दो शिष्य

September 1963

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दो शिष्य आपस में झगड़ पड़े। दोनों अपने-अपने को बड़ा सिद्ध करते थे। अपनी बड़ाई और दूसरे की मधुता सिद्ध करने के लिए दोनों ने ढेरों तर्क और प्रमाण उपस्थित कर दिये।

बात बढ़ी तो विवाद को लेकर दोनों गुरुदेव के पास पहुँचे और अपना अपना पक्ष उपस्थित करते हुए निर्णय देने की प्रार्थना करने लगे।

गुरुदेव ने हँसते हुए कहा- तुम इतना भी नहीं जानते कि जो अपने को छोटा और दूसरों को बड़ा कहता है उसी को बड़ा माना जाता है। तुममें से जो ऐसा आचरण कर रहा हो वही बड़ा है।

सन्त नानक एक गाँव में गये। वहाँ के निवासियों ने बड़ा आदर किया- चलते समय नानक जी ने आशीर्वाद दिया- ‘उजड़ जाओ।’

वे दूसरे गाँव में गये तो वहाँ के लोगों ने तिरस्कार किया, कटु वचन बोले और लड़ने झगड़ने पर उतारू हो गये। नानक जी ने आशीर्वाद दिया- ‘आबाद रहो।’

साथ में चल रहे शिष्यों ने पूछा- भगवन् ! आपने आदर करने वालों को ‘उजड़ जाओ’ और तिरस्कार करने वालों को ‘आबाद रहो’ का उलटा आशीर्वाद क्यों दिया?

नानक ने कहा- सज्जन लोग उजड़ेंगे तो वे बिखर कर जहाँ भी जायेंगे सज्जनता फैलावेंगे इसलिए उनका उजड़ना ही ठीक है। किन्तु दुर्जन सर्वत्र अशान्ति उत्पन्न न करें इसलिए उनके एक ही जगह रहने में भलाई है।


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