परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- (गुरुपूर्णिमा पर्व-1986) - देवत्व विकसित करें, कालनेमि न बनें

January 1995

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परमपूज्य गुरुदेव का प्रस्तुत प्रवचन सूक्ष्मीकरण साधना के तुरंत बाद जन-साधारण के समक्ष पर्वों पर दिये गये उद्बोधनों में अंतिम व अत्यधिक महत्वपूर्ण है। गुरुपूर्णिमा 1986 के बाद वे कभी शाँतिकुँज के मुख्य मंच पर नहीं आए। आइए, 1995 क वसंत की पूर्वबेला में इस अमृत धारा में अवगाहन करें व कुछ निज की आत्म समीक्षा करें।

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलें-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ अखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचम्। तत्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरुवे नमः॥

देवियो, भाइयो! बहुत पुराने समय की बात है जब रावण सीता को चुरा कर ले गया था और सबके सामने यह समस्या थी कि उसका मुकाबला कैसे किया जाय? रावण से युद्ध कैसे किया जाय? बहुत सारे लोग थे, राजा-महाराजा भी थे, पर किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि रावण से लड़ने के लिए कौन जाये, अपनी जान गँवाये, कौन मुसीबत में फँसे? इसलिए कोई भी तैयार नहीं हुआ। रामचन्द्र जी कहने लगे कि क्या कोई भी लड़ने हमारे साथ नहीं जायगा? तो फिर क्या हुआ? देवताओं ने विचार किया और कहा कि भगवान के काम में हमको सहायता करनी चाहिए और सुग्रीव की सेना में हनुमान की सेना में सम्मिलित होकर रावण से लड़ने के लिए चलना चाहिए। देवताओं ने बंदर का रूप बनाया, रीछ का रूप बनाया। कहाँ रावण और कहाँ बेचारे बंदर, दोनों का कोई मुकाबला नहीं था, फिर भी वे लड़ने के लिए चल पड़े, क्यों? क्योंकि वे देवता थे। देवता न होते, अगर रीछ-बंदर रहे होते तो पेड़ों पर कुदक रहे होते, मचल रहे होते, बच्चे पैदाकर रहे होते, कुछ और काम कर रहे होते, फिर वे सीता जी को छुड़ाने के लिए रामराज्य की स्थापना के लिए, लंका को तहस-नहस करने के लिए भला इस तरह के कार्य कैसे कर सकते थे? लेकिन उन्होंने किया। आप लोगों को मैं रीछ और बंदर के रूप में देवता मानता हूँ। आज फिर उस ऐतिहासिक घटना की पुनरावृत्ति होने जा रही है। आप लोग पहले जनम के देवता हैं। अकेले में जब कभी आपको शाँति का समय मिले-एकाँत का समय मिले तब आप अपने अंदर झाँक कर देखना कि आप रीछ-बंदर हैं या देवता हैं। वास्तव में आप देवता हैं। देवताओं के सिवाय आड़े वक्त में कोई और काम नहीं आ सकता, देवता ही काम आते हैं। आप लोगों में से हर एक को मुझे यही कहना है कि आपको जब कभी अपने आप में मौका मिले तो कहना कि गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुजी ने कहा था कि हमारे भीतर देवता बैठा हुआ है-देवता विराजमान है। देवता जो काम के लिए अपना जीवन लगाया करते हैं, जिसके लिए पुरुषार्थ हमारे सुपुर्द किया गया है।

