एक साहसिक भिड़ंत, जिसकी परिणति सुखद हुई

August 1999

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शौर्य और साहस मनुष्य-जीवन के भूषण है। उन्हें यदि विकसित कर लिया गया, तो पग-पग पर आने वाली विपत्तियों का सफलतापूर्वक सामना कर सकना न सिर्फ शक्य हो जाएगा, वरन् वैसे समय में भयभीत होने और धैर्य खोने से होने वाली असाधारण क्षति से बचा जा सकना सरल-संभव हो जाएगा।

आए दिन घटने वाली घटनाएँ इस बात की साक्षी हैं कि मुसीबतें वीरों के लिए सहज सामान्य और कायरों के लिए पहाड़ के समतुल्य साबित होती हैं। ऐसा ही एक प्रसंग कनाडा के दो युवाओं के साथ घटित हुआ। मैल्कम एस्पीलैप्स 19 वर्ष का युवा पर्वतारोही था तथा वार्व बैंक 18 वर्षीया युवती थी। दोनों ब्रिटिश कोलम्बिया ग्लेशियर के राष्ट्रीय उद्यान स्थित 2050 मीटर ऊँचे दर्रे को पार करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 1971 के अक्टूबर मास का चयन किया। गरमी की समाप्ति हो चुकी थी। वे गरम मौसम के उत्पन्न हुई शारीरिक निष्क्रियता और मानसिक नीरसता को पर्वतारोहण के साहसिक कार्य द्वारा समाप्त करना चाहते थे।

एक प्रातः अभियान के लिए वे निकल पड़े। शिखर पर पहुँचने तक आरोहण कार्य निर्विघ्न चलता रहा, किन्तु अचानक वे वहाँ के बर्फीले तूफान में फँस गए। विवश होकर रात्रि उन्हें पार्क के एक छोटे कमरे में बितानी पड़ी।

अगले दिन सुबह भी मौसम यथावत बना रहा। दोनों उसके सुधरने का इंतजार करने लगे। समय बिताने के लिए उनके पास बात करने के अतिरिक्त और कोई दूसरा साधन था नहीं, अस्तु वे उसी प्रकार मन बहलाते रहे।

उनकी मित्रता मात्र दो महीने पुरानी थी। वे एक होटल में नौकरी करते थे। उसी दौरान उन्हें एक दूसरे की अभिरुचियों, आदतों एवं स्वभावों की जानकारी मिली। दोनों ही पर्वतारोहण के शौकीन थे। होटल कार्य से छुट्टी पाकर अपना अधिकाँश समय पर्वत शिखरों पर ही बिताते थे।

दोपहर हो चुकी थी। बर्फ गिरना अब बंद हो गया था। दोनों ने बर्फ पर फिसलने वाले अपने-अपने जुते पहने, सामान उठाया तथा खाई में नीचे की ओर फिसलने लगे। घाटी का मार्ग टेढ़ा-मेढ़ा तथा लंबा था। आधी दूरी उन्होंने फिसल कर मात्र एक घंटे में पार कर ली। इसके पश्चात् वे कुछ रुककर एक बर्फीले टीले को देखने लगे। सूर्य की चमकीली टीले को देखने लगे। सूर्य की चमकीली धूप में वह चाँदी की भाँति चमक रहा था। अब तक भगवान अंशुमाली काफी प्रखर हो चुके थे। इसके कारण मैल्कम और वार्व को गरमी का अहसास होने लगा। उन्होंने अपने-अपने कोट उतारे और सामने बहते झरने के शीतल जल से अठखेलियाँ करने लगे।

जब आगे की यात्रा आरम्भ की, तो थोड़ी दूर पर मैल्कम ने दो रीछ शावक देखे। वह कुछ ठिठका, फिर शोर मचाते हुए अपनी दूरबीन निकाल ली और यह देखने का प्रयास करने लगा कि मादा रीछ कहीं निकट तो नहीं है। लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर वह दिखाई पड़ी। उन्हें देखकर वह जोर से गुर्रायी, फिर झाड़ियों में अदृश्य हो गई।

