परोक्षजगत से अनुदान बाँटते हमारे पितर

January 1995

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साधारण मृतात्माएँ वे होती हैं, जो पूर्वजन्म की वासना के कारण अपने स्वजनों, आत्मीयों, बंधु-बाँधवों से ही संबंध बनाए रखने की इच्छा रखती हैं। उनकी दुनिया सीमित ही होती है। अपनेपन का उनका दायरा घर-परिवार तक परिमित होता है। उनकी कामनाएँ भी सीमित और साधारण होती हैं। परिजन-प्रियजन से मृत्यु के उपराँत कुछ दिनों तक मिलते रहना, उन्हें छिटपुट जानकारियाँ देना, प्रणय-निवेदन करा, साथ-साथ थोड़ी देर रह लेना या मृत्यु के पूर्व की अपनी किसी वासना, आकाँक्षा की इस संपर्क द्वारा पूर्ति करा लेना ही उनका उद्देश्य होता है। पितर आत्माएँ इनसे भिन्न हैं। इनका प्रयोजन आत्मकल्याण के लिए पथ-प्रदर्शन करना, परामर्श देना ही होता है। उनकी निज की कोई वासना नहीं होती, न तो कोई क्षुद्र प्रयोजन ही इसके संपर्क के पीछे होता है। वे तो सन्मार्ग दिखाने, सहायता करने के लिए ही सत्पात्रों से संपर्क साधती रहती है। आये दिन इस प्रकार की कितनी घटनाएँ घटती देखी जाती हैं, जिनमें संकट ग्रस्तों को इनका सहयोग मिला हो।

एक घटना इंग्लैण्ड की है। हडसन नदी के किनारे एक वीरान मकान था। वह बड़ा ही भव्य और सुँदर था। खाली पड़ा रहने का कारण उसका भुतहा होना बताया जाता। उसी रास्ते से इकले दंपत्ति अपने खेत में प्रायः प्रतिदिन उनकी नजर इस इमारत पर पड़ती और इसकी सुँदर बनावट की वे बड़ी प्रशंसा करते। भूत-प्रेतों पर उनका विश्वास था नहीं। वह मकान भी सस्ते में मिल रहा था, अतः उन्होंने खरीद लेने का निश्चय कर एक दिन उसका स्वामित्व ग्रहण कर लिया।

उसी रात्रि श्रीमती इकले को ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई उनके बहुत समीप खड़ा है। इतना समीप कि उसकी साँस उनकी गर्दन को स्पर्श कर रही है। भूतों से संबंधित सभी कल्पनाएँ उनके मस्तिष्क में घूम गईं। भयभीत होकर वह वहाँ से भागने के लिए जैसे ही पीछे मुड़ी, उन्होंने देखा कि एक छाया उनके मार्ग में खड़ी है। इससे एक क्षीण ध्वनि फूटी-”तुम डर कर भागो मत। अभी तक जितने भी व्यक्ति इस घर में आये हैं, भयभीत होते रहे हैं, जबकि हमारा उद्देश्य लोगों की सहायता करना, उनसे सहानुभूति अर्जित करना है।” इन शब्दों से श्रीमती इकले को साहस मिला, वह आश्वस्त हुईं और बोली-”आप लोग कौन तथा कितने हैं? यहाँ क्यों बने हुए हैं तथा हमसे आपका क्या प्रयोजन सध सकता है? छायाकृति ने जवाब दिया-”हम तीन हैं। यह मकान हमारा ही था। अपने पूर्वजों में आखिरी मरने वाले हमीं तीन हैं। हमारी इच्छा थी कि इतनी भव्य इमारत यों ही खाली पड़ी न रहे, मानवी-निवास इसकी शोभा बढ़ाता रहे। हम चाहते थे कि तुम लोगों जैसा कोई इसमें आकर रहे, और आराम की जिंदगी बिताये, पर अब तक जिन-जिन को बुलाया, वे सब डरपोक निकले और हमें देखते ही डर कर भाग खड़े हुए। इसी क्रम में अब तुम्हें बुलाया है। अपने आने को कोई संयोग मत मानना। तुम लोगों को प्रेरणा देकर हमने बुलाया है। यहीं रहो और सुख से जिंदगी गुजारो। हम तुम्हारी हर प्रकार से मदद ही करेंगे।” इतना कहकर पितर अदृश्य हो गया।

इकले परिवार ने पड़ोसियों की आशा के विपरीत उस घर में ही बने रहने का निर्णय लिया। आये दिन घर के किसी-न-किसी सदस्य की भेंट इन अदृश्य आत्माओं से होती रहती एवं अपने सहायक मनोवृत्ति का परिचय देती।

