विश्रवा के यहाँ एक कुरूप संतान ने जन्म लिया। बेडौल आकार का होने के कारण सभी उसकी हँसी उड़ाते। उसे लोगों की मूर्खता पर बड़ा क्षोभ हुआ। ‘कुबेर’ नामक इस पुरुषार्थी ने अपनी हँसी अपने ही घर से उड़ते देख ठान ली कि यह मानव समुदाय को यह बताकर रहेगा कि सभी को प्राप्त मनुष्य जीवन रूपी संपदा का सदुपयोग कर महान से महान बना जा सकता है। शरीरगत सुंदरता नहीं अपितु गुण रूपी संपदा महत्वपूर्ण है एवं उसे ही अर्जित किया जाना चाहिए, यह सोचकर उसे अपनी योग्यता बढ़ाने के लिए कठोर तप किया। अपनी लगन से उसने पिता व बाबा को भी इस साधना में सम्मिलित कर लिया देवताओं ने उन्हें अपना धनाधीश लोकपाल बनाया और वे अलकापुरी में राज करने लगें।