साहस और इच्छाशक्ति से ही हुई है मानवी प्रगति

June 2000

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सहस्राब्दी बीत चुकी, पर उसकी रोमाँचक यादें अभी भी जीवंत है। इसमें जो अनूठी उपलब्धियाँ हासिल हुई है, वे नई सदी एवं सहस्राब्दी में भी मानव को कुछ नया कर दिखाने के लिए प्रेरित करती रहेंगी। पिछली सहस्राब्दी में मनुष्य ने धरती, अम्बर और सागर पर अनेकों विजय-अभियान रचे हैं। सहस्राब्दी का शुरुआती साहसिक अभियान लीफ एरिक्सन द्वारा किया गया, जो कोलंबस से लगभग पाँच सदी पूर्व ही उत्तरी अमेरिका पहुँच चुका था ग्रीनलैंड से पश्चिम की ओर चलते हुए वह अंगूरों की बहुतायत वाले इस क्षेत्र में पहुँचा, इसे विनलैंड नाम से जाना जाता है। इस प्रसंग की प्रामाणिकता सन् 1961 ई. के नार्वे अभियान दल ने 1000 ई. के वाइकिंग अवशेषों से पुष्ट की।

13 वीं सदी में वेनिस के खोजी यात्री एवं लेखक मार्कोपोलो एशियाई देशों में भ्रमण करने वाले प्रथम यूरोपीय हुए। सन् 1271 ई. में एक व्यापारी दल के साथ वे समुद्री मार्ग से होते हुए चीन पहुँचे। वहाँ कुबलाई खान के दरबार में उन्होंने अपनी सेवाएँ प्रस्तुत कीं। 25 वर्षों तक पूर्वी एशियाई देशों का भ्रमण करते हुए 1225 ई. में वह वापस धर लौटे। इस दौरान मार्कोपोलो ने चीन, रूस, बर्मा, जावा सुमात्रा, लंका, मेडागास्कर और फारस की यात्राएँ कीं। उनके यात्रा-विवरण 19 वीं सदी तक पूर्वी देशों के बारे में जानकारी देने वाले एकमात्र स्त्रोत रहे।

सन् 1492 ई. में भारतवर्ष की खोज में निकले इटली के साहसी नाविक क्रिस्टोफर कोलंबस की समुद्री-यात्रा सहस्राब्दी की एक रोमांचक यादगार बनी। उसकी अभिलाषा यूरोप के पश्चिमी मार्ग से अटलाँटिक महासागर को पार करते हुए भारत पहुँचने की थी। किन्तु नियति ने उसके लिए दूसरी ही खोज तय कर रखी थी। भारत के बजाय वह बहामा द्वीप के समीपस्थ टापुओं पर जा पहुँचा, जिन्हें आज भी वेस्टइंडीज के नाम से जाना जाता है। इस तरह कोलंबस ने अमेरिका की खोज की।

भारत को खोजने का श्रेय पुर्तगाली नागरिक वास्कोडिगामा को मिला। वह अफ्रीका के रास्ते हिंदमहासागर को पार करते हुए आगे बढ़ा। इस माह की कठिन यात्रा के बाद 18 मई 1498 को वह दक्षिण पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट बंदरगाह पर पहुँचा।

अमेरिका की कोलंबस द्वारा खोज के बाद यहाँ यूरोपीय यात्रा अभियान का सिलसिला शुरू हो चुका था। इसी क्रम में 1499 ई. में स्पेन के अलेसोडी ओजेवा ने वेनेजुएला की खोज की। 1499-1501 के बीच इटली के अमेरिगो वेस्पुसी ने अमेरिका महाद्वीप की यात्रा की और वह इसके अंदरूनी हिस्सों तक गया। फरवरी 1500 ई. में स्पेन का संट विजोन दक्षिण अमेरिका के तटीय क्षेत्रों में पहुँचा। अप्रैल 1500 में पुर्तगाल के पैट्रो अल्वरेज ने ब्राजील की खोज की। 1500-1502 के मध्य गैस्कर ने लैबेडार की खोज की। लगभग 1501 ई. में स्पेन के रोड रिगोडी ने मध्य अमेरिका की यात्रा की। 1513 ई. में स्पेन के वास्को डी बल्वोज ने प्रशाँत महासागर की यात्रा की। 1519 ई. में स्पेन अलेसोडी ने मिसीसिपो नदी के उद्गम का पता लगाया। 1519 ई. में ही स्पेन के हर्नेदी कोर्टेस ने मैक्सिको की खोज की।