एक बात तो मुझे आपसे यही कहनी थी। दूसरी बात यह कहनी थी कि जब महाभारत हुआ था, तब अर्जुन यह कर रहा था कि हम तो पाँच पाण्डव हैं और कौरव सौ हैं और उनके पास विशाल सेना भी है, जबकि हमारे पास सेना भी नहीं है-थोड़े से पाँच-पचास आदमी हैं। ऐसे में भला युद्ध कैसे हो सकता है। हम मारे जायेंगे। इसलिए वह बार-बार मना कर रहा था और कह रहा था कि महाराज हमें लड़ाइये मत, इसमें हमको सफलता नहीं मिल सकती। आप हिसाब लगाइये कि इनसे लड़कर हम फतह कैसे पा सकेंगे? जीत कैसे सकेंगे? तब भगवान ने उससे कहा था कि देखो अर्जुन, इन सबको तो मैंने पहले से ही मार कर रखा है और तुम्हारे लिए सिंहासन सजाकर रखा है। तुम पाँचों को सिंहासन पर बैठना पड़ेगा, राज्य करना पड़ेगा और कौरवों को मारना पड़ेगा। ये तो सब मरे-मराये रखे हैं, तुम तो खाली तीर-कमान चलाओगे इसी तरह जो काम मेरा था सो मैंने करके रखा है। इस युग को बदलने के संबद्ध में जो महत्वपूर्ण कार्य करने हैं उनके संबंध में आपको तो श्रेय भर लेना है। जीतना किससे है और हारना किससे है? न किसी से हारना है, न किसी से जीतना है। न किसी को मारना है और न कोई पुरुषार्थ करना है। आपको तो जो विजयी होने का श्रेय मिलना चाहिए और वही श्रेय आपको प्राप्त करना है। अर्जुन ने भी प्राप्त किया था। इससे पहले जब वह ज्यादा बहस करने लगा था कि मेरे बाल-बच्चे हैं, मेरा काम हर्ज हो जायेगा, फलाना हो जायगा, मुझे टाइम नहीं है, तब कृष्ण भगवान झल्ला पड़े और फिर उन्होंने एक हुक्म दिया-”तस्मात् युद्धाय युजस्व” लड़, दुनिया भर के बहाने मत बना-लड़ाई कर। भगवान हमारा क्या होगा? यह पूछने पर कृष्ण ने कहा था कि तेरी जिम्मेदारी हम उठाते हैं, तू तो युद्ध कर।

साथियों आज गुरुपूर्णिमा का दिन है, आप में से हर एक आदमी की देवता की जिम्मेदारी हम उठाते हैं। देवता जब रीछ-बंदर बनकर चले आए थे। तो पीछे उनके घर बीबी-बच्चे रह गये थे, कुटुम्ब हर गया था, उन सबको भगवान ने संभाला था। आपके घर को संभालने की, व्यापार को संभालने की, हारी-बीमारी को संभालने की जिम्मेदारी हमारी है और आपकी यह सब जिम्मेदारियाँ हम उठाते हैं। आप हमारा काम कीजिए हम आपका काम करेंगे। हम आपको यकीन दिलाते हैं, आप हमारा विश्वास कीजिए हम आपका काम जरूर करेंगे। पिता ने बच्चे का हम काम किया है। पिता से बच्चे ने जब जो माँगा है, दिया है। तुम तो छोटे बच्चे हो, इसलिए माँगते हो। आते ही यह माँगते रहते हो। अब आगे से जो भी कहना हो बेटे लिखकर दे जाना। लिखना और कहना बराबर है और फिर हमारा जवाब सुनते जाना और नोट करके ले जाना कि गुरुजी ने यह वायदा किया है कि चौबीस पुरश्चरणों का जो पुण्य पहले कमाया था उसका, और अब हमको तीन साल हो गये हैं, एकाँत मौन रहकर साधना की है, उसकी पुण्य संपदा जो हमारे पास जमा है, उसमें आपका हिस्सा बराबर है। माँ के पेट में जब बच्चा आता है तब कानूनन उसका हक बाप की जायदाद पर हो जाता है। इसी तरह हमारी कमाई पर आपका हक है। प्रार्थना मत कीजिए, निवेदन मत कीजिए, मनुहार मत कीजिए, वरदान मत माँगिये। आप अपना हक माँगिये कि हम आपका काम करते हैं और आपको हक चुकाना पड़ेगा। आप बीमार रहते हैं तो हम बीमारी को अच्छा करेंगे। आप पैसे की तंगी में आ गये हैं तो हम उस तंगी को भी दूर करेंगे। आप पर मुसीबत आ गयी तो हम आपकी ढाल बनकर उस मुसीबत को रोकेंगे।

