये रहते हैं, अपनी कारिस्तानी से बढ़ने नहीं देते। कारिस्तानी यह कि वे पेड़ की टहनियाँ और पत्तों को जरा भी नहीं छेड़ते पर उसकी जड़ों को जमीन में बढ़ने नहीं देते और उनकी बराबर काट-छाँट करते रहते हैं।
इंसानों में से अनेकों ऐसे होते हैं जिन्हें बहुत छोटा या ओछा कहा जाता है। जापान के देवदारु पेड़ों की तरह उनकी भी जड़ें भीतर ही भीतर कटती रहती हैं और वे बौनी जिन्दगी बिताते रहते हैं। जो पेड़ बढ़ना और फलना-फूलना चाहता है उसकी जड़ों को गहराई तक जाना जरूरी हैं। जो मनुष्य उन्नतिशील बनना चाहता है उसके लिए यही उचित है कि अन्तरात्मा की जमीन में सद्गुणों को जड़ों की निरन्तर बढ़ाता चले, जब तक जड़ें न बढ़ेंगी पेड़ के बढ़ने और फलने फूलने की आशा कैसे की जा सकती है?
स्वामी रामतीर्थ