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भारतीय संस्कृति का विस्तार रूस में

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मध्य एशिया होता हुआ बौद्ध- धर्म ईसा की प्रथम शताब्दी में ही रूस भी पहुँच गया था ।। उसका प्रथम प्रवेश खोरेज्मा में हुआ ।। वहाँ से वह कैस्पियन सागर, अरब सागर तथा प्रशान्त महासागर के सुविस्तृत भू- खण्ड में फैला ।। सातवीं शताब्दी में समरकन्द में एक विशाल बौद्ध विहार का पुनरुद्धार हुआ ।। कूचा और खोतान उन दिनों बौद्ध- धर्म के प्रधान केन्द्र थे ।। उनमें ऐसी दुर्लभ पाण्डुलियाँ संग्रहित थीं, जो भारत में भी नहीं मिल पाती थीं ।।

रूसी पुरातत्व विभाग की ढूँढ़- खोज में ऐसे अनेक स्मारकों ,, मन्दिरों, विद्यालयों, भित्तिचित्र, शिलालेख, ग्रन्थों, मूर्तियों तथा भग्नावशेषों का संग्रह किया गया है, जो उस देश में प्राचीन काल की बौद्ध संस्कृति के प्रसार का प्रमाण देते हैं, तमीज नगर के पास पत्थर की बुद्ध प्रतिमायें मिली हैं और उसी स्थान पर एक बौद्ध- मन्दिर के काँसे और मिट्टी सहित अवशेष भी उपलब्ध हुए हैं ।।

किरगीजिया क्षेत्र में चू नदी की उपत्यका में भी बहुत से बौद्ध अवशेष मिले हैं ।। दझूल नगर के पास तो एक पूरा विहार ही मिला है, जिनमें भिक्षुओं के निवासगृह चैत्य, मन्दिर आदि की व्यवस्था मौजूद थी ।। मूर्तियाँ, चित्र, भवन, मन्दिर की वास्तु शैली देखते हुए यह निष्कर्ष निकलता है कि वहाँ भारतीय बौद्ध प्रचारक ही नहीं कुशल कारीगर भी बड़ी संख्या में पहुँचे थे ।।

तुर्कमानिया के 'बैराम अबी' स्थान की खुदाई में जो प्राचीन बौद्ध मन्दिर मिला है, उसमें एक ऐसा पात्र भी है, जिसमें छोटी- छोटी मूर्तियाँ तथा पाचवीं सदी के ईरानी सिक्के भी रखे हैं ।। इसी के साथ भोज- पत्र पर लिखे हुए पाँचवीं शताब्दी के बौद्ध धर्म के ग्रंथ भी मिले हैं ।। सेमिरेच्ये (अकवेशी), कास्नारेचेन्स्क, कुवा (फरगाना) आरजिना लेपे (ताजिकिस्तान) में उपलब्ध अवशेषों से स्पष्ट है कि उन क्षेत्रों में बौद्ध धर्म ईसा की दूसरी- तीसरी शताब्दी में मौजूद था ।। मंगोलिया में उसकी जड़ें जम चुकी थीं ।। कई मंगोल सरदार बौद्ध धर्म दीक्षित हो चुके थे ।। 'मंगोल- ओइरात' बौद्ध थे ।। सन् १६२० में होशुत राजकुमार वैवागस दातार बौद्ध धर्म के पीत सम्प्रदाय का अनुयायी था ।। यह मंगोल वोल्गा के किनारे- किनारे आगे बढ़े और उन्होंने रूस के काफी बड़े क्षेत्र में बौद्ध धर्म फैलाया ।। उन्हीं दिनों साइबेरिया के बेकाल प्रदेशों में बौद्ध धर्म पनपा ।। १५० तिब्बतही बौद्ध भिक्षु वहाँ पहुँचे और उन्होंने खानाबदोश वुर्यात जनजाति को दीक्षित किया ।। 'उलान बतौर' के गंवन विहार में भारतीय धर्मप्रचारक भी पहुँचे थे ।। उनमें से एक और भिक्षा पात्र तो अभी तक सुरक्षित रखा हुआ है ।। वुर्यातिया का प्रथम बौद्ध- विहार 'सेलिंगन' क्षेत्र में 'त्स्सोङ् गोल दजान' नाकक स्थान में विनिर्मित हुआ था ।।

