एक वृद्ध साधु, उनका युवा शिष्य व एक कुत्ता तीनों ही निर्जन मार्ग से गुजर रहे थे। मार्ग में देखा कि एक अति सुँदर युवती की नग्न लाश पड़ी हुई है। देखकर लग रहा था कि कुछ देर पहले ही हृदयाघात जैसी घटना से संभवतः वह मृत्यु को प्राप्त हुई थी। साधु ने उस पर एक कपड़ा अपने शरीर का डाल दिया व सोचने लगे कि अच्छा होता इसका दाहसंस्कार करके चलते। समयाभाव के कारण वे आगे बढ़ गए। युवक ने मृत युवती पर पड़ा कपड़ा उठाकर उसे एक बार देखा व आगे चल पड़ा। दृष्टि इसकी कामुकतापरक थी। मन में दुराचार के भाव आने लगे। कुत्ता सोचना लगा, ये दोनों थोड़ा आगे चलें तो बिना किसी रोकटोक के ताजे माँस का स्वाद चखूँ।
एक ही वस्तु व दृष्टिकोण के अनुरूप तीनों के चिंतन अलग-अलग। जिसकी जैसी भावना होती है, वह वैसा ही प्रतिरूप बाहर देखता है।