नववर्ष का उल्लास-अभिव्यक्ति विविध रूपों में।

January 1998

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नववर्ष का आगमन कालचक्र की शाश्वत गति का प्रमाण है। काल का चक्र अपनी शाश्वत गति से घूमता रहता है। इसकी परिधि में दिवस-रात्रि, सप्ताह एवं महीनों का आना-जाना चलता रहता है। इसी क्रम में वर्ष का अवसान व नववर्ष का आगमन होता है। पुराना वर्ष अपने 364 दिन के पंखों को धीरे-धीरे समेटता हुआ, कुछ खट्टे-मीठे अनुभव देकर चलता जाता है और प्रस्तुत होता है नया वर्ष जो अपने साथ नयी आशा-उमंग एवं खुशियों की लहर आता है। इसके स्वागत के लिए हर व्यक्ति बेताब रहता है। विश्व के सभी देशों के नागरिक अपनी अपनी संस्कृति एवं परम्परा के मुताबिक इसका स्वागत करते हैं। सबके अपने-अपने विचित्र, अनोखे व दिलचस्प रंग-ढंग होते हैं।

जापान में नववर्ष को खुशियों के त्योहार के रूप में बनाया जाता है। लोग तरह तर के व्यंजन बनाते हैं। और घरों को बाँस व चीड़ की लकड़ियों से सजाते हैं। परम्परागत पोशाकें पहनकर लोग व्यंजनों का आनन्द लेते हैं व एक-दूसरे को यादगार तोहफे भेंट करते हैं। यह उत्सव पाँच दिन तक चलता है। सुबह ही लोग नदियों व कुओं से स्वच्छ जल लाकर चावल का व्यंजन बनाते हैं और उसका कमल की जड़ के साथ सेवन करते हैं। उनकी मान्यता है। कि ऐसा करने से व्यक्ति के आयुष्य में वृद्धि होती है। यहाँ के लोग घर को सजाने में प्रयुक्त बाँस को दृढ़ता तथा सच्चरित्रता और चीड़ को जीवन का प्रतीक मानते हैं। एक मजेदार बात जापान के संदर्भ में यह है कि नववर्ष में यहाँ डाकियों की बन आती है, क्योंकि यहाँ डाकिये को कुछ देकर ही उपहार के पार्सल लेने की परम्परा है।

बर्मा में नववर्ष का उत्सव तीन दिन तक मनाया जाता है। इसे तिजान के नाम से जाना जाता है। इस दिन वहाँ लोग बुद्ध भगवान की प्रतिमा पर सुगन्धित जल का वर्षण कर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद मिठाई बाँटकर खुशी व्यक्त करते हैं। चीन में इस दिन रात्रि भर जागरण होता है व खूब आतिशबाजी की जाती है दूसरे दिन सभी को पकवान खिलाए जाते हैं। यहाँ की ताए जाति के लोग नववर्ष को पाँच दिन तक मनाते हैं। सर्वप्रथम भगवान बुद्ध की वन्दना-अर्चना की जाती है। उसके बाद एक दूसरे पर होली की तरह सादा जल डाला जाता है। जिसे लोग ‘छपाका’ कहते हैं। यह मान्यता है कि छपाका मनुष्य को स्वस्थ रखता है। दक्षिण अफ्रीका में नये वर्ष का उत्सव विचित्र ढंग से मनाया जाता है। यहाँ की परम्परा के अनुसार नवविवाहितों को इस दिन खूँखार साँड़ से लड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। जिसे नवविवाहित पति-पत्नी मार कर अपने इष्टदेव को चढ़ाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से रोगमुक्ति का लाभ होता है। ईरान में लोग बड़े रोचक ढंग से नववर्ष का स्वागत करते हैं। यह अलग बात है कि उनका यह स्वागत समारोह 21 मार्च को होता है। उत्सव से 14 दिन पूर्व गेहूँ व जौ के बीच बोए जाते हैं और उन्हें अंकुरित होने दिया जाता है। परम्परा के अनुरूप, नववर्ष दिन इनको प्याली में डालते हैं। ऐसा करना शुभ माना जाता है।

मलेशिया, चिली, थाईलैण्ड, सुमात्रा आदि देशों में नागरिक अपने-अपने देवी देवताओं का पूजन करते हैं। तथा सुख समृद्धि की कामना करते हैं। महिलाएँ सुहाग की प्रतीक वस्तुओं का आदान-प्रदान कर सुख-समृद्धि का कामनाएँ करती हैं। स्पेन में इस दिन रात्रि के 12 बजे के बाद एक दर्जन ताजे अंगूर खाने की परम्परा है। उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से वे सालभर स्वस्थ रहते हैं।

नववर्ष के अवसर पर इटली के लोग चितकबरी, खूबसूरत, आकर्षक पोशाकें पहनकर खुशियाँ मानते हैं और एक-दूसरे को बधाइयाँ देते हैं। पोप की राजधानी वेटिकन सिटी में इस अवसर पर अनेक धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। धर्मगुरु पोप नए वर्ष के प्रारम्भ होने की प्रार्थना के साथ विश्वशान्ति का संदेश देते हैं। यूगोस्लाविया में नए वर्ष का जश्न अपने ढंग से मनाया जाता है। यहाँ नाच-गाने हंगामे के साथ दिवाली की तरह खूब पटाखे व आतिशबाजी की जाती है, जिसमें बच्चे के साथ बड़े बूढ़े सभी भाग लेते हैं। किसान विचित्र ढंग से इसे मनाते हैं। वे सुअर की पूँछ पकड़ कर घर के प्रत्येक सदस्य को छुआते हैं। उनकी मान्यता कि इससे घर में सुख- शान्ति आती हैं। जर्मनी में नए वर्ष को मनाने के अनुसार प्रत्येक पिता अपनी पुत्रियों को एक हजार पिन या इसके बराबर कीमत के उपहार भेंट करता है। इसी कारण इस त्योहार को ‘पिनपिनी’ नाम से जाना जाता है। इसे वे सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य का सूचक मानते हैं। ब्रिटेन में नया वर्ष पारम्परिक एवं सामाजिक तौर-तरीकों से मनाया जाता है। ब्रिटिश लोग इस मौके पर खूब जश्न मनाते हैं और हर ओर लोग केक-पेस्टी एवं शराब में डूबे दिखाई देते हैं। मस्ती में लोग अपने-अपने साि के साथ नाचते हैं। इस दिन लंदन का ट्रेफलगर स्क्वायर खुशी से शोर मचाते लोगों से भर जाता है। विचित्र बात यह है कि यहाँ परिवार का मुखिया अपने हाथ में बड़ा-सा टेबल सजाकर, उस पर गर्म पेय से भरा एक कटोरा रखता है, जिसमें से प्रत्येक सदस्य एक-एक चम्मच लेकर मुंह में डालते हैं। ऐसा करना वे स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिए शुभ मानते हैं।

रोम उपहार बाँटने परंपरा है। इस दिन यहाँ आतिशबाजी के धमाकों से आकाश गूँज उठता है। स्कॉटलैंड में नववर्ष के प्रथम दिवस को लोग ‘डेसले डे ‘ कहते हैं। 31 दिसम्बर की रात को लोग अपने घरों के कमरों में परिवार सहित एकत्रित हो जाते हैं और आने वाले पहले मेहमान की प्रतीक्षा करते हैं। उस मेहमान के आते ही सभी उसके स्वागत-सत्कार में जुट जाते हैं। ये लोग प्रथम मेहमान को स्वास्थ्य, सुख एवं समृद्धि का सूचक मानते हैं। इस तरह नए वर्ष का स्वागत विश्व के हर काने में अपने-अपने ढंग से होता है। नए साल के आने की खुशी में, मनुष्य समुदाय में आशा-उमंग एवं उत्साह का भाव जाग्रत होना स्वाभाविक है। इसकी अभिव्यक्ति सभी अपने-अपने ढंग से अपनी-अपनी परम्पराओं एवं प्रथाओं के अनुरूप करते हैं। सभी देशों एवं सभी सामाजिक परम्पराओं में भारत एवं भारतीयता है। परंपरा के अनुसार, भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। भारतीय यह उत्सव नौ दिनों तक नवरात्रि के रूप में उपासना-समारोह करके मानते रहे हैं। पाश्चात्य अंधानुकरण शैली ने आज के दौर में प्राचीनता के गौरव को विस्मृत- सा दिया गया है। 31 दिसम्बर की रात्रि को यह विस्मृति अपने चरम तक जा पहुँचती है। इस अवसर को भारतीय परंपराओं के नवोन्मेष के रूप यदि मनाया जाने लगे, तो यह नववर्ष के उल्लास की सार्थक अभिव्यक्ति होगी।


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