मैल्कम क्षण भर को रुका, सोचने लगा-अब क्या किया जाये? यदि उससे आमना -सामना हो गया, तो किस प्रकार की रणनीति अपनायी जाए और अपना बचाव कैसे किया जाए? यही सोचते हुए वह आगे बढ़ने लगा। बहुत सोच विचार कर उसने निर्णय लिया कि यहाँ फाइट और फ्लाइट (भागो या मुकाबला करो) में से सिर्फ फाइट अर्थात् मुकाबला करो की स्थिति ही प्रभावी सिद्ध हो सकती है, कारण कि हिमयुक्त मार्ग पर भाग सकना संभव नहीं है। ऐसा सोचकर उसने कमर में बंधा अपना चाकू टटोला, तत्पश्चात क्षिप्र कदमों से चलने लगा। अभी वह ज्यादा दूर नहीं गया था कि झाड़ी से निकलकर मादा रीछ ने उस पर आक्रमण कर दिया। इस समय तक उसने स्वयं को परिस्थिति के अनुरूप ढाल लिया था, अतः आक्रमण से घबराया नहीं। झपट्टे के साथ वह एकदम से बैठ गया, किन्तु उसके पंजे के वार ने उसको संज्ञाशून्य बना दिया। रीछ उस पर आक्रमण करता उसके पूर्व ही उसने वार्व को बर्फ के टीले की ओर धकेल दिया, अतएव वह उस प्रथम हमले से बच गई।

मैल्कम को जब होश आया, तो ज्ञात हुआ कि भालू ने उसे अपने मजबूत पंजों के आघात से उसे लगभग तीन मीटर दूर उठा फेंका है। अब तक भालू ने वार्व को तलाश लिया था। वह बर्फ में औंधे मुँह स्थिर पड़ी थी। उसे मालूम था कि निश्चल पड़े रहना ही भालू से बचने का एकमात्र तरीका है। वह उसे ही अपनाए हुए थी। मादा भालू उसके गर्दन के पीछे खड़ी गुर्रा रही थी। मैल्कम ने जब यह दृश्य देखा तो घबरा गया, सोचा शायद, अब अगला हमला वह वार्व पर करने जा रही है। वह उठा, अपने कमर की पेटी से शिकार करने वाला चाकू निकाला एवं हल्ला करते हुए आक्रमण कर दिया। चाकू का वार गर्दन पर हुआ था। खाल को चीरते हुए वह अन्दर तक धँस गया। तुरंत ही उसको बाहर निकाला और विद्युत की गति से दूसरा हमला किया। रीछ की गर्दन से खून का फुहारा फूट पड़ा। वह दर्द से कराह उठी। उसने तेजी से गर्दन घुमाई और मैल्कम की ओर झपट्टा मारा। उससे उसकी कलाई घायल हो गई तथा सिर के बाल त्वचा सहित नकली बाल की टोपी की तरह अलग हो गए। वह बार-बार झपट्टा मार रही थी और मैल्कम बराबर उससे बचने का प्रयास कर रहा था। इस क्रम में वह बुरी तरह घायल हो गया। उसका चेहरा लहूलुहान हो रहा था। भालू एक बार फिर उसकी ओर लपकी। उसने स्वयं को थोड़ा तिरछा करते हुए मुक्के का एक भरपूर प्रहार उसकी नाक पर किया, पर इससे रीछ तनिक भी विचलित नहीं हुई और अपना आक्रमण अभियान जारी रखा। मैल्कम ने डटकर उसका मुकाबला किया, लेकिन अब वह काफी थक चुका था। संघर्ष की सामर्थ्य शेष नहीं थी। मृत्यु निकट समझकर संघर्ष टालना ही उसे उचित प्रतीत हुआ। बाकी ऊर्जा को वह गँवाना नहीं चाहता था, अतएव मृत्यु का बहाना करते हुए जमीन पर गिर पड़ा और शाँत हो गया। मादा रीछ ने जब उससे निश्चेष्ट शरीर को भूमि पर देखा, तो अंतिम बार प्रहार किया, उसके ऊपर मिट्टी डाली, टहनियाँ उछाली। इनके द्वारा वह यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि क्या वास्तव में ही मैल्कम की मौत हो गई? जब कोई हलचल न हुई तो वह वहाँ से चली गई।