इस खोज अभियान से आगे बढ़कर मनुष्य की अदम्य जिजीविषा पृथ्वी की परिक्रमा के लिए संकल्पित हुई ऐसे दुस्साहसपूर्ण अभियान के नेता के रूप में पुर्तगाली नाविक मैगनल चिर स्मरणीय बने रहेंगे। 20 सितम्बर 1519 ई. के दिन वह अपने विक्टोरिया जहाज में सेविल शहर से पश्चिम की ओर रवाना हुए। तीन माह की यात्रा के बाद उनका छोटा-सा जहाजी बेड़ा पश्चिमी अमेरिका पहुँचा, इसके पश्चात् इसने प्रशाँत महासागर में प्रवेश किया। 18 दिन की कठिन यात्रा के बाद 1521 ई. में यह फिलीपींस पहुँचा। मार्ग में स्कर्वी रोग के कारण बहुत सारे सहयोगी चल बसे। यहाँ के स्थानीय लोगों के साथ लड़ाई में मैगनल मारा गया। किंतु इस परिक्रमा-अभियान को डेलकोनो ने पूरा किया व 6 सितंबर ....1522 ई. के दिन सकुशल सेविल पहुँचा।

मैगनल के बाद विश्व की परिक्रमा करने वाले दूसरे समुद्री यात्री सर फ्राँसिस ड्रेक हुए। यात्रा 13 दिसंबर 1566 को प्लाईमाउम से शुरू हुई। अभियान पाँच जहाजों के साथ दक्षिण अमेरिका की ओर बढ़ा। महासागर की यात्रा के बाद ड्रेक ने अकेले ही आगे जाने का निर्णय लिया और दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट से होते हुए आगे बढ़ते गए व 3 नवंबर को वापस प्लाईमाउम पहुँचे।

समुद्री यात्राओं को नया आयाम देने वालों में जेम्स कुक का नाम उल्लेखनीय हैं। इन्हें कई खोजों का श्रेय उपलब्ध है। इन्हें पूर्वी आस्ट्रेलिया का खोजी यात्री भी कहा जाता है। इनकी तीन समुद्री यात्राएँ रही। प्रथम यात्रा 1768 ई. में शुरू हुई, जिसमें जोसेफ वैक्स सहित कई वैज्ञानिक भी इनके साथ थे। प्रशाँत महासागर की गहराइयों को पार करते हुए ये ताहिती पहुँचे। कुछ समय बाद यह दल न्यूजीलैंड पहुँचा। आस्ट्रेलिया के पूर्वीतट की यात्रा करते हुए इन्होंने न्चू- साउथवेल्स और बौटनी की खोज की। दूसरी प्रमुख यात्रा अंटार्कटिक वृत्त के अन्वेषण की रही। 1772 ई. में कुक “रेजोल्यूशन” एवं “एडवेंचर” नामक जहाजों में दक्षिणी महाद्वीप की खोज में निकल पड़ा। इस दौरान ईस्टरद्वीप और माकेसास व टोंगा द्वीपों की खोज हुई। तीसरा व अन्तिम अभियान 1776 ई. में रेजोल्यूशन व डिस्कवरी जहाजों के साथ शुरू हुआ। यह अभियान हर्वी हवाई द्वीप-समूहों से होता हुआ वोरिंग स्ट्रेट तक जा पहुँचा। 1779 में लौटते समय कुक आदिवासियों से लड़ाई में मारा गया।

पश्चिम अफ्रीका के अगम्य वन्यप्रदेशों से होकर बहने वाली नाइजर नदी के अज्ञात रहस्यों को स्काटलैंड के खोजी यात्री मंगो फार्क ने अनावृत्त किया। 1795-1797 के बीच यह कार्य सम्पन्न हुआ। हय मार्ग भयंकर दलदल, भयानक जीव-जन्तुओं व खूँखार आदिवासियों से भरा हुआ था। इन सब कठिनाइयों का बहादुरी के साथ सामना करते हुए मंगो ने 18 माह में 2600 मील लंबी नाइजर नदी का सर्वेक्षण किया और इसके उद्गम का पता लगाया। यात्रा के अनुभव एवं शोधपूर्ण जानकारियाँ “ट्रेवल्य इन दी इंटीरियर ऑफ अफ्रीका” नामक ग्रंथ में प्रकाशित हुईं। 1798 में इसके प्रकाशन के साथ अफ्रीका में अंदरूनी क्षेत्रों में यात्रा संभावनाएँ खुली।

