एक हृष्ट-पुष्ट और बलिष्ठ शरीर का स्वामी नवयुवक किसी काम से कचहरी में गया। पढ़ने-लिखने में यह कोरा था। इसलिए उसे मुंशी के पास जाना पड़ा। मुंशी के पास जाकर वह बोला-भई मेरी अर्जी लिख दो, जरा जल्दी है।
अर्जी लिखने के लिए और भी लोग खड़े थे। सो मुंशी ने कहा-लाइन से लग जाओ, नंबर आने पर अर्जी लिख देंगे।
दोपहर बाद दो बजे कहीं उसका नंबर आया। इतनी देर में वह खड़ा-खड़ा थककर चूर हो गया। रह-रहकर उसे यह अनुभव हो रहा था कि शारीरिक दृष्टि से समर्थ और बलवान होते हुए भी वह बौद्धिक दृष्टि से परावलम्बी ही है।
उस दिन से उसने स्वास्थ्य साधना के साथ-साथ ज्ञान-साधना पर भी ध्यान देना आरम्भ किया। दिन-रात एक करके उसने अपनी बौद्धिक क्षमता बढ़ायी। उसी का परिणाम था कि एक दिन व बिहार प्राँत का स्वायत्त मंत्री बना। उन्हें आज भी लोग गणेश दत्त सिंह के नाम से जानते हैं।