मैल्कम खाई में आधा अन्दर आधा बाहर पड़ा हुआ था। उसकी कलाई में असह्य दर्द हो रहा था। किसी प्रकार वह खंदक से बाहर निकला और धीमे स्वर में वार्व को पुकारा। प्रत्युत्तर में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। वार्व इस बात से डरी हुई थी कि कहीं रीछ फिर न आ धमके। उसने सिर उठाकर आस-पास देखा, फिर मैल्कम को दशार किया कि वह उसकी सहायतार्थ पहुँच रही है।

मैल्कम वहीं लेटा रहा। उसकी कलाई टूट गई थी। घुटने में भी गम्भीर चोट थी। आगे के दाँत उखड़ गये थे। एक आँख चेहरे के रक्त स्राव के कारण चिपक कर बंद हो गई थी, जिसे वह यदा-कदा हाथ से खोल लेता था। चेहरे पर उधड़ी त्वचा लटक रही थी, जो दृश्य को काफी भयावह बना रही थी।

उसने थैले से एक कपड़ा निकाला और चेहरे की त्वचा को अपने स्थान पर रखते हुए पट्टी बाँध ली। इस बीच वार्व पीछे की सड़क से भागते हुए विश्रामगृह की ओर दौड़ी। वह सहायता के लिए चीख रही थी। गुहार सुनकर कई लोग दौड़ आए, जिनमें मैल्कम का मित्र वार्डन कोर्डो भी था। नैड क्लो नामक चिकित्सक ने आकर सर्वप्रथम उसके चेहरे तथा पेटों पर भली-भाँति पट्टियाँ बाँधी। इसके बाद हैलिकाप्टर माध्यम से उसे रेविलस्टोक के कवीन विक्टोरिया अस्पताल भेज दिया गया। वहाँ वह दीर्घकालीन चिकित्सा के उपरान्त ठीक हो सका। उसके चेहरे और नाक पर अनेक बार त्वचा प्रत्यारोपण किया गया। इसके पश्चात् ही उसकी शक्ल पूर्ववत् हो सकी। फिर भी कुछ दाग-धब्बे शेष रह गए। बाद में वार्व ने उससे शादी कर ली।

आज वे दोनों कनाडा, वैंकुवर में रहते हैं। मैल्कम एक रेस्तराँ चलाता है, जबकि वार्व किसी कार्यालय में कार्यरत है। जब प्रेम वास्तविक और आँतरिक होता है तब वह बाह्य लावण्य को नहीं देखता, वरन् यह सोचता है कि जिन आदर्शों पर इसकी नींव पड़ी है, उसका अनुपालन हो पा रहा है या नहीं? सच्चा प्रेम शरीर के प्रति नहीं, उत्कृष्ट व्यक्तित्व और उदात्त चिंतन के प्रति होना चाहिए। वार्व ने इसी का उदाहरण प्रस्तुत किया।

मैल्कम की साहसिक भिड़ंत के कारण उसे अनेक पुरस्कार मिले। रॉयल ह्यूमन सोसायटी, लंदन ने उसकी वीरता के लिए ‘स्टेनहोप गोल्ड मेडल’ प्रदान किया। इसके अतिरिक्त रॉयल कैनेडियन ह्यूमन एसोसिएशन ने वीरता पुरस्कार तथा कार्नेगी हीरो फंड कमीशन ने कार्नेगी वीरता पुरस्कार प्रदान किए।

शौर्य और पराक्रम महानता के सहचर है। कायरता मनुष्य को शोभा नहीं देती। जो धैर्य और साहस के साथ विपरीत परिस्थितियों में भी मनोबल को बनाए रखते हैं, विपत्तियों पर विजय वे ही प्राप्त कर पाते हैं। डरपोक तो पग-पग पर पराजित होते और जीवन में अनेक बार मरते हैं।


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