49- शिक्षा एवं विद्या
शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान ही नहीं देती अपितु, वह व्यक्ति को एक सुयोग्य नागरिक भी बनाती है। शिक्षा और विद्या में व्यावहारिक रूप में अंतर भी है। यह अंतर क्या है, यह इन बातों को समझे बिना मालूम नहीं हो सकता-
शिक्षा का अपेक्षित स्वरूप-बौद्धिक प्रगति।
शिक्षा ऐसी जो समस्याएँ सुलझाए।
कठिनाइयों की पाठशाला में साहस का प्रशिक्षण।
शिक्षा संवर्द्धन-तथ्य का पुनर्जीवन।
गुरु की गरिमा, महत्ता एवं जिम्मेदारी।
छात्रों के विकास में घर और विद्यालय की भूमिका।
शिक्षण का लक्ष्य सोए को जगाना।
सारा बोझ सरकार पर ही न डालें।
बाल शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा व नारी शिक्षा।
महिलाओं की तथा पुरुषों की स्वावलंबन शिक्षा।
50- महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग-1
किसी भी राष्ट्र के उन्नयन में उस राष्ट्र में उस राष्ट्र के महापुरुषों का योगदान रहता है। विश्व की उन्नति और प्रगति में ऐसे ही महापुरुषों का विविध रूप में योगदान रहा है। विश्व के महापुरुषों के उल्लेखनीय परिचय में हैं-
भगवान परशुराम, महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर।
सम्राट अशोक, महाभिक्षु महेन्द्र, कन्फ्यूशियस।
सेवायोगी-स्वामी रामकृष्ण परमहंस।
धार्मिक नवचेतना के उन्नायक संत-महात्मा
संत रैदास, संत ज्ञानेश्वर, महर्षि अरविंद।
महर्षि रमण, स्वामी रामतीर्थ, पौहारी बाबा।
संत गुरु तेगबहादुर, गुरुगोविन्द सिंह, संत कबीर।
स्वामी सहजानन्द, गुरुजी, स्वामी सोमदत्त गिरि।
ईशा के शिष्य वेरियर एल्विन, ओवोपियर।
प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक-सिद्ध नागार्जुन।
51-महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग-2
संसार में ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं, जो अत्यंत साधारण स्थिति के परिवार में जन्मे थे, किन्तु उन्होंने अपने महान कार्यों से विश्व के करोड़ों लोगों को अपने विविध और विशिष्ट सेवाओं से लाभ पहुँचाया था। ऐसे महापुरुषों के सम्बन्ध में जाने-
मूर्तिमान् शौर्य शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरसिंह।
लौहपुरुष सरदार पटेल, लाला लाजपत राय।
साहसी मेजर शैतान सिंह, हुतात्मा गणेशशंकर विद्यार्थी।
वंदेमातरम् के मंत्रद्रष्टा बंकिमचंद्र।
अनाथ बालक से राष्ट्रनिर्माता बना चंद्रगुप्त मौर्य।
लुटेरे गजनबी का मानमर्दन करने वाले राजा संग्रामराज।
स्वतंत्रता सेनानी-नाना साहब पेशवा।
52- विश्व-वसुधा जिनकी सदा ऋणी रहेगी।
मानवी चिन्तन-चेतना को जगाने में, उसे सुनिश्चित दिशा और गति प्रदान करने में जिन महामानवों ने योगदान प्रदान किया है, उनमें प्रेरक महामानव हैं-
विश्वव्यापी विचारक्रांति के जन्मदाता-महामनीषी कल्लट।
नीति कथाओं के अमर लेखक विष्णु शर्मा।
उपाधियों से परे श्री सातवलेकर।
महापंडित राहुल साँकृत्यायन।
नेत्रहीन कर्मयोगी-श्री बैजनाथ दुबे।
