मुर्दे यदि रोबोट की तरह चलने लगे तो -

January 1998

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मृतकों को जीवित कर पाना सम्भव है क्या? इस सम्भाव्यता पर विज्ञान वर्षों से विचार करता रहा हैं ओर पिछले दिनों कई प्रयत्न भी किये हैं, पर इस दिशा में अब तक जो परिणाम सामने आये हैं, उन्हें उत्साहवर्द्धक किसी भी प्रकार नहीं कहा जा सकता। प्रयास की दृष्टि से वे महत्वपूर्ण हो सकते हैं, पर प्रतिफल के रूप में उनकी महत्ता नगण्य ही कही जाएगी। दूसरी ओर गुह्नोवेत्ताओं का इस संदर्भ में सुनिश्चित दावा है कि ऐसा कर सकना सम्भव है। देखना यह है कि उक्त दावा कितना ठोस साबित होता है।

यों देह का निष्प्राण हो जाना शरीरशास्त्र की दृष्टि में मरना कहलाता है, किन्तु अध्यात्म-विज्ञान उस स्थिति को भी मुर्दे की श्रेणी में रखता है, जहाँ भावी उमंग और उत्साह तिरोहित हो जाते हैं। इसे जिन्दा मुर्दा कहा गया है। एक मुर्दा वह है, जो कब्र में सड़ने -गलने के लिए पड़ा रहता है, दूसरा वह, जो जीवितों की तरह हाथ-पाँव तो चलाता है, क्रिया तो करता है, पर सब कुछ यंत्रवत। इन्हें न तो सही-सही जीवित कहा जा सकता है, न ठीक-ठीक मृत ही। इनको अर्द्धजीवित-अर्द्धमृतक कहना ही उचित होगा।

अफ्रीकी देश हैती की ‘ आर्टिबोनाइट घाटी’ में ऐसे मुर्दे वर्षों से देखे जाते रहे हैं। यों अध्यात्म विज्ञान के तथाकथित ‘मृतकों’ से आर्टिबोनाइट घाटी के मुर्दे एकदम भिन्न हैं, किन्तु दोनों की प्रकृति लगभग समान है। जनश्रुति है कि यहाँ के ओझा और ताँत्रिक कब्र से खोदकर निकाली कई लाशों में गुलाम आत्माओं का प्रवेश कराकर उनसे तरह-तरह के काम करवाते हैं। ये कार्य निजी भी हो सकते हैं। ये कार्य निजी भी हो सकते हैं और दूसरों कि निमित्त भी उनसे खेती भी करायी जा सकती है और खदान भी खुदवाई जा सकती है। मार्गों को साफ कर सकते हैं और उसमें पहाड़ा खड़ा करना भी उनकी क्षमता के अधीन है। कुल मिलाकर वे अपने मस्तिष्क के अज्ञानवर्ती होते हैं और आदेश मिलते ही वे यंत्र की तरह कार्य करने में जुट पड़ते हैं। इसमें न तो किसी प्रकार की सुविधा-असुविधा कोई अड़चन डाल पाती है न कार्य की विशालता-दुरूहता। इस प्रकार के चलते-फिरते मुर्दे वहाँ के स्थानीय बोली में जाम्बी कहलाते हैं, एक समय में वहाँ के वे अजीबोगरीब जाम्बी इतने चर्चित हुए थे कि कई देशों ने इन पर हिट फिल्ते बनायी। हॉलीवुड में भी इस कथानक पर अनेक चलचित्र बने, जिनमें ‘व्हाईट जाम्बी’ ‘किंग ऑफ जाम्बीज़’ तथा ‘ फ्रैंकस्टीन मास्टर’ प्रसिद्ध है।

