सितारे की चमक

September 1963

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आसमान से गिर कर अपनी ओर आते हुए सितारे को देख पृथ्वी आश्चर्य चकित बोली “ तुम इतने उच्च स्थान पर थे नीचे क्यों आ गिरे।”

सितारे ने जवाब दिया “ देवी? तुम मुझे अपने स्थान से काफी ऊँची दिखाई देती थी। लम्बे समय से तुम्हें पाने के लिए मैं तपस्या कर रहा था आज वह शुभ दिन आया है।”

“आकाश में तो बहुत चमकीले दिखाई देते थे किन्तु अब तुम ऐसे नहीं लगते? पृथ्वी ने पूछा “यही मैं भी तुमसे जानना चाहता था, दूर से तो तुम जगमगाती हुई नजर आती थी सोचा था तुम से मिल कर मैं अपना कालापन छुड़ा लूँगा।” सितारा बोला।

आश्चर्यचकित हो धरती ने कहा “ सचमुच मैं तुम्हें चमकती नजर आती थी” यह कहकर उसने अपने आपको देखा किन्तु उसे चारों ओर अंधकार ही नजर आया। वह उदास हो गई।

सितारे ने कहा जब दूर से मुझे तुम जगमगाती नजर आती थी और तुम्हें मैं। तो फिर हम ऐसा ही क्यों नहीं मानलें कि दोनों ही उजले और जगमगाते हुए उच्च हैं।”

बात समझ की थी। दोनों को ही भा गई। आलिंगन पाश में बंधे हुए दोनों ही अपने चारों ओर का अनुभव कर रहे थे। अंधेरे की कलूटी कुरूपती ने यह देखा तो वहाँ से चुपचाप चल दी।


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