आत्मदीपक जल रहे हैं (kavita)

June 2000

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आत्मदीपक यह प्रभो ! तुमने जलाए जल रहे हैं। कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे हैं॥

पूज्यवर तुमने कहा था, अंश अपना दे रहा हूँ। कष्ट में घबरा न जाना, नाव तो मैं खे राह हूँ॥

साथ हो हरदम इसी विश्वास में हम पल रहे हैं। कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे हैं॥

हम जहाँ जाते वहीं संदेश देते सुदृढ़ मन से। त्याग दो दुष्प्रवृत्तियां साथी ! रहो सुख से अमन से॥

रहो बचकर विविध आकर्षण सभी को छल रहे हैं। कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे हैं॥

है जहाँ फैला अँधेरा ज्योति लेकर चल रहे हैं। ज्योति को रखने अखंडित स्नेह से हम जल रहे हैं॥

मेट देंगे कलुष वह विषवृक्ष बन जो फल रहे हैं। कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे है॥

है सक्रिय संजीवनी जो हमें दीक्षा में पिलाई। जल रही है ज्योति जो मन-प्राण में तुमने जगाई॥

लालिमा दिखने लगी है, तिमिर के कण गल रहे हैं। कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे हैं॥

मार्ग जो तुमने बताया उसी पर चलते रहेंगे। स्नेह से जलते रहेंगे, बीज से गलते रहेंगे॥

सृजनहित बलिदान होने, हृदय नित्य मचल रहे हैं। कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे हैं॥

*समाप्त*


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