कविता कानन के पारिजात, महाकवि कालिदास।
लोकमानस के परिष्कार-तुलसीदास
महान साहित्य साधक-मुंशी प्रेमचन्द्र।
नोबुल पुरस्कार के प्रवर्तक-अल्फ्रेड नोबुल।
53- धर्मतत्त्व का दर्शन और मर्म
विभिन्न संप्रदायों में धर्म का अर्थ और दर्शन भिन्न-भिन्न प्रकार से दिया गया है। इन्हें समझने के लिए उस धर्म से जुड़े समाज को भी समझना आवश्यक है। धर्म का वास्तविक मर्म है-नीतिमत्ता और शालीनता। धर्म को समझने के लिए ये भी जानें-
धर्मधारणा हर दृष्टि से उपयोगी।
धर्म साध्य है तो विज्ञान साधन।
धर्मप्रधान ‘अर्थ’ हो कल्याणकारी है।
शुष्कज्ञान ही नहीं धर्म भी आवश्यक।
धर्मयुद्ध महान तप।
नीर-क्षीर की विवेक-बुद्धि अपनाए।
सत्य के प्रकाश को हृदयंगम करें।
बिना सद्ज्ञान के अधूरा है भौतिक विज्ञान।
अधिक प्राप्ति हेतु अल्प का त्याग।
संयत बरतें सुखी रहें।
मानवी गरिमा के प्रति आस्था।
54- मनुष्य में देवत्व का उदय
मनुष्य का अंतः करण ही वध धर्मक्षेत्र हैं, जिसमें आसुरी और देवी-प्रवृत्तियों के मध्य सदैव संघर्ष चलता रहता है। मनुष्य इस संघर्ष में किस प्रकार देवत्व प्राप्त कर सकता है, इसके लिए यह जानना आवश्यक है-
जीवन ः ईश्वर का एक अनुपम अनुदान।
बाह्यजगत अंतर्जगत का प्रतिबिंब।
भूल सुधारने का ठीक यही समय।
देवासुर संग्राम हमारे दैनिक जीवन में।
सुसंतति के सम्बन्ध में वैज्ञानिक प्रयोग-जेनेटिक इंजीनियरिंग।
वंशानुक्रम निर्धारण हेतु उत्तरदायी अविज्ञात चेतन शक्ति।
नरपशु नहीं, देवमानवों की पीढ़ी जन्मे।
मनुष्य गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु।
चेतना का उदात्तीकरण।
व्यक्तित्व की अनगढ़ता मिटाते आध्यात्मिक उपचार।
55- दृश्य जगत की अदृश्य पहेलियाँ
यह संसार दो भागों में बंटा हुआ है। एक भाग इंद्रियगम्य है, दूसरा इंद्रियातीत। ऐसी बहुत-सी बातें हैं, जिन्हें समझने और जानने मनुष्य असमर्थ रहा है। हमारे चिंतन को झकझोरती बातें हैं-
अणु में विभु-गागर में सागर।
परा और अपरा प्रकृति।
जड़ के भीतर विवेकवान चेतन।
समर्थ सशक्त जीवनी-शक्ति
सर्प से न भयभीत हों, न उसके जैसा चने।
दृश्य जगत की अदृश्य पहेलियाँ।
आत्मचेतना का विकास वृक्ष-वनस्पतियों में।
चेतना का सहज स्वभाव-स्नेह-सहयोग
56- ईश्वर-विश्वास और उसकी फलश्रुतियाँ
इस संसार का एक सर्वसक्षम एवं सर्वसमर्थ नियंता अवश्य है, उसे हम नाम कुछ भी दें। भारतीय मानस इसी परमशक्ति को ईश्वर मानता है। हमें ईश्वर से जुड़े इन प्रश्नों पर विचार करना आवश्यक है-
आस्तिकवाद का विज्ञानसम्मत आधार।
आस्तिक बनाम नास्तिक, अद्वैतवाद या सर्वेश्वरवाद।
परमात्मा का अस्तित्व और अनुग्रह।
परमेश्वर का निराकार व साकार स्वरूप।
विज्ञान भी स्वीकारता है अब परब्रह्म की सत्ता को।
ब्रह्मसत्य जगन्माया-अलबर्ट आइंस्टीन की दृष्टि में।
विश्वब्रह्माण्ड में ओत-प्रोत ब्रह्मसत्ता।
हम हाइड्रोजन गैस जैसे हलके रहे।
भूल-भटक कर भेंट हुई भगवान से।
भगवान से सफाई किस बात की माँगे।
ईश्वर से अपने लिए क्या माँगे?