सक्षम-सबल है, आज की नारी

June 2000

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नई सहस्राब्दी में नारी की एक सर्वथा नई छवि उभर रही है। पिछली सदियों में जो बेड़ियाँ उसे जकड़े थी, उन्हें तोड़कर आज वह अपनी नई पहचान बनाने में जुटी है। विगत कल तक जो क्षेत्र केवल पुरुषों के ही क्षेत्र माने व समझे जाते थे, वहाँ पर भी नारी-चेतना ज्वलंत रूप से प्रदीप्त हो उठी है। शिक्षा, खेल, शासन, प्रशासन, कला, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र हो अथवा समाज, संस्कृति या राजनीति के हर किसी क्षेत्र में वह प्रवेश पा चुकी है। कुछ विशिष्ट विभागों में तो सबसे आगे निकल चुकी है।

घर की घुटनभरी चारदीवारी अब प्रायः टूट चुकी है। कल की साधारण-सी गृहिणी आज कुशल प्रबंधक बनकर अपने कार्यों-दायित्वों का निर्वहन कर रही है। उसकी इस भूमिका में नवीनता है, सृजनशीलता की आभा है। हालाँकि नारी में यह प्रतिभा जन्मजात थी, परंतु पुरुष प्रधान समाज की निरंकुश मानसिकता में वह दबी-पड़ी गल रही थी। जैसे ही यह प्रतिरोध कुछ कम हुआ कि नारी-प्रतिभा पुष्पित पल्लवित होने लगी।

शिक्षा ने नारी-जीवन में काफी कुछ गुणात्मक परिवर्तन किया है। आज स्थिति यह है कि शिक्षा ग्रहण करने के मामले में वह अपेक्षाकृत अधिक ग्रहणशील नजर आती है। शिक्षा व विद्या का प्रभाव महिलाओं में स्पष्ट देखा जा सकता है। इसी वजह से उसका वर्चस्व बना एवं आगे बढ़ने की राह ढूंढ़ पाई। समझदारी, साहस एवं सक्रियता जैसे अनुदान इसी का परिणाम है। आज की नारी परंपरागत मूल्यों का निर्वाह करते हुए भी अपनी विशिष्ट पहचान बना रही है। जीवन की विभूतियों के आदान-प्रदान में वह संवेदनशील एवं जागरुक है। वर्तमान समय में नारी-जीवन में आत्मनिर्भरता का आना एक क्राँतिकारी परिवर्तन है।

आज तो नारी की स्थिति घर एवं बाहर दोनों ही स्थानों पर सुदृढ़ हुई है। वह घर की व्यवस्था से लेकर अन्य अनेक उच्चस्तरीय एवं तकनीकी क्षेत्रों में दक्षता प्राप्त कर चुकी हैं। आज के नये दौर में महिलाएँ नित नए कदम बढ़ा रही हैं, क्योंकि इस नए समय में विचारों के साथ भावना का समन्वय ही सफलता को सुनिश्चित करता है। महिलाओं में यह समन्वय एवं सामंजस्य पुरुषों की अपेक्षा काफी अधिक मात्रा में होता है। इसीलिए कंप्यूटर तथा शोध-अनुसंधान जैसे क्षेत्र में भी वह प्रवीण हो गई है। प्रबंधन में तो वह दक्ष है ही। इस तरह नए युग की नारी एक नवीन भूमिका में प्रस्तुत हो रही है। वर्तमान जीवन को जीते हुए वह भविष्य के प्रति जागरुक नजर आने लगी है।

इस तथ्य को हाल में ही हुए एक सर्वेक्षण से प्रमाणित किया गया है। ‘एरिक्सन’ नाम की एक संस्था ने भारत के चार महानगरों में व्यापक सर्वेक्षण किया है। यह संस्था समय-समय पर नगरों एवं महानगरों में मध्यमवर्गीय भारतीय महिलाओं पर पड़ने वाले सांस्कृतिक बदलाव के प्रभाव का अध्ययन अनुसंधान करती है। इस संस्था द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट से पता चलता है कि आधुनिक नारी नए परिवेश के लिए तैयार हो रही है। वह अब और ज्यादा सक्रिय और सजग दिखाई देने लगी है।

भीड़-भाड़ महानगरों की बसों में बस कन्डक्टर बनकर तथा ट्रेन के ड्राइवर के रूप में उसने अपने साहस का परिचय दिया है। मुँबई महानगरी की ‘बेस्ट’ बसों में महिलाएँ कन्डक्टर नियुक्ति हुई है। प्रथम महिला पायलट दूबी बनर्जी ने उड़ान भरकर सबको चमत्कृत कर दिया है। जिसका अनुकरण एवं अनुसरण कर सौदामिनी देशमुख जैसी अन्य अनेकों महिलाएँ भी इस दिशा में अग्रसर हुई। आजकल तो महिलाएँ वायुसेना में भी पायलट होने लगी है। यह अप्रतिम शौर्य एवं पराक्रम का कार्य है, जहाँ नारी ने अपनी उपस्थिति की झलक दी है।

निश्चित ही निष्ठा और श्रम से कुछ भी असंभव नहीं है। सतारा के एक किसान की लड़की सुरेखा जाधव अपनी मेहनत एवं लगन से मालगाड़ी की ड्राइवर है। एक मुस्लिम युवती मुमताज काणवाला देश की पहली डीजल इंजन का ड्राइवर बनी है। इन युवतियों ने चुनौती भरे व्यवसाय को अपनाकर एक मिसाल पेश की है, नारी अबला है, यह मिथक अब टूट चुका है। आज तो वह शौर्यपूर्ण आदर्श का मानदंड है।

अणुशोध संस्थानों के अलावा प्रक्षेपास्त्रों की टेक्नोलॉजी में भी महिलाओं ने अपना विशेष योगदान दिया है। इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल प्रोग्राम के जनक ए.पी.ज. अब्दुल कलाम के अनुसार, वर्तमान समय में आर.डी.ओ. में 500 महिला वैज्ञानिक कार्यरत हैं। बहुचर्चित अग्नि प्रक्षेपास्त्र को सफल बनाने में रोहणी देवी का भी श्रम काम आया है। अणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष श्री आर॰ चिदंबरम ने अपने एक साक्षात्कार में स्पष्ट किया है कि भाभा अणु शोध केंद्र के अलावा इसमें संबंधित संस्थानों में भी लड़कियां अधिक संख्या में प्रौद्योगिकी विषय का अध्ययन कर रही है। आकाश प्रक्षेपास्त्र के निर्माण में भी महिलाओं की भूमिका रही है। .........................................................................................................

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