हो जीवन के तार तरंगित की स्वर-लहरियों से

June 2000

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संगीत की स्वर लहरियोँ का जादू जीवन में उल्लास की अनोखी सृष्टि तक ही सीमित नहीं है। इसका स्पर्श रोग निवारक भी है। आधुनिक वैज्ञानिक जगत में चले रहे शोध-आधुनिक वैज्ञानिक जगत में चल रहे शोध अनुसंधान इसके दर्द-निवारक एवं चिकित्सकीय पक्ष को भी उभार रहे है। जर्मनी के डॉ राल्फ स्पिंटगे ने अपने दर्द-निवारक चिकित्सालय में 90000 रोगियों पर संगीत के प्रभाव का अध्ययन किया है। राल्फ के अनुसार संगीत रोग के पुनर्सुधार की गति को बढ़ाता है। दर्द भरी शल्यक्रिया में पंद्रह मिनट का प्रशामक संगीत बेहोश करने वाली दवाइयों की मात्रा को 50 प्रतिशत तक कम कर देता है। अपनी पुस्तक अवेकनिंग में तंत्रिकाविज्ञानी ओलिवर सेक संगीत के सकारात्मक प्रभावों पर लिखते हैं कि संगीत की चिकित्सकीय उपयोगिता अद्भुत है। यह रोगी में वह शक्ति भरती है, जो सामान्यतया असंभव प्रतीत होती है। इस क्रम में चीन के वैज्ञानिकों ने ऐसी म्यूजिक मशीन का निर्माण किया है, जिसकी मधुर स्वर लहरियों से हृदय एवं पाचन-संस्थान संबंधी बीमारियों एवं मानसिक विकारों का उपचार किया जाता है।

नई दिल्ली स्थिति ‘शक्ति विकास प्रकल्प के संस्थापक व अध्यक्ष ई. कुमार ने संगीत चिकित्सा पर गहन शोध किया है। उनका दावा है कि वे संगीत की स्वर लहरियों से सैकड़ों रोगियों को ठीक कर चुके है। श्री कुमार का कहना है कि संगीत प्रकंपनों से जटिलतम रोगों को ठीक किया जा सकता है और पागलपन की सीमा तक जा चुके रोगियों को भी स्वस्थ किया जा सकता है। इससे दर्द मुक्त प्रसव भी कराया जा सकता है। उनके अनुसार तनाव ही रोगों का मूल कारण है। तनाव से बायोरिदम में असंतुलन आ जाता है जिससे तरह तरह की विसंगतियाँ जन्म लेती है। संगीत द्वारा विशेषकर शास्त्रीय एवं संकीर्तन आदि से बायोरिदम स्थापित हो जाती है और रोगों से राहत मिलती है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाँइसेज (निमहंस) बैंगलोर की डॉ.वी.एन. मंजुला न्यूरोसिस एवं साइकोसिस में संगीत की चिकित्सकीय उपयोगिता को अलग अलग रूप में व्यक्त करती है। डॉ. मंजुला के अनुसार अवसाद में स्वयं रोगी के स्वर में गीत अधिक उपयोगी होता है, जबकि एंग्जाइटी न्यूरोसिस में तारयुक्त वाद्ययंत्र में बजाया गया सुमधुर संगीत विशेष रूप से लाभदायक पाया गया है। मोनिया (उन्माद) के संदर्भ में तीव्र संगीत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह सुझाव देते हुए वे कहती है कि सभी संगीत उपयोगी हो सकते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि संगीत से व्यक्ति का संबंध जुड़ना चाहिए और संगीत सुनने से बेहतर होगा कि रोगी स्वयं गीत गाए या वाद्य यंत्र बजाए।

मनोचिकित्सक चुघ भी संगीत की अवसाद निरोधी क्षमता को स्वीकारते हुए इसे उपचारार्थ परामर्श देते हैं। उनके अनुसार वोकल एवं इंस्ट्रूमेंटल दोनों ही मधुर संगीतों से मस्तिष्क से कुछ रसायनों का उत्सर्जन होता है। जो अवसाद या मन की निषेधात्मक अवस्था को निरस्त करते हैं। शोध अध्ययन के अनुसार संगीत स्त्रोत से उत्पन्न होने वाली तरंगें बाह्य स्तर पर शुरू होते होते क्रमश शरीर के गहनतम में प्रवेश कर जाती है। और शरीर के विविध अंग अवयवों में विशेष तरह का स्पंदन स्थापित करती है, विशेष रूप से मस्तिष्क के दांये गोलार्द्ध में। इसी आधार पर मंदबुद्धिता डिमेंशिया आदि में संगीत की उपयोगिता समझी जा सकती है।