विश्व के सबसे बड़े रेगिस्तान सहारा को पार करने का साहस सर्वप्रथम 1822-23 के मध्य ह्यूक्लैपरटन ने किया। विकास की क्राँतिकारी अवधारणा प्रस्तुत करने वाले चार्ल्स डार्विन भी अपनी तरह के एक खोजी यात्री थे। 1831 से 1836 के दौरान इन्होंने दक्षिण अमेरिका एवं गालेपेगस की यात्रा की। अफ्रीका की जीवन-रेखा नील नदी के उद्गम का पता लगाने का श्रेय गिचर्ड बर्टन और जॉन हेनिंग को जाता है, जिन्होंने 1857 ई. में अफ्रीका की यात्रा की।

बर्फीले मरुस्थलों के कारण ध्रुवीय प्रदेशों की यात्रा सदैव ही एक विकट चुनौती रही हैं। अमेरिकी खोजी रॉबर्ट पीयरी और उसके सहायक मैथ्यू हेंसन ने 1909 में इस चुनौती को निरस्त करते हुए उत्तरी ध्रुव पर पहुँचने में सफलता हासिल की। बरफ से ढके दक्षिण महासागर की खोज सर्वप्रथम अमेरिका के नेट पाल्मर ने 1820 ई. में की थी। इसके बाद आयरलैंड के शेकलटन ने 1901 में सबसे पहले अंटार्कटिक महासागर की यात्रा की। 1909 में पियरी द्वारा उत्तरी ध्रुव की खोज के बाद दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने की होड़ सी लग गई 14 दिसम्बर 1911 को नार्वे के एमंडसन यहाँ पहुँचने में सफल हुए।

पर्वतों की बरफ से ढकी दुर्गम ऊंचाइयां भी सदा मनुष्य के रोमाँच भाव को आरोहण के लिए मूक आह्वान देती रही हैं। मनुष्य भी इसकी विकट चुनौतियों से जूझता हुआ कई हिम-शिखरों पर विजयपताका फहरा चुका हैं।इनमें 8872 मीटर ऊँची एवरेस्ट चोटी सबसे ऊँची हैं। 20 वीं सदी के छठे दशक में इसके आरोहण का अभियान पूरा हो सका। सन् 1921 में प्रथम असफल प्रयास इंग्लैंड की रायल ज्योग्राफीकल सोसाइटी द्वारा किया गया। इसके बाद कई प्रयास हुए, परंतु सफलता अतंतः तब मिली जब न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाली शेरपा तेंजिंग नोर्गे ने इस पर विजयपताका फहराई। जापान की जुँकोतवई व भारत की बछेन्द्री पाल इस पर चढ़ने वाली प्रथम विश्व की महिलाएँ रही।

मनुष्य की अदम्य खोजी वृत्ति सागर की अतल गहराइयों को छूने में भी पीछे नहीं रही। सन् 1860 ई. में वाइविले यामसन ने प्रथम वैज्ञानिक खोज- यात्रा की। वह 3600 फुट नीचे गया। वहाँ उसने अनेक जीव-जंतुओं का अध्ययन किया। सन् 1874-75 ई. के दौरान उसने चीन महासागर की गहराइयों को जानने का प्रयास किया। अगस्त विकार्ड नाम के स्विस वैज्ञानिक 1928 ई. में फैथम गहराई तक जा उतरे व समुद्र के अंदर कॉस्मिक किरणों का पता लगाया। सन् 1962 ई. में जैक्स थस काउस्टैंड ने छह यात्रियों के साथ 22 दिन तक भूमध्य सागर में 100 मीटर गहराई में रहकर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।

जल-थल एवं नभ का मंथन करते हुए मनुष्य की विजययात्रा ग्रह-नक्षत्रों की खोजबीन करती हुई अंतरिक्ष की सुदूर अनंतता की ओर बढ़ चली है। मानवीय इतिहास में अंतरिक्ष युग की शुरुआत सन् 1957 में सोवियत संघ के प्रथम कृत्रिम उपग्रह “स्पूतनिक” के प्रक्षेपण के साथ शुरू हुई। इसके बाद सन् 1958 ई. में अमेरिका ने उपग्रह एक्सप्लोसस छोड़ा। सन् 1961 में सोवियत संघ के यूरी गागरिन प्रथम अंतरिक्ष यात्री बनें। सन् 1965 में सोवियत संघ के ही अलेक्सेई लिओनेव अंतरिक्ष में टहलने वाले प्रथम व्यक्ति हुए। सन् 1966 में लूना चाँद पर उतरने वाला प्रथम यान सिद्ध हुआ।

