VigyapanSuchana

June 2000

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सावधान!

अखण्ड ज्योति परमपूज्य गुरुदेव की वाणी एवं मिशन की जन्मदात्री है। समग्र वाङ्मय उनका मूर्तिमान स्वरूप है। उनके सभी शिष्य-मानवपुत्र इनका पठन-पाठन करते एवं अपने जीवन में उतारते हैं। पूज्यवर के अक्षय सद्विचार-समुच्चय इस वाङ्मय को वेद, पुराण, गीता, रामायण, गुरुग्रंथसाहब, कुरान, बाइबिल की भाँति पूजा जाता एवं नवयुग का संविधान माना जाता है। जिनने भी इन्हें पाया है, अपने सौभाग्य को सहारा है।

कुछ महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति अखण्ड-ज्योति एवं परमपूज्य गुरुदेव के वाङ्मय के संबंध में अपना अंतःकलुष व्यक्त करते एवं अनर्गल प्रलाप करते देखे जाते हैं। इनमें से कुछ स्वयं को शिष्य बताते, गुरु-भक्ति का स्वाँग बनाते, मिशन का सदस्य बताते भी देखे जाते हैं। जो गुरुदेव के विचारों का नहीं, वह उनका कैसे होगा? ऐसे गुरुद्रोहियों को स्वयं को तो शिष्य कहने का भी अधिकार नहीं है। ऐसे पाखंडी मिशन विरोधी तत्त्व आत्म-प्रताड़ित, कलंकित जीवन जिएँगे-उनसे परिजन सावधान रहे-बचें।


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