उत्तम संपत्ति (Kahani)

August 1999

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक कोयल एक कौआ अपनी-अपनी पूँछ की प्रशंसा करते हुए लड़ रहे थे। कोयल अपनी पूँछ को बाण की नोक की तरह बताकर कौए को धिक्कार रही थी। वह सुनकर कौआ बोला कि तेरी पूँछ केवल वसंत ऋतु में ही भली लगती है। लेकिन मेरी पूँछ गर्मी, जाड़ा और बरसात सब में एक सी रहकर मेरी रक्षा करती है।

असमय में अपने काम आ जाए, वही वास्तविक धन है। क्षणभर ठहरने वाली संपत्ति किस काम की? चाहे, थोड़ी ही क्यों न हो, सदा अपने पास रहने वाली संपत्ति ही उत्तम संपत्ति है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles