क्या स्वप्न अचेतन का भटकाव मात्र है

August 1999

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स्वप्न क्या हैं? लंबे समय से इस पर शोध-अनुसंधान होते रहें पर अभी तक इस बात के अकाट्य प्रमाण नहीं मिले हैं कि यह रात्रि का भटकाव मात्र नहीं, लोकान्तर यात्रा भी है।

मनः शास्त्रियों का कथन है कि स्वप्न मनुष्य मात्र का एक साधारण स्वप्न मनुष्य मात्र का एक साधारण अनुभव है। उसमें जो चित्र-विचित्र दृश्य, अनूठे स्थल एवं अदृश्य दर्शन होते हैं, वह यथार्थ में कोई वास्तविक लोक की अनुभूति नहीं, मन की कल्पना भर है। यह संभव है कि उसमें जो वस्तु दिखाई पड़े, वे सामान्य जगत से एकदम भिन्न, अज्ञात और अपरिचित जैसे हों। यह भी शक्य है कि हम रहने वाले किसी देश के हों और स्वप्न में निवास किसी और देश में करते प्रतीत हों। संक्षेप में, जो घटनाएँ दुनिया में असंभव और पहुँच से बाहर हो सकती हैं, स्वप्न में वे सब घटित हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त अन्य अनेक बातें ऐसी होती हैं, जिनका आधार संसार में नहीं है।

जब से मनुष्य की सृष्टि हुई, तभी से मानव मन में स्वप्न के संस्कार प्रविष्ट हुए। तभी से विचार मूर्त रूप धारण करते रहे। संस्कारों से कल्पना तथा कल्पना से स्वप्नों का ताना-बाना विनिर्मित हुआ। जिस प्रकार अनादिकाल से जन्म-मरण का चक्र चलता रहा, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को सुषुप्तावस्था में तभी से सपने का ज्ञान होता रहा।

जाग्रत अवस्था में हम जो-जो दृश्य देखते हैं, उनकी आकृतियाँ हमारे मानस-पटल पर अंकित हो जाती हैं। वे रेखाएँ कई बार अत्यंत क्षीण होती हैं और कुछ समय पश्चात् विनष्ट हो जाती हैं, किन्तु कभी-कभी ये मनः चित्र इतने सबल होते है कि सरलता से मिट नहीं पाते। यह भेद मन की आसक्ति के अनुसार होता है। जिन तत्वों में मन की विशेष रुचि है, जिसमें वह रमण करता है, जिन जिन चीजों का हमें अधिक शौक है, उनकी रेखाएँ मानस पटल पर गहरी अंकित होती है और जीवनपर्यन्त बनी रहती हैं। इसी से स्वप्नावस्था में हमें वे दृश्य दृष्टिगोचर होते है, जो बचपन में हमने देखे थे।

किन्तु सपनों का एक अन्य कारण नींद के समय की परिस्थितियाँ, वातावरण तथा स्थान भी हैं। मानसिक दृश्यों को यह भी वैसी ही सहजता है और सरलता से गढ़ते-बनाते हैं, जैसी कि पूर्व स्मृतियाँ। आधुनिक मनोविज्ञान ने स्वप्न के इस पक्ष पर पर्याप्त प्रकाश डाला और कहा कि सोते समय शरीर में जिस प्रकार की उत्तेजना उत्पन्न होती है, स्वप्न भी तदनुरूप होते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति सुन्दर-स्वच्छ वस्त्र पहनकर साफ बिस्तर पर स्वच्छ हवादार कमरे में सोता है, तो स्वप्न प्रायः अच्छे दिखलाई देते हैं। इसके विपरीत जब हम किसी गंदे, बदबूदार कमरे में सोते हैं, तो अक्सर स्वप्न अप्रिय आते हैं। अधिक कसे हुए या चुभने वाले कपड़ों का बड़ा भयंकर प्रभाव पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को स्वप्न में यह अनुभव हो सकता है जैसे वह काँटों में फेंक दिया गया हो, शरीर में कील ठोंककर प्राण लिए जा रहे हैं। इत्यादि। जो वस्त्र अधिक कसा हुआ होगा, वह अंग ऐसा मालूम पड़ेगा, जैसे उसे काटा जा रहा हो या काटने का उपक्रम चल रहा हो, जबकि खिड़की रहित बंद कमरे में सोने से गैसचैंबर में पड़े होने, दम घुटने अथवा स्वयं का गला घोटे जाने जैसे कटु अनुभव हो सकते हैं।

ये मनोवैज्ञानिकों द्वारा गहन अध्ययन और विश्लेषण के उपरान्त निकाले गए निष्कर्ष हैं। जे.जे.मायर ने अपनी पुस्तक ‘माइंड एंड मैटर’ में ऐसे अनेक स्वप्नों का उल्लेख किया है, जिसमें उनका निमित्त विशुद्ध रूप से शारीरिक था।

ऐसे ही एक स्वप्न की चर्चा करते हुए वे लिखते हैं कि मारिया नामक एक स्त्री को एक बार यह स्वप्न दिखा जैसे कोई उसके गले को जोर से दबा रहा हो। उसने चिल्लाने की कोशिश की, पर चीख न निकली। भयंकर यंत्रणा जैसी स्थिति में नींद में वह इधर-उधर हिलती-डुलती रही, किन्तु उस त्रास से मुक्ति न पा सकी। अचानक वह उठ बैठी, तो देखती है कि उसके गले का आभूषण वस्त्रों में फँसकर श्वसन क्रिया में अड़चन पैदा कर रहा है। वह यह देखकर हैरान रह गई कि इस प्रकार का बाह्य कारक भी स्वप्न में गला घोटने जैसा दृश्य उपस्थित कर सकता है।

एक अन्य स्वप्न में एंसल बाउर्ने नामक एक व्यक्ति को स्वप्न दिखा कि कोई उसका दांया पाँव काट रहा है। वह इससे बचाव के लिए जद्दोजहद करने लगा। सामने वाला व्यक्ति अधिक मजबूत था, इसलिए वह बाउर्ने पर भारी पड़ रहा था। फिर भी उसने प्रयास में कोई कभी न की। जोर लगाकर दायें पैर को इतना तेज झटका दिया कि वह उससे मुक्त हो गया, लेकिन इसके साथ ही उसकी वह टाँग पलंग के पायताने से जा टकरायी। वह दर्द से तड़प उठा। इसके बाद उसकी नींद खुल गई। उसने देखा कि उसका उक्त पाँव बिलकुल ठीक है, सिर्फ उसमें तलवे से घुटने तक पट्टी बंधी हुई है। अब उसे याद आया कि सोने से पूर्व उसके पैर में तेज दर्द हो रहा था। उससे राहत पाने के लिए उसने वह पट्टी बाँध ली थी, जिससे उसे आराम भी मिला था, पर बाद में उसको खोलना भूल गया और उसे नींद आ गई। कसकर लिपटी पट्टी के लिए मन ने एक काल्पनिक दृश्य गढ़ा और उसके कटने की जीवंत प्रतिमा उपस्थित की।

अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि वाह्य ध्वनियाँ निद्रा में व्यवधान पैदा करती हैं। व्यक्ति जहाँ पर सो रहा हो, यदि वह शाँत-एकांत स्थान हो, तो नींद प्रायः बिना किसी व्यतिरेक के पूरी हो जाती है, किन्तु वहाँ कोलाहल हो रहा है, संगीत बज रहा हो, तीक्ष्ण और कर्णकटु ध्वनियाँ उत्पन्न हो रही हों, तो नींद में एक विक्षेप पैदा होता है और ध्वनिभेद के हिसाब से सपने आने लगते हैं। ध्वनि कर्कश हो, तो सपने बुरे दिखलाई पड़ते हैं, लेकिन सुमधुर संगीत बज रहा है तो सपने बड़े मधुर और मीठे होते हैं। अनुसंधानों के दौरान यह भी देखा गया है कि सोते हुओं से कही गई बातें स्वप्न बनकर प्रकट होती हैं। इस आधार पर विज्ञानवेत्ता अब यह दावा करने लगे हैं कि इस प्रक्रिया द्वारा उच्छृंखल आचरण और बुरे व्यवहार को आसानी से बदला और सुधारा जा सकता है। वे कहते है। कि यदि किसी की बुरी आदतें बदलनी हों, तो निद्रावस्था में उसे ऐसे संकेत और सुझाव देने चाहिए, जो उसके चरित्र- सुधार में अभीष्ट हों। इसके लिए व्यक्ति को उसके सिरहाने बैठना चाहिए और उन-उन शब्दों और वाक्यों को बार-बार दुहराना चाहिए, जिन्हें उसके व्यक्तित्व में प्रवेश कराना हो। ऐसा करने पर उसका अव्यक्त मन उसे ग्रहण करने लगता है, किंतु इसके लिए केवल यांत्रिक प्रक्रिया भर पर्याप्त नहीं है। पूर्ण श्रद्धा और विश्वासपूर्वक अपनाया गया उपक्रम ही प्रभावकारी सिद्ध होता है। अनास्थापूर्वक एवं कठोरता से कहे गए वचनों का कोई असर नहीं पड़ता है। यह वास्तव में उस प्रक्रिया का ही विपर्यय है, जिसमें मनोवेत्ता यह कहते हैं कि स्वप्न वस्तुतः दमित इच्छाओं का परिणाम है। उनके अनुसार जो अभिलाषाएँ अपूर्ण और अतृप्त रह जाती हैं, वे अचेतन मन में दबी पड़ी रहती हैं और नींद के दौरान नानाप्रकार के रूपाकार ग्रहण कर प्रकट- होती रहती है। मनः चेतना चूँकि विराट न का ही एक हिस्सा है, अतः सोए हुए व्यक्ति के समक्ष जब कोई सुझाव या संकेत दिया जाता है, तो अप्रकट मन उसे तरह-तरह के दृश्यों के रूप में संजोने लगता और बाद में वह उसका अंग बन जाता है। इससे उसका व्यक्तित्व प्रभावित और परिवर्तित होने लगता है। इस दृष्टि से स्वप्न देखना बुरा नहीं, अच्छा ही है।

सुषुप्तावस्था में शरीर को मिलने वाले कष्ट विविध प्रकार के सपनों में परिणत हो जाते हैं। ऐसा पाया गया है कि यदि सोते हुए व्यक्ति को सुई चुभोयी जाए, तो स्वप्न में उसे भाले चुभते हुए दीख सकते हैं। यदि गरमी लग रही हो, तो ऐसा अनुभव हो सकता है, जैसे भट्टी में तपाया जा रहा हो। जब पलंग झोलदार एवं ढीला हो, तो ऐसा मालूम पड़ सकता है, मानो ऊपर पेड़ से लटकाया गया हो। सोते समय यदि ठंड मालूम पड़े, तो ऐसा प्रतीत होगा जैसे हिमालय की चोटी पर पड़े हुए बर्फ में गलाया जा रहा हो या ठंडे पानी की समुद्र में गोते लगा रहे हों। मुँह पर पानी के छींटे देेने से बरसात का भ्रम हो सकता है। कोई सुगंधित वस्तु निकट होने से पुष्पोद्यान में टहलने की प्रतीति संभव है। इसी प्रकार किसी चिकनी वस्तु पर हाथ पड़ने से साँप की अनुभूति हो सकती है।

जिस प्रकार बाह्य उद्दीपनों से मन तरह-तरह के तदनुरूप चित्र गढ़ लेता है, उसी प्रकार अब स्वप्न-चित्रों के आधार पर मनोवेत्ता उसके पीछे के तथ्य, रोग निमित्त कारण एवं भविष्य में घटने वाली घटनाओं का अनुमान लगाने लगे हैं।

मूर्धन्य मनः शास्त्री जे.जे. जिलेस्पी ने अपने ग्रंथ ‘दि ड्रीम पॉवर’ में स्वप्न विश्लेषण के आधार पर कारणों की तह तक पहुँचने की कोशिश की है। इस क्रम में ऐसे कितने ही सपनों का उन्होंने ऐसे कितने ही सपनों का उन्होंने ऐसा सटीक अनुमान लगाया, जो बाद में सत्य साबित हुए।

एक स्वप्न का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं कि वेरा जाजुलिक नामक एक महिला अक्सर यह स्वप्न देखती थी कि वह अपने दाँत पत्थर से तोड़ रही है। बार-बार एक ही स्वप्न देखने से वह भयभीत ही उठी और निकट भविष्य में किसी अनिष्ट की आशंका का अनुमान लगाने लगी। जब वह इसके विश्लेषण के लिए लेखक के पास पहुँची, तो उसने उसके गहन मनोविश्लेषण के आधार पर अनुमान लगाया कि असावधानी वश कोई ऐसी दुर्घटना हो सकती है, जिसमें अंग-भंग हो जाए और शायद वह इतना गंभीर हो कि उक्त अंग को काटना पड़े। लगभग दो महीने बाद जब वह स्नान कर रही थी, तो फिसल गई, जिससे बायें पैर की हड्डी चकनाचूर हो गई, जिसके कारण अंत में उसे काटना पड़ गया। इस प्रकार वह स्वप्न-विश्लेषण पूर्वानुमान के रूप में अंततः सही प्रमाणित हुआ।