आरम्भ में हैती के जाम्बी कपोल-कल्पना भर माने जाते थे, किन्तु सन् 1966 में वहाँ की आर्टिबोनाइट घाटी में जब एक ऐसी महिला निरर्थक विचरण करती देखी कई, जिसकी मौत साठ वर्ष पूर्व हो चुकी थी, तब धूम मच गई। फेलिसिया मेण्टर नामक यह महिला एक फिल्म कलाकार थी, जोरा हर्स्टन से उसकी गहरी दोस्ती थी। यह एक नृतत्ववेत्ता थी। फिल्म शूटिंग दौरान एक दुर्घटना में वह घायल हो गये, जिसके फलस्वरूप सन् 1929 उसकी मृत्यु हुई। यह सारी घटना हर्स्टन के समक्ष ही हुई थी। जब वह जख्मी हुई, तब भी जोरा हर्स्टन वहाँ मौजूद थी और जब उसने अस्पताल में अन्तिम साँस ली उस समय भी वह वहीं थीं। दफनाने की क्रिया भी उसके सामने सम्पन्न हुई, इसलिए उसकी मौत के सम्बन्ध में वह एक दम निर्भ्रान्त थी।

एक बार जोरा अपने साथियों के साथ उक्त घाटी के वनवासियों की जीवन-शैली का अध्ययन करने के उद्देश्य से वहाँ पहुँची। वह एक कबीले के लोगों से मिलने के उपराँत घाटी के दूसरे किनारे पर बसे दूसरे कबीले के लोगों से मिलने जा रही थीं कि सामने से आती निर्वस्त्र फेलिसिया मेण्टर को देख हक्का-बक्का रह गयी उसकी समझ में यह तनिक भी नहीं आया कि मरने के इतने वर्ष बाद वह वहाँ उस स्थिति में कैसी घूम रही थी? उसने इतना अवश्य महसूस किया कि उसकी आँखों में एक अजीब सूनापन है। ऐसा उसने इससे पूर्व फेलिसिया के चेहरे पर कभी नहीं देखा था। उसे इस बात पर भी आश्चर्य हुआ कि उसकी दृष्टि जोरा पर पड़ने के बावजूद भी उसमें किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। वह असमंजस में थी कि कही उसे धोखा तो नहीं हुआ? फेलिसिया के पीछे-पीछे थोड़े फासले पर एक पुरुष चल रहा था। उसने उससे उस स्त्री का परिचय पूछा। व्यक्ति ने बताया कि वह एक जाम्बी है, जिसका मालिक वह स्वयं है। इसके पश्चात् उसने जाम्बी स्त्री के निर्जीव शरीर का प्राप्तिस्थान और फिर उसके जाम्बी बनाने की प्रक्रिया का सविस्तार उल्लेख किया। अब जोरा की दुविधा समाप्त हो गयी। उसे इस बात का भरोसा हो गया कि वह नग्न नारी उसकी मित्र फेलिसिया ही है। चर्चा के दौरान ताँत्रिक ने यह रहस्योद्घाटन भी किया कि जाम्बी में सोचने समझने की शक्ति नहीं होती। मालिक के इशारे पर वह यंत्रवत् कार्य करते हैं। कदाचित इसी कारण जोरा को देखकर भी उसने किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई थी।

इस घटना के उपराँत जोरा ने वहाँ के जाम्बियों का अनेक वर्षों तक गहराई से अध्ययन किया एवं इनके निष्णातों से इस सम्बन्ध में गहन चर्चा की। इसके बाद इस विषय पर एक पुस्तक लिखी, नाम था दि जाम्बीज़ फैक्ट आँर फिक्शन ‘। उक्त रचना में उसने उन सभी तथ्यों और घटनाओं का वर्णन किया है, जिन्हें उनने स्वयं अपने आँखों से देखा था। एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए लिखा है कि एक बार क्लेरिना क्लेमोण्ट नामक एक महिला का निधन अतिशय रक्तस्राव के कारण गोनेब अस्पताल में हो गया। परिजनों ने कब्र में दफना कर उसे अन्तिम विदाई दी। देहान्त के करीब दो वर्ष पश्चात एक दिन अचानक वह बड़ी विचित्र हालत में अपने घर में प्रकट हुई सभी उसे भूत समझकर भाग खड़े हुए। बाद में वह मकान में इधर-उधर कुछ समय तक निरुद्देश्य घूमने के उपराँत जैसे आयी थी वैसे ही चली गयी जब उसकी कब्र खोदकर देखा गया तो उसकी लाश गायब थी अब उसके सम्बन्धियों को यह विश्वास हो गया कि वह क्लेरिना का प्रेत नहीं वरन् जाम्बी था।

