यूँ तो जीने के लिए लोग जिया करते हैं,
लाभ जीवन का नहीं फिर भी लिया करते हैं,
मृत्यु से पहले भी मरते हैं हजारों, लेकिन-
जिन्दगी उनकी है जो मरके जिया करते हैं।
-सोम तिवारी
मैं चलता, मेरे साथ-साथ साहस चलता है,
मैं चलता, मेरे साथ हृदय का रस चलता है,
मैं चलता, मेरे साथ निराशा-आशा चलती
मैं चलता, मेरे साथ सृजन की भाषा चलती
मैं चलता, मेरे साथ ग्रहण, सर्जन चलता है
मैं चलता, मेरे साथ नया जीवन चलता है।
-उदय शंकर भट्ट
शक्ति हीन को हो पाती है लक्ष्मी प्राप्त नहीं?
अकर्मण्य जीवन क्या मानव के हित शाप नहीं?
सतत् परिश्रम करने वाले का सहचर ईश्वर!
चले चलो, बस चलो निरन्तर जीवन के पथ पर!
चलना ही देता चलने वाले के पद में बल,
आत्मा पाती तुष्टि कर्म को मिल जाता है फल,
पुरुषार्थी का पाप स्वेद बन बह जाता सत्वर!
चले चलो, बस चलो निरन्तर जीवन के पथ पर!
- विद्यावती मिश्र
जो साथ न मेरा दे पाये उनसे कब सूनी हुई डगर।
मैं भी न चलूँ यदि तोभी क्या राही मर लेकिन राह अमर।
इस पथ पर वे ही चलते हैं जो चलने का पा गए स्वाद।
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला, उस -उस राही को धन्यवाद॥
-शिव मंगलसिंह ‘सुमन’
मैं मुसाफिर हूँ कि जिसने है कभी रुकना न जाना,
है कभी सीखा न जिसने मुश्किलों में सिर झुकाना,
क्या मुझे मंजिल मिलेगी या नहीं- इसकी न चिन्ता-
क्योंकि मंजिल है डगर पर सिर्फ चलने का बहाना!
- नीरज
जो डर जाते बाधाओं से उनके पथ में-
ही फूल शूल बन कर चुभ जाया करते हैं।
पर जो रख जान हथेली पर आगे बढ़ते -
पथ दे उनकी पर्वत झुक जाया करते हैं!!
- रामस्वरूप खरे
एक तुम्हारा ही हो जाऊँ यह कैसा प्रतिबन्ध तुम्हारा,
जिसका जहाँ हुआ मैं अब तक वही हो गया रूप तुम्हारा।
एक तुम्हीं बनते अनेक जब, मैं एकाकी का एकाकी-
एक अनेकों पर बलि जाऊँ तो कैसा उपहास तुम्हारा।
- यमुनेश श्री वास्तव
ध्येय नया, ध्यान नया धर्म चाहिए,
गेय नया, गान नया मर्म चाहिए,
पेय नया, पान नया श्रेय चाहिए,
रीति नई नीति नई, नया कर्म चाहिए।
भावना नई, नये विचार चाहिए।
चेतना नवीन, नया ज्वार चाहिए॥
- विनोद रस्तोगी
जिसने मरना सीख लिया है जीने का अधिकार उसी को।
जो काँटों के पथ पर आया, फूलों का उपहार उसी को॥
जिसने गीत सजाये अपने,
तलवारों के झन-झन स्वर पर
जिसने विप्लव राग अलापे
रिमझिम गोली के वर्षण पर
जा बलिदानों का प्रेमी है, है जगती का प्यार उसी को। 1।
हँस - हँस कर इक मस्ती लेकर
जिसने सीखा है बलि होना,
अपनी पीड़ा पर मुस्काना
औरों के कष्टों पर रोना,
जिसने सहना सीख लिया है संकट है त्योहार उसी को । 2।
दुर्गमता लखा बीहड़ पथ की
जो न कभी भी रुका कही पर,
अनगिनती आघात सहे पर
जो न कभी भी झुका कहीं पर,
झुका रहा है मस्तक अपना, यह सारा संसार उसी को। 3।
जिसने मरना..................
-’अज्ञात’
गायत्री की उच्चस्तरीय साधना
(गायत्री महाविद्या की सामान्य जानकारी तथा उपासना विधि अब तक अखण्ड-ज्योति में प्रकाशित होती रही है। इस मांग पर श्रद्धा रखने वाले जिज्ञासुओं को अधिक महत्वपूर्ण प्रशिक्षण देने के लिए उच्चस्तरीय गायत्री साधना का उल्लेख इस स्तंभ के अंतर्गत भविष्य में नियमित रूप से किया जाता रहेगा।)