हम श्रेष्ठ योद्धा की भूमिका निबाहें

August 1999

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

जीवन एक संग्राम है, जिसमें हर मोर्चे पर उसी सावधानी से लड़ना होता, है जैसे कि कोई स्वल्प साधनसंपन्न सेनापति शत्रु की विशाल सेना का मुकाबला करने के लिये तनिक-भी प्रमाद किये बिना आत्मरक्षा के लिये पुरुषार्थ करता है। गीता को इसी आध्यात्मिक परिस्थिति की भूमिका कहा जा सकता है। पाँडव पाँच थे किंतु उनका आदर्श ऊँचा था। कौरव सौ थे किन्तु उनका मनोरथ निकृष्ट था। दोनों एक ही घर में पले और बड़े हुए थे। इसलिए निकटवर्ती संबंधी भी थे। अर्जुन लड़ाई से बचना चाहता था और अनीति का वर्चस्व सहन कर लेना चाहता था। भगवान ने उसे उद्बोधित किया और कहा-लड़ाई के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं। असुरता को परास्त किए बिना देवत्व का अस्तित्व ही संभव न होगा। असुरता विजयी होगी तो सारे संसार का नाश होगा। इसलिए अपना ही नहीं, समस्त संसार के हित का भी ध्यान रखते हुए असुरता से लड़ना चाहिए। भगवान के आदेश को शिरोधार्य कर अर्जुन लड़ा और विजयी हुआ। यही गीता की पृष्ठभूमि है।

गीता काल का महाभारत अभी भी समाप्त नहीं हुआ। हमारे भीतर कुविचार रूप कौरव अभी भी अपनी दृष्टता का परिचय देते रहते हैं। दुर्योधन और दुःशासन के उपद्रव आए दिन खड़े रहते हैं। मानवीय श्रेष्ठताओं की द्रौपदी वस्त्रविहीन होकर लज्जा से मरती रहती है। इन परिस्थितियों में भी जो अर्जुन लड़ने को तैयार न हो, उसे क्या कहा जाए? भगवान ने इसी मनोभूमि के पुरुषों को नपुंसक, कायर, ढोंगी आदि उनके कटु शब्द कहकर धिक्कार था हममें से वे सब जो अपने बाह्य एवं आँतरिक शत्रुओं के विरुद्ध संघर्ष करने से कतराते हैं, वस्तुतः ऐसे ही व्यक्ति धिक्कारने योग्य हैं।

जो लोग अपनी जिन्दगी को चैन और शाँति से काट लेने की बात सोचते हैं, वस्तुतः वे बहुत भोले हैं। संघर्ष के बाद विजयी होने के पश्चात् ही शाँति मिल सकती है। जीवन-निर्माण का धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र के रूप में हुआ है। यहाँ दोनों सेनाएँ एक-दूसरे के सम्मुख अड़ी खड़ी हैं। देवासुर संग्राम का बिगुल यहीं बज रहा है। ऐसी स्थिति में किसी योद्धा को लड़ने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं मिल सकता। सावधान सेनापति की तरह हमें भी अपने अंतर-बाह्य दोनों क्षेत्रों में मजबूत मोर्चाबंदी करनी चाहिए। गाँडीव पर प्रत्यंचा चढ़ाने और पाँचजन्य बजाने के सिवाय और किसी प्रकार हमारा उद्धार नहीं।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118