एक अन्य घटना के बारे में वे लिखती हैं कि हैती के अल्बर्ट श्वाइत्जर अस्पताल में एक युवक फेरियों नार्सिस अपने गुर्दे का इलाज करा रहा था। चिकित्सकों ने उसकी तकलीफ का कारण गुर्दे का पथरी का होना बताया और उसकी सर्जरी कर दी। ऑपरेशन सफल रहा। पथरी निकाल ली गयी, पर असावधानीवश उसमें संक्रमण हो गया, जो धीरे-धीरे बढ़ता ही गया। एक गुर्दा पहले ही खराब हो चुका था। अब दूसरे में संक्रमण हो जाने से अकस्मात् उसका देहान्त हो गया। एक वर्ष पश्चात् उसके माँ-बाप सहित अनेक लोगों ने उसे पागलों की भाँति इधर-उधर भटकते देखा। बाद में ज्ञात हुआ कि उससे ईर्ष्या रखने के कारण उसके चचेरे भाई ने उसे एक सयाने का गुलाम बना दिया।

40 की शताब्दी में ग्लेरियों फर्नाण्डों का जाम्बी काफी चर्चित हुआ था, वह अक्सर लोगों के घरों में घुसकर मनमानी करने लगता था। उसका चेहरा एकदम पीला और आंखें श्वेत थीं। लोग उसकी भयानक मुखाकृति से भयभीत होकर भाग खड़े होते थे। कहते हैं कि एक बार रात्रि में वह किसी के घर में घूस गया। मालिक ने उसे समझ कर पकड़ लिया और उसी खूब पिटाई की, किन्तु जब इतनी मार के बाद भी उसके मुँह से कोई शब्द नहीं निकला, तो मालिक को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने बत्ती जलायी, तो उसे देखते ही एक भीषण चीख साथ वह बेहोश हो गया। जब होश आया तो जाम्बी जा चुका था। कहा जाता है कि इनके इस प्रकार के कार्य भी ओझाओं से प्रेरित होते थे। वह अपनी इच्छा से कुछ भी नहीं करते। ओझा यदि चाहें तो इनके माध्यम से वह किसी को भी परेशान कर सकता है।