रूस के सेमीरेक (सप्तनद) क्षेत्र में छठवीं से लेकर बारहवीं सदी के मध्यवर्ती ऐसे अनेक अवशेष मिले हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि वहाँ प्राचीन काल में बौद्ध धर्म आधिपत्य था ।। पुरातत्व- विभाग ने जो अवशेष प्रप्त किये हैं, उनसे स्पष्ट है कि 'चू' उपत्यिका के निकट 'आस्मिक अता' में बौद्ध धर्म माना जाता था और बारहवीं सदी में वहाँ विशालकाय बौद्ध विहार बने थे ।। सारिंग नदी में उपत्यिका में छठी सदी के बने भित्ति- चित्र पाये गये हैं, जिनसे वहाँ उन दिनों बौद्ध धर्म का प्रचलन सिद्ध होता है ।। बलाशगून में बुद्ध प्रतिमायें मिली हैं ।। तलस में भी छठी सदी के ऐसे ही अवशेष मिले हैं ।। पुरातत्व विज्ञानी बर्नश्ताम ने उसी क्षेत्र में अनेक धातु प्रतिमायें तथा संग्राह्य अवशेष ऐसे प्राप्त किये है, जिन्हें देखने से उस क्षेत्र में प्रतिष्ठित बौद्ध आस्था का भली- भाँति परिचय मिलता है ।।

रूसी भाषा में संस्कृत शब्दों की भरमार है ।। ईसा की दसवीं शताब्दी तक रूसी लोग देवताओं की पूजा करते थे, जो भारत में पूजित होते थे ।। लिथुवानिया और लाताविया की भाषायें यूरोप की भाषाओं की अपेक्षा संस्कृत के अधिक समीप हैं ।। 'वाल्हस एण्ड आर्यन्स' ग्रंथ में इस क्षेत्र के निवासियों को प्राचीन काल में आर्य- वंश का ही सिद्ध किया है ।।

रूस का उजेविकिस्तान प्रदेश यों इन दिनों मुसलमानी प्रभाव में है, पर प्राचीनकाल में वह भारतीय संस्कृति का केन्द्र रहा है ।। मध्य युग की इमारतों के अवशेष जहाँ भी उपलब्ध हैं, उन पर भारतीय स्थापत्य कला और संस्कृति की गहरी छाप है ।। आमू नदी के किनारे बसे तमीज नगर की खुदाई में बौद्ध प्रतिमायें और दैत्यों के अवशेष मिले हैं ।। इस प्रदेश का प्रमुख नगर 'बुखारा' इतिहासकारों के अनुसार 'विहार' शब्द का ही तुर्की उच्चारण है ।। ताशकन्द के स्त्री- पुरुषों की पोशाक भारतीय पहनावे से मिलती- जुलती है ।।

 तुर्कमानिया प्रदेश के अनेक स्थानों पर भारतीय संस्कृति के अवशेष बिखरे पड़े हैं ।। अश्काबाद से ४०० किलोमीटर आगे विशालकाय 'मेर्व' की खुदाई में ऐसे अनेकों अवशेष मिले हैं ।। यहाँ सात मीटर ऊँचा एक बुद्ध प्रतिमा मिली है । ब्राह्मी लिपि में ताड़ पत्र पर लिखा एक बौद्ध ग्रंथ भी उसी काल का मिला है ।। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और तुर्की, फारसी, अरबी तथा संस्कृत के विद्वान रहीम, जिनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था, वे तुर्कमानिया के ही निवासी थे भारतीयता के प्रति उनका अनुराग अपने जन्मकाल से ही वहाँ के वातावरण द्वारा उपलब्ध था ।।

