मनुष्य ने अपनी बौद्धिक क्षमता तथा पारस्परिक सहयोग-सहकार की प्रवृत्ति के कारण भौतिक जगत की अनेकानेक सफलताएँ अर्जित कर दिखायी हैं, जिनके फलस्वरूप आज उसे प्रकृति सम्पदा का स्वत्वधिकारी माना जाता है। इतने पर भी यहीं समझ लेना चाहिए कि ज्ञान पर उसका पूर्ण अधिकार है। यदि तुच्छ समझे जाने वाले दूसरे प्राणियों को भी अवसर और साधन मिलें तो वे भी प्रगतिशील जीवन जी सकते हैं और क्रमशः आगे पहुँच सकते हैं।
यों बौद्धिक क्षमताएँ मनुष्य में है तो सही पर उनका विकास तभी होता है जब दूसरों की सहायता मिले। पढ़ाये, प्रशिक्षित किये बिना कोई बच्चा क्रिया-कुशल नहीं हो सकता। यदि उचित सहयोग-संपर्क न मिले तो जन्मजात बुद्धिमता रहने पर भी मनुष्य अविकसित परिस्थितियों में पड़ा रह सकता है, अथवा कुसंग में कुमार्गगामी हो सकता है। इस दृष्टि से भी मनुष्येत्तर प्राणी कहीं आगे हैं। उन्हें प्रकृति ने ऐसी सूझ-बूझ दी है बिना किसी शिक्षा-दीक्षा के भी इतना सुन्दर-सुव्यवस्थित जीवन-यापन करते हैं कि उनकी सुरुचि, अनुशासन शीलता, साहसिकता, बुद्धिमत्ता और अतीन्द्रिय सामर्थ्य पर आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है।
पशुओं को गया-गुजरा भले ही मान लें, किन्तु उनके गुणों का लोहा तो हमें मानना ही पड़ेगा। ‘स्वामिभक्त ‘ शब्द सुनते ही कुत्ता अपने पालनकर्ता के फेंके हुए चन्द टुकड़ों पर जिन्दगी बसर कर रहा हो, वह समय आने पर सोता रहे या पूँछ लटकाकर एक ओर तटस्थ खड़ा हो जाए? इस तरह का कार्य उसे विश्वासघात व कृतघ्नतापूर्ण ही लगता है। आड़े वक्त पर वह अपने प्राणों का मोह छोड़कर अपनी जान पर भी खेल जाता है।
प्राणशास्त्रियों के अनुसार, कुत्ता अपनी श्रेणी के दूसरे जानवरों की तुलना में अधिक बुद्धिमान होता है। मनुष्य की तुलना में इसकी श्रवणन्द्रियाँ व घ्राणेन्द्रियाँ अधिक सक्षम और तीव्र होती हैं। मनुष्य जितनी दूरी तक देख नहीं सकता, उससे कई गुना अधिक दूरी की चीजों को कुत्ता अपनी घ्राण-शक्ति के सहारे बता सकने में सक्षम होता है। श्रवण-शक्ति भी उसकी कम नहीं है। परीक्षणों के उपराँत वैज्ञानिकों ने पाया है कि दूर की आवाज को कुत्ता जितनी अच्छी तरह सुन-समझ सकता है, औसत स्तर का व्यक्ति उस भिन्नता का अनुभव कदापि नहीं कर सकता। कुत्ते की बुद्धिमत्ता तो देखते ही बनती है। संकट के समय वह अपनी पूँछ को दोनों पैरों के बीच लगाकर मालिक को भयभीत स्थिति से अवगत कराता है। वह स्वामी के आदेशों को सुनने-समझने और तदनुरूप क्रिया-कलाप करने में बड़ी तत्परता का परिचय देता है।
अपनी सूझ-बूझ एवं वफादारी के कारण ही कुत्ता मनुष्य के साथ मैत्री भाव स्थापित कर सका है। महाभारत की एक कथा है, जिसमें कहा गया है कि स्वर्गारोहण से पूर्व जब पाण्डव देवात्मा हिमालय की यात्रा पर गये तो उनका कुत्ता भी साथ था। छत्रपति शिवाजी ने स्वामिभक्ति से प्रभावित होकर कुत्ते की स्मृति में एक बहुत बड़ा स्मारक बनवाया था। प्रख्यात गायक उस्ताद अब्दुल करीम,खाँ का टीपू नाम का कुत्ता शास्त्रीय संगीत अच्छी तरह गा सकता था। वस्तुतः आदिकाल से ही कुत्ता मनुष्य का साथी-सहयोगी बनकर रहा है। ट्रोजन युद्ध के पश्चात जब यूलीसेस घर लौटा तो केवल उसके वफादार कुत्ते ने ही उसे सर्वप्रथम पहचाना। ईसाई धर्मग्रन्थ बाइबिल में कुत्तों के तेरह कथानक मिलते हैं। उनमें सबसे महत्वपूर्ण एक जीवित कुत्ता मृतक शेर से कहीं अच्छा होनक का है। डौग इन द मैंजर की उक्ति इस तथ्य की पुष्टि करती है कि जो स्वयं किसी वस्तु का उपयोग नहीं करेगा, वही दूसरों को खिला सकने में समर्थ होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कुत्ते में परमार्थपरायणता एवं सदाशयता की भावना, कूट-कूटकर भरी रहती है। बारहवीं शताब्दी में फ्राँस के प्रसिद्ध संत बर्नार्ड स्विट्जरलैंड पहाड़ों की दुर्गम चोटी पर आश्रम बनाकर रह रहे थे। उनके यहाँ कुत्ते भी रहते थे। एक बार बड़ी संख्या में तीर्थयात्री पहाड़ों की बरफ में धँसने लगे, तो कुत्तों नहीं उन्हें बड़ी बुद्धिमानीपूर्ण ढंग से निकाला और और नवजीवन प्रदान किया। उनमें से बैरी नाम के कुत्ते का आज भी स्मरण किया जाता है, जिसने चालीस लोगों की जाने बचायी थी।
सन् 1944 में जर्मन खगोलज्ञ फैड्रिक बि हेल्म बेसेल ने साइरस नाम एक तारे की खोज की, जिसे डॉग स्टार के नाम से भी जाना जाता है। रात्रि में इसका प्रकाश अन्य तारागणों की अपेक्षा कही अधिक होता है। डॉग डेज अर्थात् कुत्ता दिवस मनाने का प्रचलन तभी से चला आ रहा है। कुत्ते की वफादारी एवं स्वामिभक्ति की कहानियाँ प्राचीनकाल से ही चली आ रही हैं। वर्तमान में भी ऐसे अनेकों उदाहरण देखने को मिल जाते हैं, जो उक्त तथ्य की पुष्टि करते हैं, सिडनी की एक घटना बड़ी ही विलक्षण है। वहाँ शेप नामक एक कुत्ता प्रतिदिन प्रातःकाल 6 बजे अपने मालिक के साथ रेलवे स्टेशन जाया करता था। दुर्भाग्यवश मालिक की मृत्यु हो गयी। कुत्ते का स्टेशन जाने का क्रम पूर्ववत बना रहा। 6 वर्ष बाद कुत्ता भी मृत्यु की गोद में चला गया। यद्यपि शेप अब नहीं है, फिर भी उसकी स्वामिभक्ति प्रशंसनीय एवं चिरस्मरणीय बनी हुई है।
एडमिरल पियरे और कैप्टेन स्काँट की दक्षिणी और उत्तरी ध्रुवों की सफल खोजयात्रा का श्रेय उनके अपने वफादार कुत्तों को ही दिया जाता है। अंतरिक्ष की खोज के लिए स्पूतनिक -’ 2 राकेट में लाइका नामक कुतिया को भेजा गया था। ध्रुवीय प्रांतों एवं बेल्जियम में तो कुत्तों से गाड़ी खींचने तक का काम लिया जाता है। जिस काम को घोड़े कर सकते है, उसके कुत्ता आसानी से निपटा लेते हैं। तीस से आठ पौण्ड तक का वजन दो ढो सकने में वे पूरी तरह सक्षम होते है। जर्मनी कुत्ते तो पुलिस के सदृश ही अपराधियों को पकड़ने में सहायक सिद्ध हो रहें है। अपराधी को उतना भय बन्दूकधारी सिपाही से नहीं होता, जितना कि कुत्ते से। पुलिस विभाग में आज सर्वत्र डॉग स्क्वैड नामक अलग विभाग बना हुआ है, जहाँ कुत्तों से अपराधियों को पकड़ने से लेकर विस्फोटक सामग्री खोज निकालने तक का काम लिया जाता है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमेरिकी सेना ने च्के-9 कोर्प्सज् नामक एक यूनिट गठित करके कुत्तों की विभिन्न प्रकार की सेवा-सहायता का लाभ उठाया था। गश्त लगाते समय कुत्ते एक सैनिक का संदेश दूसरे सैनिक को पहुंचाते रहे, जिससे दुश्मन के ठिकानों का पता लग सकें। चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करने में भी उनका सहयोग बड़ा सराहनीय रहा है। घायल सैनिकों को दवा-दारु देने की जिम्मेदारी कुत्तों ने सँभाली थी। जर्मनी में च्रोट बैलरज् नामक कुत्ते की एक ऐसी प्रजाति है, जो गड़रिये का उत्तरदायित्व सँभालते हैं। वे भेड़ों को जंगल में चराकर लाते और उनकी सुरक्षा का भार अपने कंधों पर उठाते हैं। अपने देश के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों विशेषकर हिमालय क्षेत्र में इसी तरह गड़रिये कुत्तों के भरोसे अपनी भेड़ों को छोड़कर निश्चिन्त रहते हैं। भेड़ों की सुरक्षा का सारा भार उन्हीं पर होता है अलास्का और उत्तरी कनाडा में शीत ऋतु में हवाई-यात्रा के दौरान कुत्तों का सहयोग अपेक्षित माना जाता है।
घरेलू काम-काज में भी कुत्ते पूरी तरह हाथ बँटाते देखे जाते है। वे घरों में चूहे तथा जहरीले जीव-जन्तुओं के पैर नहीं टिकने देते। मालिक की जान-माल की रक्षा में उनकी भूमिका बहुत ही सराहनीय रही है। अग्निकांड होते ही पालतू कुत्ते तुरन्त घूमने या गुर्राने लगते हैं। अंधे लोगों को रास्ता बताने तथा उन्हें गन्तव्य स्थान तक पहुँचा सकने में कुत्ते भी सहयोग देने लगे हैं। जर्मनी में तो अंधे लोगों के व्यवसाय का एकमात्र सहारा वहाँ के च्डोबरमैन पिसर्सज् ही हैं। महत्वपूर्ण वैज्ञानिक आविष्कारों में भी उनकी भूमिका कम नहीं रही है। फ्रैड्र्कि जी. बैन्टिंग और चार्ल्स हरबर्ट बैस्ट नामक विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक, जिनने इन्सुलिन की खोज की है, उनने अपने प्रयोग का आधार कुत्ते को ही चुना, क्योंकि कुत्ते की शारीरिक संरचना मनुष्य से काफी मेल खाती है। रूस के सुविख्यात मनोविज्ञानी इबान पैन लाव ने च्कन्डीशन्ड रिफ्लैक्सज् के सिद्धान्त का प्रतिपादन कुत्ते की टपकती लार को देखकर ही किया है। ये मात्र कुछ उदाहरण हैं, जिनके प्रेरणा-स्रोत के रूप में कुत्तों को स्मरण किया जाता है।
कुत्ते ने यह स्थिति अकस्मात ही नहीं प्राप्त कर ली। मुद्दतों से वह मनुष्य का सच्चा साथी बनकर रहता चला आया है। कुछ वह अपनी आकाँक्षा के आधार पर अर्थात् अपने पालनकर्ता का अनुग्रह पाने के लिए स्वयं ढला है। न्यू फाउंडलैंड के कुत्तों की तैरने की क्षमता बड़ी विचित्र हैं। उन्हें इस स्तर का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे वे पानी में डूबते हुए व्यक्ति को बचा सकें। अमेरिका केनेल क्लब की स्थापना का मूलभूत उद्देश्य कुत्तों की विशिष्टताओं को उभारने और मानवी हित में नियोजित करने, उन्हें अधिक उपयोगी और समुन्नत बनाने का प्रयत्न जहाँ भी किया गया है, वहाँ आशाजनक सफलता मिली है।
पशु-पक्षियों का मानसिक और बौद्धिक विकास भले ही मनुष्यों की तुलना में कम हुआ है, फिर भी उनमें प्रेम, सहानुभूति, कृतज्ञता, स्वामिभक्ति आदि गुण तो पाये ही जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि भगवान ने हर प्राणी को उसकी स्थिति और आवश्यकता के अनुरूप ऐसे गुण व साधन दिये हैं, जिसमें किसी के साथ पक्षपात या अन्याय हुआ न कहा जा सके। मनुष्य को भी उनके साथ उदारतावादी दृष्टिकोण तथा स्नेह-सहयोग की प्रवृत्तियों को अपनाना चाहिए। कृतज्ञता का यह गुण यदि मनुष्य इन नगण्य से प्राणियों से ग्रहण करने लगे और एक-दूसरे के उपकार, उनकी सेवाओं के प्रति थोड़ा-सा भी श्रद्धा और सम्मान का भाव रखें, तो उसके सभी साँसारिक विग्रह देखते-देखते दूर हो जाएँ। जीवन को सुखी–समुन्नत इसी आधार पर बनाया जा सकता है।