इकले की पुत्री सिंथिया से इन पितरों का विशेष लगाव था। यदि वह पढ़ाई हेतु सबेरे नियत समय पर न उठ पाती, तो उसका बिस्तर जोरों से हिलने लगता। जब तक वह उठ कर बैठ नहीं जाती, बिस्तर हिलता रहता। छुट्टियों में अक्सर सिंथिया सोते समय प्रार्थना कर सोती कि उसे देर तक सोने दिया जाय। प्रत्युत्तर में आत्माएँ उससे किसी प्रकार की कोई छेड़खानी नहीं करतीं और दिन चढ़ने तक सोने देतीं। कुछ साल पश्चात् सिंथिया का विवाह हो गया। विवाहोपराँत श्रीमती इकले ने जैसे ही अपने कमरे में प्रवेश किया, उन्हें एक मंद आवाज सुनाई पड़ी। कोई कह रहा था “हमारी ओर से भी सिंथिया के लिए कुछ भेंट है जो आशीर्वाद स्वरूप उसे दे देना।” इसके उपराँत अचानक उनकी दृष्टि सामने की टेबुल पर पड़ी। वहाँ कोई चीज कागज में लिपटी पड़ी थी। खोल कर देखा, तो उसमें एक सुँदर नक्काशी किया हुआ चाँदी के चम्मचों का जोड़ा था। वह समझ गई कि पितर द्वारा प्रदत्त उपहार यही है। इसके अतिरिक्त कई बार इन पितरों ने इकले दंपत्ति को जानलेवा दुर्घटनाओं से बचाया था।

एक प्रसंग स्काटलैण्ड का है। राजा जेम्स चतुर्थ इंग्लैण्ड पर आये दिन चढ़ाई के बाद उसके सम्मुख एक मृतात्मा प्रकट हुई और चेतावनी के स्वर में कहने लगी कि यदि आगे उसने आक्रमण किया, तो जान से हाथ धोना पड़ेगा। राजा पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। चेतावनी की उपेक्षा करते हुए उसने पुनः धावा बोल दिया। परिणाम वही हुआ जिसकी भविष्यवाणी पितर ने की थी। युद्धस्थल में ही उसकी मृत्यु हो गई कहा जाता है कि वह अदृश्य सहायक अनेक अवसरों पर राजा का मार्गदर्शन करता था और उसके दिशानिर्देशक पर काम करने से जेम्स चतुर्थ को कई अद्भुत सफलताएँ भी मिली थीं, पर अंतिम समय में सम्राट ने उसकी अवहेलना क्यों की? कहा नहीं जा सकता।

ए॰ डब्ल्यू हेमिल्टन ने अपनी पुस्तक “इंटरनल लाइफ” में एक ऐसे ही प्रसंग का उल्लेख किया है। हुआ यों कि कैलीफोर्निया के एक पुलिस अधिकारी ए॰ एम॰ बैरी एक दिन प्रातः अपने घर में समाचार पत्र पढ़ रहे कि सामने एक छाया प्रकट हुई और आदेशात्मक स्वर में बोलने लगी-”तुम तुरंत मैकडोनाल्ड एवेन्यू पहुँचो। वहाँ स्ट्रीमलाइनर से एक ट्रक टकरा कर उलट गया है और उसके ड्राइवर की छाती बुरी तरह कुचल गई है।”

इतना कहकर आकृति गायब हो गई। कुछ क्षण तक बैरी महोदय इसे मन का भ्रम मानते रहे, पर जब स्थान का पता और दुर्घटना के ब्यौरे का स्मरण किया, तो आश्चर्य हुआ। सोचने लगे ऐसी सटीक जानकारी मन का भ्रम नहीं हो सकती। वे तत्काल बताये स्थान के लिए चल पड़े। जब पहुँचे तब तक वहाँ वैसा कुछ भी घटित नहीं हुआ था। दिवास्वप्न की बात उन्हें पुनः स्मरण हो आयी। वे लौटने ही वाले थे कि अकस्मात् वह दुर्घटना सामने घट गई स्ट्रीमलाइनर से सामने आ रहा एक ट्रक टकराया और ड्राइवर की छाती चूर हो गई।

इंग्लैण्ड के मूर्धन्य साहित्यकार चार्ल्स डिकेन्स ने एक ग्रंथ लिखा है-”मिस्ट्री ऑफ एडविनहुड।” उक्त पुस्तक में उन्होंने ऐसी अनेकानेक घटनाओं का वर्णन किया है, जिसमें उच्चात्माओं ने अपनी सहयोगवृत्ति के कारण अनेक लोगों को संकटों में सहायता पहुँचायी।

श्रीमती जान कपूर के “टेल्का” उपन्यास ने अपने जमाने में खूब प्रशंसा पायी। यों तो उनके अन्य उपन्यासों की भी साहित्य जगत में काफी प्रतिष्ठा है, पर जो ख्याति “टेल्का” को मिली, वैसी बात अन्य कृतियों के साथ नहीं देखी गई। इस संदर्भ में लेखिका का कहना है कि वस्तुतः वह रचना स्थूल दृष्टि से उनकी अपनी होते हुए भी अपनी नहीं है। वे कहती हैं कि वह पुस्तक किसी अदृश्य आत्मा द्वारा लिखाई गई है।