इस्लाम के मध्यकालीन दबाव और वर्तमान नास्तिकवादी प्रभाव के बावजूद वुर्यातिया प्रान्त भी अपनी बौद्ध निष्ठा को बहुत हट तक यथावत बनाये हुए है ।। बेकाल झील के दक्षिण पूर्व बर्फीली चोटियों से ढका हुआ विपुल प्राकृतिक सम्पदाओं वाला यह प्रदेश है ।। इसका क्षेत्रफल 315 वर्ग किलोमीटर और आबादी सात लाख है ।। क्षेत्रफल की दृष्टि से इसे जापान के बराबर ही कह सकते हैं ।।
रूस के समाचार- पत्रों में इस खोज की विस्तृत चर्चा छपी थी कि काकेशस क्षेत्र में कालासागर के तट पर माइस सेनेटोरियम के निकट खुदाई में जो मूर्तियाँ मिली हैं, वे इस बात को प्रमाणित करती हैं कि किसी क्षेत्र में 'आदवरोइस' नामक कबीला निवास करता है कि वे भारतीय मूल के लोग हैं ।। पीढ़ियों से रूस में बसे होने के कारण वे अब रूसी ही हैं ।। फिर भी उनका संस्कृति रुझान भारतीयों जैसा है ।। उनमें प्रचलित लोक कथाओं में से 3 कथायें भारतीय पुराणों की हैं ।। आभूषण वे भारतीयों जैसे पहनते हैं ।। वे रूस में रहते हुए भी अपने आप को भारतीय मूल का मानते हैं ।।

रूस में भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में कम दिलचस्पी नहीं है लेनिनग्राड विश्वविद्यालय में प्राच्य विद्या के अध्ययन की अच्छी व्यवस्था है ।। संस्कृत, पाली और प्राकृतिक भाषाओं के उद्भट, विद्वान आई.पी. मिनियेव ने इसका श्रीगणेश किया था ।। एस. ओल्डनबर्ग और शेर्वात्सकी ने भारतीय तत्त्वज्ञान पर शोध एवं तद्विषयक अध्ययन पर महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं ।। शेर्वात्सकी संस्कृत में धारा प्रवाह भाषण कर सकते थे ।। उन्होंने लम्बी यात्रायें करके उस देश में पड़ा बौद्ध साहित्य एकत्रित किया था ।। एल बजेई वारान्निकोव के सम्पादकीय में ''हिन्दी- रूसी कोष' विनिर्मित हुआ है । उन्हीं ने रूसी भाषा में रामचरितमानस का पद्यानुवाद भी किया ।। उनकी समाधि पर तुलसीदास का यह दोहा अंकित है ।।
भलो भलाई पै लहहिं, लहै निचाई नीच ।।

सुधा सराही अमरता, गरल सराही मीच ॥
रूस भारत से दूर नहीं है ।। प्राचीन काल में यहाँ के प्रचारक अपने अटूट उत्साह का सहारा लेकर वहाँ पहुँचते थे और भारतीय संस्कृति के दिव्य लाभों से उस क्षेत्र को भी प्रभावित- प्रकाशित करते थे ।। बम्बई से रूस की राजधानी मास्को 56 ‍ मील है ।। नौ सौ मील प्रति घण्टे की चाल से चलने वाले मध्यवर्ती वायुयान से साढ़े छः घण्टे में इस दूरी को पार कर लेते हैं ।। श्री मिखाईल गोर्बाच्योव के राष्ट्रपति बनने के बाद अब साम्यवादी अधिनायकवाद यहाँ समाप्त हो रहा है ।।

(समस्त विश्व का अजस्र- अनुदान पृ.सं.३.३३- ३४)

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