मनोवैज्ञानिक एवं संगीतज्ञ डॉ. जॉन ऑप्टिज का कहना है कि संगीत न केवल गूढ विकार को ठीक करता है बल्कि यह स्वास्थ्य को भी सुधारता है। अपनी पुस्तक ‘द’ ताओ ऑफ म्यूजिक में उन्होंने अलग-अलग तरह की समस्याओं से राहत पाने कि लिए विशेष तरह से विविध संगीत का परामर्श दिया है। जार्जिया के पिडमोंट अस्पताल के गहन चिकित्सा केंद्र में कार्यरत डॉ फेड स्वार्ज बच्चों के जन्म पूर्व एवं जन्मोत्तर चिकित्सा के विशेषज्ञ है। उन्होंने समय से पूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं को चुप कराने के लिए जन्म लेने वाले शिशुओं को चुप कराने के लिए गर्भाशय संगीत आविष्कृत किया है। यह उन्होंने बहुत ही संवेदनशील माइक्रोफोन की सहायता से गर्भवती पत्नी के गर्भाशय में होने वाले शोर को रिकार्ड कर व उसके साथ स्टूडियो में हलकी संगीतमय धुनों एवं महिलाओं की आवाजों को मिश्रित कर रचा है। इसका प्रभाव जानने के लिए स्वार्ज ने समय से पूर्व जन्मे शिशुओं पर प्रयोग किया। पाया गया कि इस संगीत के प्रभाव से वे पहले से अधिक शाँत हो गए व अधिक देर तक सोए। इन बच्चों का विकास भी संगीत के प्रभाव से बहुत तीव्रता से होता देखा गया।

आधुनिक रॉक म्यूजिक के संदर्भ में न्यूयार्क के सिनाय हॉस्पिटल के डॉ. जॉन डायमंड का मानना है कि यह संगीत दिल को दुरुस्त रखने के बजाय धड़कनों को बढ़ाकर रोगों को न्योता दे सकता है। इसी विषय पर अमेरिका के ही ओहियो विश्वविद्यालय के पैथालॉजी के प्राध्यापक डॉ हरिशर्मा और उनके साथी कॉफमैन एलन व स्टीफेन की शोध के अनुसार रॉक संगीत हृदय की ही नहीं कैंसर जैसी असाध्य एवं पीड़ादायक बीमारियों को भी भड़काने वाला है। सामवेद की ऋचाओं एवं ब्लैक एंड ब्लैक संगीत के शरीर पर प्रभाव के तुलनात्मक अध्ययन में उन्होंने देखा कि कैंसर कोशिकाओं में 25 प्रतिशत की न्यूनता आई। इन शोध निष्कर्षों से दो बाते स्पष्ट हुई कि तेज हार्टबीट की स्वर लहरियाँ स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होती है। म्यूजिकोजेनिक मिरगी में तो ये जानलेवा भी सिद्ध हो सकती है। दूसरा तथ्य यह भी है, जो ध्यान आदि यौगिक प्रक्रियाओं की होती है।

मैसूर के श्री गणपति सच्चिदानंद स्वामी नाद चिकित्सा के अंतर्गत राग रागिनी विद्या के पुनरुद्धार का कार्य कर रहे है। भारतीय रागों एवं उनके चिकित्सकीय प्रभाव पर चैन्नई स्थित राग रिसर्च सेंटर भी कई संगीतज्ञ चिकित्सकों एवं मनःचिकित्सकों के साथ अध्ययन में जुटा हुआ है। इस शोध के अंतर्गत आनंद भैरवी एवं नासिका भूशनी पर अनुसंधान दर्द निवारक व बुढ़ापे से जूझने वाले रागों पर भी काम चल रहा है।

इसी सेंटर में विहैवियरल एनालिसिस एंड मैनेजमेंट विभाग के अध्यक्ष डॉ गौतमदास दारा भावनात्मक रूप से असंतुलित 90 प्रतिशत व्यक्तियों पर 20 मिनट का संगीत प्रयोग किया गया। इनमें प्रथम 30 के समूह को शंकर मरनम् (कर्नाटक) व द्वितीय 30 व्यक्तियों को फिल्मी संगीत सुनाया गया व तीसरे समूह को कुछ भी नहीं सुनाया गया। दो सप्ताह तक किए गए इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि प्रथम समूह में 22 व्यक्तियों का तनाव स्तर तीव्रता से कम हुआ। दूसरे समूह में मात्र 8 व्यक्तियों में कुछ सुधार हुआ, जबकि तीसरा समूह यथावत रहा।

विविध रागों को भिन्न भिन्न रोगों में अपने चिकित्सकीय प्रभाव के लिए उपयुक्त माना गया है। कफ के कुपित होने से संभावित रोगों के लिए राग भैरवी मानसिक चंचलता एवं क्रोध की स्थिति में मल्हार एवं जैजैवंती रक्तचाप में राग असावरी श्वास संबंधी रोगों तपेदिक खाँसी दमा आदि में राग भैरवी और उदर संबंधी रोगों में पंचम राग का प्रयोग बतलाया गया है। पागलपन की स्थिति में राग खंबुज अनिद्रा रोग में राग नीलाबंरा का उपयोग लाभदायक है। श्री राग से पाचनक्रिया ठीक होती है। राग वर्धिनी शरीर पीड़ा को दूर करता है। शरीर के क्रियाकलाप सामान्य एवं सहज ढंग से कार्य करें। इसके लिए राग तोड़ी को उपयुक्त बताया गया। इन प्रयोगों के लिए संगीत चिकित्सकों को राग, रोग व रोगी की मनः स्थिति का सही ज्ञान होना अति आवश्यक है। संगीत की अलौकिक विशेषताओं को समझकर अच्छा यही है कि हम ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले थकाऊ संगीत को तिलाँजलि दे डाले। कर्णप्रिय, सुमधुर स्वर लहरियों के साथ अपने जीवन के तार तरंगित करें। निश्चित तौर पर संगीत की जादुई छुअन हमारे जीवन को स्वस्थ एवं उल्लास से परिपूर्ण बना देगी।


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