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Akhand Jyoti
Year 1995
Version 2
अपनों से...
अपनों से अपनी बात- - अब यह पुकार अनसुनी न रहने पाए मूर्च्छना व व्यामोह कहीं श्रेयार्थी बनने से हमें वंचित न कर दे
January 1995
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Page Titles
हम अपने भीतर झाँकना सीखें
सुख का मूल पंचशील
Quotation
विशेष लेख- - इस आपत्ति काल में “अपनों” की ढूँढ़ खोज
सच क्या है? चेतना या पदार्थ?
साध्य, साधन और सिद्धि
विभाजन रेखा (Kahani)
चलें काल से परे, समझें महाकाल को
यंत्रों का विज्ञान रहस्यमय भी, निराला भी
दृष्टिकोण (Kahani)
परोक्षजगत से अनुदान बाँटते हमारे पितर
कठिनाइयों से डरिये नहीं, जूझिए
आत्मीयता सुव्यवस्था एवं विवेकशीलता (Kahani)
अंतर्जगत में प्रवेश करें, सत्य को पायें
तंत्र शास्त्र उपयोगी भी, विज्ञान सम्मत भी
षोडश संस्कारों के मूल में निहित तत्वज्ञान
अपनी समस्याएँ आप सुलझाये
धर्म-श्रद्धा विवेक सम्मत ही वरेण्य
साधना का मूल है-जाग्रत भाव संवेदना
जिंदा अध्यात्मवाद ही रहने वाला है
गायत्री उपासना विज्ञान की दृष्टि में
परंपरा (Kahani)
जड़ चेतन गुण-दोषमय
व्यवहार व वातावरण (Kahani)
सृष्टि की उत्पत्ति विद्युत से हुई या नाद से?
यथार्थ को समझें, शब्दों में न उलझें
सफलता तक पहुँचने में कठिनाइयाँ भी हैं
दान (Kahani)
नवयुग का भवन बना बसंती (Kavita)
“साधनानुभूति”(Kavita)
परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- (गुरुपूर्णिमा पर्व-1986) - देवत्व विकसित करें, कालनेमि न बनें
राष्ट्र के आर्थिक-साँस्कृतिक नवजागरण हेतु शाँतिकुँज की अभिनव शिक्षण सत्र योजना
परम वंदनीय माताजी पर विशेष- - सेवा साधना की यह तड़प हममें भी आ जाय
रीता बनाना तो सीखें (Kahani)
अपनों से अपनी बात- - अब यह पुकार अनसुनी न रहने पाए मूर्च्छना व व्यामोह कहीं श्रेयार्थी बनने से हमें वंचित न कर दे
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
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धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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