संतुलित आहार में प्रोटीन का उपयुक्त भाग रहना अति आवश्यक है। निरन्तर हमारी शरीर कोशिकाओं का क्षरण होता रहता है, जिसकी पूर्ति प्रोटीन की उपयुक्त मात्रा से ही होती है। भोजन में इसका सन्तुलन बिगड़ने से शारीरिक वृद्धि रूक जाती है। शरीर सूखने लगता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है। अधिक परिश्रम भी नहीं हो पाता है तथा मृत्यु और बुढ़ापे का संदेश जल्दी ही सामने आ उपस्थित होता है। इस दृष्टि से आहार विज्ञान में दालों को ‘‘बॉडी बिल्डिंग’’ शरीर निर्माणकारी उत्तम प्रोटीन, काबोहाइड्रेट, विटामिन तथा खनिज लवणों व अन्य सभी पोषक तत्वों से भरपूर व सर्वोपरि बताया गया है।
भारतीय आहार में व्यवहृत दालों के अन्तर्गत चना, अरहर, मूँग, उड़द, मसूर आदि प्रमुख हैं, जिनको कि अल्प साधनों वाले व्यक्ति भी नियमित रूप से सेवन कर सकते हैं और वे प्रोटीन तथा अन्य पोषक तत्वों की कुपोषणता से बच सकते हैं। आहार विज्ञानियों के विश्लेषणों व अनुसंधानों से यह तथ्य अब बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि माँस की अपेक्षा दालों में प्रोटीन अधिक होता है। आहार विज्ञान के वर्गीकरण के अनुसार प्रति १०० ग्राम दाल में पाई जाने वाली प्रोटीन की मात्रा- चना की दाल में २०८ प्रतिशत, मूँग की दाल में २४ प्रतिशत, उड़द की दाल में २४ प्रतिशत, अरहर की दाल में २२३ प्रतिशत, मूँगफली में २६ प्रतिशत और सोयाबीन में ४३.२ प्रतिशत, पाई जाती है। जबकी अण्डों में १३ प्रतिशत, मछली में १६ प्रतिशत तथा माँस में २० प्रतिशत से भी कम प्रोटीन पाया जाता है। इस प्रकार दालों में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है। इसके साथ ही दालें ‘‘बी’’ वर्ग के विटामिनों- विशेषकर थायमीन तथा फोलिक एसिड की सर्वोत्तम स्त्रोत होती हैं। इनमें नायसीन भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है।
अंकुरित साबुत दालें- जैसे कि अंकुरित चने और मूँग में ‘बी’ श्रेणी के प्राय सभी विटामिन तथा विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। डाक्टर बहुधा अपने बीमारों को जीवनी शक्ति बढ़ाने के लिए विटामिन ‘बी’ प्रयोग करने के लिए सलाह देते हैं, जिसका उपयोग रक्त की कमी, अपच, थकान, स्नायु, दुर्बलता जैसी कठिनाईयों में आवश्यक मानते हैं। लोग खरीदते भी हैं और खाते हैं लेकिन वह लाभ स्थाई रुप से मिलता नहीं, जो कि स्वाभाविक मात्रा सामान्य खाद्य पदार्थों के माध्यम से पेट मे जाकर पचती हैं और रक्त में सम्मिलित होती हैं तभी उसे शरीर अंगीकार करता है ऊपर की ठूँस- ठाँस को वह स्वीकार हीं नहीं करता हैं और उस बोझ को उतारकर प-
आहार विज्ञानियों कें अनुसार दालों में कैंल्शियम लौह, लवण तथा फास्फोरस भी अच्छी मात्रा में उपलब्ध होता हैं। विभिन्न प्रकार के एन्ज़ाइम के स्त्रोत तो दालें हैं ही। इनके उपयोग के लिए साबुत दालों को रात भर जल में भिगोकर तथा लगभग २४ घण्टे के लिए इन फूली हुई दालों को गीले कपड़े में बाँधकर रखा जाना अनिवार्य होता है। इस प्रक्रिया में फलियों के अन्दर मौजूद ‘‘एन्जाइम’’ सक्रिय होकर दालों की पोषक मात्रा में बढ़ोत्तरी ला देते हैं। अंकुरण प्रकिया में फाइटेट तथा टैनन जैसे- कुपोषण कारक व शर्करायें विघटित हो जाती है तथा अंकुरित दालों में पेट में गैस उत्पन्न करने वाला प्रभाव नष्ट हो जाता है।