अमरीकी लेखिका रुथ माण्टगोमरी भी अपने ग्रंथ “ए वर्ल्डबियोण्ड” के बारे में यही कहती पायी गई हैं कि उक्त पुस्तक उनकी अपनी प्रतिभा का सृजन नहीं है। उसमें किन्हीं फोर्ड नामधारी आत्मा की निरंतर सहायता उन्हें मिलती रही है। इसी कारण लोकोत्तर संबंधी बातों को भी इतनी स्पष्टतापूर्वक समझाने में वे अपने ग्रंथ में सफल हो सकी हैं।

पितर की अयाचित सहायता से संबंधित एक घटना दक्षिणी फ्राँस की है। वहाँ बीजरुस नामक एक 70 वर्षीया चित्रकार रहती थीं। एक बार वह कलात्मक सृजन की नवीन प्रेरणा पाने की अभिलाषा से सन् 1936 में पेरिस पहुंची। वहाँ कई महीने रहने, घूमने, के बाद भी उन्हें कोई प्रेरक वस्तु नहीं मिली। महीनों की व्यर्थता ने मात्र व्यग्रता दी। वहाँ आना एक दम निरर्थक प्रतीत हुआ। रात में इसके कारण ठीक से नींद भी न आती। ऐसी ही उदासी और मानसिक थकान से भरी एक रात में वह करवटें बदल रही थीं। देर रात में अंततः उन्हें नींद आयी। नींद के कुछ घंटे ही बीते थे कि जैसे किसी ने जगा दिया। स्वयं को वे काफी तरोताजा अनुभव कर रही थीं, जैसे नयी ताजगी और नया प्रकाश उनके भीतर भर गया हो, तभी उनकी अंतः प्रेरणा उन्हें स्टूडियो की ओर ले चली। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर यंत्रवत् वह चली जा रही थीं।

स्टूडियो पहुँचने पर अँधेरे में ही कागज पर ब्रुश न जाने कैसे चलने लगा। इससे वह चकित भी थीं और पुलकित भी। हाथ तेजी से चल रहा था। अनुभवी मस्तिष्क ने अँधेरे में ही अनुमान लगा लिया कि निश्चित ही कोई चित्र बन रहा है। देर रात तक यह सब होता रहा। फिर अचानक हाथ रुक गया और अपने कमरे में बिस्तर पर जाने की उन्हें इच्छा होने लगी।

सुबह जगने पर जब रात्रि का घटनाक्रम याद आया, तो वे स्टूडियो की ओर बढ़ गई। वहाँ जाकर जिस चित्र को देखा उससे विस्मय-विमुग्ध हो उठीं। किसी अज्ञात सुँदरी का अनुपम चित्राँकन था वह। उन्हें लगा कि ऐसे ही चित्र किसी प्रख्यात कलाकार का कहीं देखा है।

उनने प्रेतविद्या विशारद एक महिला से संपर्क किया, जहाँ ज्ञात हुआ कि उक्त चित्र गोया की प्रेतात्मा ने आकर बनाया है। इसके सृजन के पीछे आत्मा का क्या प्रयोजन था? इस आशय का प्रश्न करने पर आत्मा ने बताया कि पेरिस में कला संबंधी प्रेरणा नहीं मिल पाने के कारण बीजरुस बहुत परेशान थीं। हमने अपनी विश्व प्रसिद्ध कृति “ग्वालिन” से मिलती जुलती रचना कर इनका मानसिक क्लेश कम करना चाहा। चित्राँकन के पीछे हमारा इतना ही उद्देश्य था और कुछ नहीं। सचमुच वह चित्र विख्यात चित्रकार गोया की रचना “ग्वालिन” से काफी कुछ मेल खाता था।

उच्चस्तरीय आत्माओं की सहायता साकार रूप में, वाणी के द्वारा, परोक्ष प्रेरणा द्वारा सत्पात्रों को निरंतर उपलब्ध होती रहती हैं। कई बार यह सहयोग नूतन विचार और नवीन आविष्कार के रूप में भी मस्तिष्क में कौंध जाता है। विचारक समझता है कि वह उसकी अपनी कल्पना है, पर सच्चाई यह है कि अनेक बार इसमें उच्चात्माओं की प्रेरणा भी सम्मिलित होती हैं। वे अपनी योग्यता, क्षमता और प्रतिभा द्वारा लोगों की मदद करने और उन्हें उच्चस्तरीय बनाने में सदा दत्तचित्त रहती हैं। हमारे लिए इस संदर्भ में इतना ही पर्याप्त होगा कि हम स्वयं को सत्पात्र साबित करें और अपने को सत्कार्यों में नियोजित रखें, उनका अजस्र अवलंबन सतत् हमें मिलता रहेगा, यह सुनिश्चित है।


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