जोरा हर्स्टन ने अपने कृति में एक बालक जाम्बी का रोचक विवरण प्रस्तुत किया है। ब्रॉयन अलर्क नामक इस बालक के असामयिक निधन के बाद जब उसकी काया को पृथ्वी के सुपुर्द किया गया, उस वक्त उसकी उम्र 15 वर्ष थी एवं वह नवीं कक्षा का छात्र था। दूसरे दिन रात के अंधेरे में तांत्रिकों ने उसकी मृत देह कब्र में से निकाल ली और उसमें किसी गुलाम आत्मा को प्रविष्ट करा दिया, फिर बच्चों की स्कूली पोशाक पहनाकर उसे परतंत्र बनाने वाले लोगों ने विद्यालय भेज दिया वहाँ बालक की मृत्यु के सम्बन्ध में किसी को कुछ ज्ञात नहीं था। स्कूल पहुँचते ही उसने सहपाठियों कान उमेठने शुरू कर दिये। सभी उसके इस व्यवहार से क्षुब्ध थे। इतना शाँत लड़का आज ऐसी धृष्टता क्यों कर रहा है, उनकी समझ में नहीं आया। कईयों ने तो पिटाई कर दी, फिर भी उसके आचरण में कोई परिवर्तन नहीं आया। उसके मित्र यह महसूस कर रहे थे कि आज उसका चेहरा बिल्कुल सूखा-सूखा एवं पीला प्रतीत हो रहा है तथा उसका व्यवहार एकदम याँत्रिक जैसा है। इसके अतिरिक्त वे और कुछ अंदाज नहीं लगा सके। दूसरे दिन वह कक्षा में तनिक जल्दी पहुँच गया। इसके बाद जो कोई अन्दर आता, उसी के साथ मारपीट शुरू कर देता। शिकायत अध्यापक तक पहुँची। उन्होंने विद्यार्थियों की मदद से हाथ पैर बंधवा कर कक्षा के एक कोने में डाल दिया और पिता को सूचित किया। वहाँ ब्रॉयन को सचमुच देखकर उसके पिता के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वे मुर्दों पर कब्जा करने के प्रसंग से भली भाँति अवगत थे। अतः वहाँ से सीधे कब्रगाह पहुँचे, ब्रॉयन की कब्र खोदी, देखा खाली है। उसका संदेह पक्का हो गया कि किसी ने उनके मृत लड़के को जाम्बी बना लिया। स्कूल आकर शिक्षकों को इसकी सूचना दी। जाम्बी बालक को मुक्त कर दिया। उसके बाद से वह फिर कभी स्कूल नहीं आया।

अमेरिका के मूर्धन्य जादू विद्या विशारद अल्फ्रेड मेट्राँक्स ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘दि एग्जोर्सिजम’ में एक घटना की चर्चा करते हुए लिखा है। एक बार मार्विन मोनरो नामक एक इंजीनियर कार से न्यूयार्क जा रहा था। दुर्भाग्यवश रास्ते उसकी कार बिगड़ गयी। वह इलाका लगभग जनशून्य था। एक्के-दूक्के मकान ही कही-कही थे। थोड़ी देर में मोनरों के पास एक वृद्ध आया और उसे अपने मकान में ले गया तथा अपने नौकर को निकटवर्ती शहर में किसी मैकेनिक की तलाश में भेजा मोनरों मृत आत्माओं की गुलामी के बारे में विश्वास नहीं करता है। वह वृद्ध सयाने से यह बात छुपी न रह सकी। उसने माह पूर्व मरे अपने अभिन्न मित्र सेलेस्टीन के बारे में पूछा। वह कुछ बोल पाता इसके पूर्व ही वृद्ध ने हाँथ हवा में लहराया सेलेस्टीन की आत्मा आज्ञाकारी सेवक की तरह बिना एक पल भी गवांए वहाँ उपस्थित हो गयी। यह देख मोनरो हतप्रभ रह गया। उस वृद्ध ने बताया कि सेलेस्टीन की यह आत्मा उसके कब्जे में है और उससे कहीं भी, कभी भी किसी प्रकार का कार्य लिया जा सकता है। उसने यह बताया कि यह अशरीरी आत्मा हैं, पर इसे किसी दूसरे के मुर्दे शरीर में प्रविष्ट कराकर भी उससे तरह-तरह के काम कराये जा सकते हैं, किन्तु शरीर युक्त जाम्बी की तुलना में अशरीरी आत्मा रखना अधिक सरल और सुविधाजनक है, ऐसा उसका निजी मत् था। कारण बताते हुए उसने कहा कि दोनों से कार्य एक जैसे लिये जा सकते हैं, पर जाम्बी कलेवरयुक्त होने के कारण उसे रखने की समस्या सदा बनी ही रहती है। देयविहीन प्रेम आत्माओं के साथ यह कठिनाई नहीं होती।