ऐसे भविष्य सूचक स्वप्नों के अतिरिक्त कितने ही स्वप्न ऐसे होते हैं, जिनमें व्यक्ति सोते हुए में ही स्वप्न ही प्रतिक्रिया स्वरूप ऐसी भूलें कर बैठता है, जो अत्यन्त दुखदायी होती हैं और जिनके लिए बाद में पछताना पड़ता या मौत को गले लगाना पड़ता है।

बात उन दिनों की है, जब अमेरिका में स्वतंत्रता के लिये युद्ध चल रहा था। दिन भार सिपाहियों को लड़ना पड़ता था। शत्रु कब आ जाए और कब उनका काम तमाम हो जाए, यह भय प्रत्येक को अस्थिर एवं विक्षुब्ध रखता था। इसी युद्ध की एक रात्रि में मेलिंग टिब्लेरी नामक एक सैनिक को स्वप्न हुआ कि शत्रु पक्ष का एक सिपाही उसका पीछा कर रहा है। वह भाग रहा है। भागते-भागते वह एक स्थान पर आ गया, जहाँ सामने एक नदी बह रही थी। वह भाग न सका। अतः उसने नींद में अपने तकिए के नीचे से रिवाल्वर निकाला और एकदम शत्रु पर फायर कर दिया। उसे ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे निशाना ठीक लगा हो रिवाल्वर की आवाज से नींद खुली, जो रिवाल्वर की आवाज से नींद खुली, तो उसे ज्ञात हुआ कि उसने सोती हुई अपनी स्त्री को मार डाला है और वह पलंग पर तड़प रही है। उसके होश उड़ गए। अन्य कोई मार्ग न देख उसने स्वयं भी आत्महत्या कर ली।

ऐसे ही एक अन्य स्वप्न में मोरिस हाल्बवाच नामक एक फ्राँसीसी को, जो कि ट्रेन में सवार पेरिस जा रहा था, स्वप्न दिखाई पड़ा कि गाड़ी प्लेटफार्म पर खड़ी है एवं यात्रीगण उतर रहे हैं। उसने देखा कि एक व्यक्ति उसका कीमती सामानों से भरा सूटकेस उठाकर ले जा रहा है। भीड़-भाड़ अधिक थी, इसलिए वह जल्दी उतर नहीं सका। उसने छलाँग लगाई और उसे धर दबोचा एवं ताबड़तोड़ कई शक्तिशाली घूँसे जड़ दिए। तभी उसका सिर ट्रेन की दीवार से टकरा गया। वह पीड़ा से कराह उठा। उसकी आँखें खुली, तो देखा कि उसने बगल की सीट पर सोए व्यक्ति को मार मारकर लहू-लुहान कर दिया है। उसका सूटकेस यथास्थान सुरक्षित पड़ा हुआ है। उसे गलती की अहसास हुआ और उससे क्षमा याचना करने लगा। यात्रियों ने पकड़कर उसे पुलिस के हवाले कर दिया।

स्वप्न न तो अतींद्रिय अनुभूति जैसी कोई अवस्था है, न लोकान्तर गमन जैसी बात। सच तो यह है कि ये अवचेतन मन के सृजन हैं। इनमें सदैव कोई तथ्य होता है, यह बात असत्य है। हाँ, कई बार भविष्य सूचक दृश्य इनके माध्यम से अवश्य अभिव्यक्त हो जाते हैं। इन्हें यदि छोड़ दिया जाए, तो यह सिर्फ मन की उड़ान भर है, किन्तु इनको नितांत निरर्थक भी नहीं कहा जा सकता। सपने को यदि नियमित रूप से लिपिबद्ध किया जाता रहे, तो उससे आदमी के व्यक्तित्व के बारे में काफी कुछ अंदाज लगाया जा सकता है और यह जाना जा सकता है कि उसकी इच्छाएँ, आकांक्षाएँ, भावनाएँ, आस्थाएँ और मान्यताएँ कैसी हैं? उन्हें शोधित-परिष्कृत कर व्यक्तित्व को गढ़ा-ढाला जा सकता है। इस दृष्टि से स्वप्न उपयोगी हैं और महत्वपूर्ण भी-ऐसा मनोविज्ञान के आचार्यों का मत है।


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