आहारशास्त्रियों ने सुविधा की दृष्टि से प्रोटीन को दो वर्गो में रखा है....पूर्ण और अपूर्ण प्रोटीन दूध, पनीर, मूँगफली आदि में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है और अपूर्ण प्रोटीन गेहूँ, मटर, जौ, सेम आदि में पाई जाती है जो जीवन तो बनाये रखती हैं, पर उसमें वृद्धि की गंजायश नहीं। यदि इनके साथ प्रोटीन युक्त पदार्थो को और मिला लिया जाय तो आहार
में सामंजस्य बिठाया जा सकता है।
साधारणतया अपने देश की गरीब जनता को आहार में प्रोटीन, विटामिन ए, रिबो
,, कैल्शियम जैसे पोषक पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाते। कैलोरी की आवश्यक मात्रा को भी वे ग्रहण करने में बहुत पीछे हैं। प्रोटीन मात्रों की अभावग्रस्तता केवल चिकनाई और कार्बोहाइड्रेट ही पूरी नहीं करती। ऐसी स्थिति में यह नहीं लेना चाहिए कि भोजन में कैलोरी और प्रोटिन की मात्रा कम हैं इसका रहस्य तो भोजन पकाने की उस कला में सन्निहित हैं जिसमें उपलब्ध खाद्य पदार्थों को सहीं ढंग से पकाकर उनका सदुपयोग किया जाता हैं। दूध, दही न मिलें तो चिन्तित होने जैसी बात नहीं। फल और हरी सब्जियों से भी यह शक्ति अर्जित की जा सकती हैं।
भोजन में कैलोरी की न्यूनता को पूरा करने लिए मूंगफली, सोयाबीन एवं जड़ या कंद वाली सब्जियों का सेवन करना अत्यधिक लाभप्रद पाया गया हैं। गाजर को पोषक विज्ञानियों ने सर्वाधिक उपयोगी बताया हैं। दाल की अपेक्षा मूँगफली अधिक महँगी पड़ती हैं, फल स्वरूप
जन सामान्य इसे अपने आहार में बहुत कम सम्मिलित रखते हैं लेकिन यह एक बहुत बडीं भूल हैं। एक- दो रुपये की दाल से १३८०कैलोरी ८६ ग्राम प्रोटीन की मात्रा प्राप्त होती है, जबकि उतने ही पैसों से यदि मूँगफली खरीद ली जाय तो २७५० कैलोरी तथा प्रोटीन की मात्रा दुगुनी प्राप्त हो जायेगी। सोयाबीन तो और भी अधिक सस्ती पड़ती है और प्रोटीन एवं पोषक शक्ति की दृष्टि से सर्वाधिक मात्रा वाली होती है। कन्द एवं जड़ों वाली सब्जियों को हरी पत्तियों वाली साग- भाजियों की तरह ही प्रयुक्त करते रहा जाय तो स्वास्थ्य संवर्धन का उद्देश्य पूरा होता रह सकता है।
प्रोटीन की कमी कैसे पूरी हो? यह प्रश्न प्राय लोगों के मन- मस्तिष्क में निरन्तर खटकता रहता है। नवीनतम शोध अनुसंधानों के आधार पर आहार विज्ञानियों ने इस संदर्भ में निष्कर्ष निकाला है कि प्रोटीन की मात्रा में अभिवृद्धि करनी है तो कम और अधिक ‘‘लाइसीन’’ वाले दो पदाथों के सम्मिश्रण से यह उद्देश्य पूरा किया सा सकता है। सोयाबीन की दाल और अनाज को परस्पर मात्रा में मिला देने से प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा शरीर को मिल जाती है। इसी तरह यदि कोई भी व्यक्ति ५० ग्राम हरी पत्ती वाली सब्जियों का इस्तेमाल भोजन में रोजाना करता रहे, तो उसे विटामिनों की कमी नहीं रह सकती। छोटी आयु के बच्चों के लिए तो इसकी ३० ग्राम मात्रा ही पर्याप्त है। इसमें दालों का सम्मिश्रण कर देने से सभी के लिए पर्याप्त पोषक तत्व मिल सकते हैं।
शारीरिक पोषण के लिए प्रोटीन बहुत आवश्यक है। वैसे यह दूध, पनीर, आदि में अधिक मात्रा में उपलब्ध होती है, किन्तु उसे हम सस्ते दामों में पाई जाने वाली वस्तुओं से भी प्राप्त कर सकते हैं जैसे- सोयाबीन, गेहूँ, फलियाँ तथा मूँगफली। बहुत सी सब्जियों द्वारा भी प्रोटीन प्राप्त कि जा सकती है। सब्जियों को अधिक मसालों में बिना भुने स्वादिष्ट ढंग से तैयार करके चावल, दाल, बेसन तथा आटे का प्रयोग किया जाय तो शरीर को वे सभी प्रोटीन मिल सकेगें जिनकी हमारे शरीर को आवश्यकता है। हरी सब्जियों एवं सोयाबीन में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, इसीलिए शाकाहारी व्यक्तियों को डाक्टर सोयाबीन खाने का परामर्श दिया करते हैं।