हैती के चलते-फिरते मुर्दे जग विख्यात हैं। वहाँ के घुमंतू मुर्दों का इतिहास जानने के लिए हैती का इतिहास जानना जरूरी है। ज्ञातव्य है कि इसी छोटे से देश की खोज सन् 1492 में कोलंबस ने की थी। उस समय वहाँ स्पनी और पुर्तगालियों का वर्चस्व था। दो शताब्दी तक इन जातियों ने हैति को जमकर लूटा तत्पश्चात् सन् 1697 में फ्राँस में इस पर अधिकार कर लिया। फ्राँसीसी उपनिवेश ने वहाँ के मूल निवासियों और अफ्रीकी गुलामों पर बहुत कहर बरसाये। ‘ मैरुन ‘ नाम से जाने-जाने वाले इन गुलामों पर कहर हद दर्जे से भी पार कर गया। इससे बचने के लिए मौका पाते ही मैरुन वहाँ से भाग निकल के और हैती के सघन जंगलों में शरण लेते, इन भगोड़े गुलामों में मैकेण्डल नामक एक गुलाम था फ्राँसीसी सैनिकों ने उस पर मरमांतक जुल्म ढाये थे। अब वह उनसे बदलना लेना चाहता था, वह गुह्यविद्या का जानकार था एवं उसके माध्यम से मुर्दों को प्रेम आत्माओं के वशीभूत करना जानता था। यह विद्या उसने अन्य अनेक साथियों को सिखा दी यही से हैती के घुमंतू मुर्दों की गाथा आरंभ होती है। इसके पश्चात् फ्रांसीसी सैनिकों में से जो कोई मरता रात के अंधेरे में ये गुलाम उसकी मृत काया को कब्रिस्तान से चुरा लाते और अपना जाम्बी बना लेते। 100 वर्षों तक यही होता रहा, फलस्वरूप वहाँ के जंगलों में मृत सिपाहियों के मुर्दे बड़ी संख्या में चलते फिरते नजर आने लगे। फ्रांसीसी उन्हें मरने वालों के प्रेम समझते रहे और इस प्रकार अंत तक सच्चाई से अनभिज्ञ बने रहे।

यों विज्ञान इन प्रसंगों को प्रमाणिक तो नहीं मानता पर मरने के बाद फिर से जीवित होने की संभावना से सर्वथा इनका इन्कार भी नहीं करता। स्वयं विज्ञान देवता भी इस प्रकार के प्रयास में संलग्न हैं, जिसमें मृत्यु के बाद व्यक्ति को पुनर्जीवित किया जा सके। समझा जाता है कि टैक्सास में ह्यूस्टन में ह्यूस्टन स्थित नासा के लायडन बी. जॉनसन स्पेस सेण्टर में अनेक मानीकाया निष्क्रिय अवस्था में विशेष प्रकार से निर्मित धात्विक खोलों में लम्बे काल के उपरान्त फिर से जीवित हो उठने के इन्तजार में सुरक्षित बन्द पड़ी हुई है। कहा है कि ये उन लोगों के शरीर हैं, जिन्होंने स्वेच्छापूर्वक इस प्रयोग के लिए स्वयं को प्रस्तुत किया। मुर्दे की तरह गहरी सुषुप्ति में पड़े हुए ये शरीर वर्षों बाद पुनः जिन्दा हो सकेंगे। या नहीं, यह कहना अभी ठीक नहीं है।

वैसे हैती की घटनाओं को वैज्ञानिक कोई जादू-चमत्कार नहीं मानते, इसे एक विशुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। वहाँ के मुर्दों पर हुए अनुसंधान में अनेक लाशों में धतूरे का अंश पाया गया है। इसके अतिरिक्त बुफो मैरीनस नामक मेंढक तथा कुछ जहरीली मछलियों के विष पाये गये हैं। धतूरे को हैती में ‘जाम्बीज कुकुम्बर’ अर्थात् ‘प्रेत ककड़ी ‘ कहते हैं। इससे प्रतीत होता है कि धतूरे का प्रयोग इस प्रक्रिया में होता हो।

वहाँ के मुर्दों का लम्बे समय तक गहन अध्ययन करने वाले अमेरिकी शरीरशास्त्री एल. हेफलीक अपनी शोध का निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए अपनी कृति ‘दिं लिविंग डेड’ में लिखते हैं कि धतूरे और मेढ़क के विष से मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क कदाचित इतनी गहरी निष्क्रियता की दशा में पहुँच जाते होंगे कि साधारणतः लोग इसे मृत मान बैठें और शरीर को दफना दें। इन्हीं शरीरों को निकालकर वहाँ के तथाकथित ओझा उन्हें पुनः होश में ले आते होंगे। होश लाने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में वे लिखते हैं कि सम्भव है उनके पास कोई ऐसी औषधि हो, जिसके प्रयोग से वे उनकी मूर्च्छा को दूर करने में सफल हो जाते हों, पर ऐसा करने से पूर्व व्यक्ति को जहर देकर मृत्युतुल्य मूर्च्छा की स्थिति लाना आवश्यक है। जो वास्तव में ही मर गये हों, उनका जाम्बी तैयार कर सकना सम्भव नहीं। अतएव यह सुनिश्चित है कि वहाँ के गुनी जिनका जाम्बी निर्मित करना चाहते होंगे, उन्हें परोक्ष रूप से उपरोक्त मूर्च्छाकारक पदार्थ अवश्य खिलाते होंगे, लेकिन हेफीक यह बता पाने में असमर्थ रहे कि मूर्च्छा टूटने के पश्चात् वे ओझों के वशवर्ती गुलाम क्यों व कैसे हो जाते हैं? उनकी स्वाभाविकता समाप्त किस प्रकार हो जाती है और वे यंत्रवत क्यों बन जाते हैं। व्यक्ति यदि मूर्च्छा से पूर्ण स्वस्थता की स्थिति में लौटता है, तो वह किसी का गुलाम बनकर क्योंकर रहना चाहेगा और यदि अर्द्धमूर्च्छा की अवस्था में है, तो उससे निर्देशों का पालन करा पाना सम्भव नहीं। हैती के मुर्दे निर्देशों का सही-सही पालन भी करते हैं और चलते-फिरते भी हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें अर्द्धमूर्च्छित कैसे कहा जाए? स्पष्ट है-यह प्रकरण अभी रहस्य के आवरण में ढँका है ओर इस पर से पर्दा उठना अभी शेष है।

इस संदर्भ में एक सम्भावना यह भी व्यक्त की जा रही कि यह ‘ सोमनाबुलिज्म रोग’ (नींद की चलने की बीमारी) का ही एक अभिनव संस्करण है, जिसमें मस्तिष्क स्थायी निद्रा की दशा में बना रहता है और व्यक्ति क्या कुछ कर रहा है, उसे होश ही नहीं होता। इस अवस्था में यदि वह दूसरे के आदेश-निर्देशों का रोबोट की तरह पालन करने लगे, तो कोई आश्चर्य नहीं, किन्तु यह एक सम्भावना मात्र है। इससे सत्य-तथ्य की जानकारी नहीं मिलती।

गुह्यविज्ञान भौतिक विज्ञान के आगे की कड़ी हैं। उसके इच्छित कार्य करा लेना कोई बड़ी बात नहीं शरीर जितना मजबूत होगा, उसकी शक्ति उतनी ही बढ़ी-चढ़ी होती है। कमजोर काया पहलवानों जैसा काम कहाँ कर पाती है? दोनों की अपनी-अपनी सीमाएँ और क्षमताएं हैं। पदार्थ विज्ञान की पहुँच सिर्फ पदार्थ स्तर तक है, अस्तु, वह भौतिक संसार की उन्नति-प्रगति पर विचार करे और गुह्यविज्ञान को पदार्थों के रहस्यमय एवं गूढ़ पक्ष पर शोध-अनुसंधान करने दे। दोनों अपने-अपने क्षेत्र में अपने-अपने ढंग का प्रयास करें, तभी कोई कहने योग्य सफलता मिल सकती है इससे कम में नहीं।


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