दंड व्यवस्था

September 1963

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

व्यभिचार के अपराध में एक स्त्री को पकड़ कर लाया गया। पंचों ने निश्चय किया कि पत्थर मार-मार कर उसका वध कर डाला जाय।

दर्शकों की भीड़ पत्थरों के बड़े-बड़े टुकड़े हाथ में लिए खड़ी थी। अपराधिनी का मस्तक लज्जा से झुका था, वह भय से थर-थर काँप रही थी।

ईसा उधर से निकले। लोगों ने उन्हें रोका और इस अपराध एवं दंड व्यवस्था पर अपना अभिमत प्रकट करने का अनुरोध किया।

लोगों को संबोधन करते हुए ईसा ने कहा- अपराधी को दंड देना उचित है, पर पत्थर उन्हें मारने चाहिए जिन्होंने कभी अपराध न किया हों। जो कभी व्यभिचार कर चुके हों उनके लिए तो ऐसा करना सरासर अनुचित है।

इस विवेक व्यवस्था को दर्शकों ने ध्यानपूर्वक सुना। हाथों में रखे पत्थर नीचे गिरने लगे भीड़ खिसकना आरम्भ हो गई। वध स्थली पर अपराधिनी और ईसा दो ही खड़े थे। ईसा ने कहा- भटकने वाली लड़की जा, प्रभु से क्षमा माँग और नेक जीवन व्यतीत कर।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles