विभाजन रेखा (Kahani)

January 1995

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एक देश का बँटवारा हुआ। विभाजन रेखा एक पागल खाने के बीच में से गुजरी। तो अधिकारियों को बड़ी चिंता हुई कि अब क्या किया जाय। दोनों देश के अधिकारियों में से कोई भी पागलों को अपने देश में लेने को तैयार न था। अधिकारी इस बात पर सहमत हुए कि पागलों से ही पूछा जाय कि वे किस देश में रहना चाहते हैं। अधिकारियों ने कहा पागलों से! देश का बँटवारा हो गया है आप उस देश में जाना चाहते हैं या इस देश में। पागलों ने कहा-”हम गरीबों का पागल खाना क्यों बाँटा जा रहा है। हमने क्या गलती की है? हमसे किसी को शिकायत भी नहीं हैं। हम में कोई आपसी मतभेद भी नहीं है। हम सब मिलकर रहते हैं इसमें आपको क्या आपत्ति?” अधिकारियों ने कहा। आपको जाना कहीं नहीं है। रहना यहीं है। आप तो यह बताएँ कि इस देश में रहना चाहते हैं या उस देश में। पागल बोले। यह भी क्या अजीब पागलपन है जब हमें जाना कहीं नहीं है। तो उस देश से या इस देश से क्या मतलब। अधिकारी बड़ी उलझन में फँस गये। उन्होंने सोचा। व्यर्थ की माथा-पच्ची से क्या लाभ? और उन्होंने विभाजन रेखा पर पागलखाने के बीचों बीच दीवार खड़ी करा दी। कभी-कभी पागल उस दीवार पर चढ़ जाते, और एक दूसरे से कहते। देखा समझदारों ने देश का विभाजन किया है। न तुम कहीं गये न हम। व्यर्थ में हमारा तुम्हारा मिलना जुलना, हँसना-बोलना बंद करके इन्हें क्या मिल गया। एक पागल बोला इन्होंने देश का बँटवारा नहीं, दिलों को बाँटने की कोशिश की है। जब-जब मनुष्य पर बेअकली सवार होती है तो वह जाति, सम्प्रदाय, रंग, रूप, भाषा, और देश के आधार पर विभाजित होता चला जाता है और अपनी शाँति और खुशहाली नष्ट करता रहता है।


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