सन् 1969 ई. में अमेरिका के नील आर्मस्ट्राँग एवं एडविन ई. एल्ड्रिन चाँद पर उतरे। अपने इस कार्य को नील आर्मस्ट्राँग ने मनुष्य का छोटा-सा किन्तु मानवता का एक बड़ा पग बताया। सन् 1971 में पहला स्पेस स्टेशन सेल्यूट-1 लाँच किया गया। सन् 1973 में पायोनियर -10 बृहस्पति तक पहुँचा। 1974-75 में मेरीनर-1 बुध पर पहुँचने वाला पहला अंतरिक्षयान बना। इसने एक बार शुक्र व तीन बार बुद्ध की यात्रा की। सन् 1967 ई.की जुलाई व सितंबर में दो वाइकिंग खोजी अंतरिक्षयान मंगल की सतह पर उतरे। सन् 1981 में पहला स्पेस शटल कोलंबिया छोड़ा गया। सन् 1986 को मीर अंतरिक्ष केन्द्र पृथ्वी की कक्षा पर स्थापित हुआ। सन् 1989 में वोयागर-2 नेपच्यून तक पहुंचा, तीन वर्ष बाद वह यूरेनस तक पहुँचा। 1990 में मैंगनल ग्रह पर जीवन की संभावना की खोज में पहुँचा और इसके 99 प्रतिशत भाग का सर्वेक्षण किया।

मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना की खोज में अमेरिका ने 1996 में “मार्स ग्लोबल सर्वेयर” नामक अभियान छेड़ा। इसी उद्देश्य से 1997 में “मार्स पाथ फाइंडर” प्रक्षेपित किया गया, जो 4 जुलाई 97 को मंगल की सतह पर उतरा। सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति के अध्ययन हेतु अमेरिका ने 1989 में गैजीलियों का प्रक्षेपण किया, जो 7 दिसम्बर 1995 के दिन बृहस्पति की कक्षा में पहुँचा। यह वहाँ की भौतिक स्थिति, रासायनिक संरचना, वायुमंडल एवं इसके चार चंद्रमाओं का अध्ययन कर रहा है। यद्यपि मूल गैलीलियो मिशन 1997 में समाप्त हो गया था, किंतु इससे जुड़े अन्य कई अभियान जारी है।

भारत की अंतरिक्ष अभियानों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है। सन् 1962 ई. में थूम्बा इक्वेटोरियल राकेट लाँचिंग स्टेशन की स्थापना के साथ भारतीय अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत हो चुकी थी। अगले ही वर्ष यहाँ से पहला राकेट लाँच किया गया। पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट 19 अप्रैल 1975 ई. को सोवियत संघ से छोड़ा गया। इसके पश्चात् एस.एल.वी. इनसेट आदि उपग्रहों की श्रृंखलाओं के सफल प्रक्षेपण के साथ भारत इस दिशा में प्रगति-पथ पर है। प्रथम भारतीय पुरुष एवं महिला अंतरिक्ष-यात्री बनने का श्रेय क्रमशः स्क्वार्डन लीडर राकेश शर्मा एवं कल्पना चावला को प्राप्त है। इस सहस्राब्दी में प्रकृति की खोज अन्वेषण एवं विजय अभियानों ने जहाँ मनुष्य के साहस सूझ-बूझ एवं इच्छाशक्ति की श्रेष्ठता को सिद्ध किया है, वही मानव-प्रगति की यात्रा में नए आयाम भी जोड़े है। साहस ही मनुष्यता की विजय का मानदंड हैं।मानव का साहस ही इस तथ्य की उद्घोषणा है कि जीवन के सभी अवरोधों एवं रुकावटों पर विजय पाई जा सकती है। पिछली सदी एवं सहस्राब्दी की तरह ही मनुष्य नई सदी एवं नई सहस्राब्दी में अनूठे कीर्तिमान रचकर यह प्रमाणित करता रहेगा की मनुष्य निश्चय ही महान् हैं।


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