श्री कृष्ण ने अर्जुन का रथ चलाया था, आपका रथ हम चलायेंगे। काहे का रथ? आपके कारोबार का रथ, आपके व्यापार का रथ, आपके धंधे का रथ, आपके शरीर का रथ, आपकी गृहस्थी का रथ यह सब हम चलायेंगे, इसका हम वायदा करते हैं, लेकिन साथ-साथ आपसे यह निवेदन भी करते हैं कि आप हमारे रास्ते पर आइये साथ-साथ चलिए। हमारे कंधे से कंधा मिलाइये। इसमें आपका कोई नुकसान नहीं होगा। आप यह यकीन रखिये हमने उन विरोधियों को मार कर रखा है और विजय की माला गूँथ कर रखी है। पाँचों पाण्डवों के लिए विजय की मालायें बनी हुई रखी थीं, मात्र उनके गले में पहनाना बाकी था। आपके लिए भी मालायें रखी हैं, मात्र आपको पहनाना है, आपको श्रेय भर लेना है। यह जो नवयुग का क्रम चल रहा है, उसमें जब आप भागीदार होंगे तो श्रेय आपको ही मिलेगा। तो गुरुजी हमारे बीबी-बच्चों का क्या होगा? बेटे, उनकी जिम्मेदारी हमारी है। यदि वे बीमार रहते हैं तो हम उनकी बीमारियाँ दूर कर देंगे। व्यापार में नुकसान होता है तो तेरे उस नुकसान को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी है। तेरे व्यापार में जो घाटा पड़ जाय तो तू हमसे वसूल कर ले जाना, लेकिन जब बच्चा बड़ा हो जाता है तो कुछ बड़ी चीज दी जाती है जो छोटे बच्चे को नहीं दी जा सकती। अब आप जवान हो गये हैं। अब कोई बच्चा नहीं दिखाई पड़ता, आप सब जवान हो गये हैं। अब हम सबको काम-धंधे से लगायेंगे और जो हमारे पास बाकी बचा है वह भी आप सबको बाँट देंगे। नहीं गुरुजी जब आप जायेंगे तब अपनी कमायी भी अपने संग ले जायेंगे? बेटे, हम ऐसा नहीं करेंगे। हम आपको यकीन दिलाते हैं कि हमारी जो भी कमायी है वह सब आपको देकर जायेंगे चाहे वह पुण्य की कमायी हो, चाहे वह साँसारिक कमायी हो, चाहे आध्यात्मिक हो, उस कमायी में तुम्हारा हिस्सा है।

साथियों हमने जीवन भर दिया है। बाप-दादों की दो हजार बीघे जमीन थी, वह हम दे आये और स्त्री के पास जेवर था वह भी हम दान में दे आये। बच्चों की गुल्लक में पैसे थे वह भी हम दे आये। अब आपके पास कुछ और धन है? नहीं बेटे, धन के नाम पर एक कानी कौड़ी का लाखवाँ हिस्सा भी हमारे पास नहीं है। आपको तलाशी लेना हो या मरने के बाद पता लगाना हो कि गुरुजी के पास क्या मिला, तो मालूम पड़ेगा कि शाँतिकुँज में एक ऋषि रहा करता था, और यहाँ की रोटी खाया करता था, और सारे दिन चौबीसों घंटे काम करता था। बेटे, धन के नाम पर हमारे पास कुछ भी नहीं है, लेकिन हाँ एक पूँजी है हमारे पास, यदि वह न होती तो हम इतनी बड़ी बात क्यों कहते? हमारे पास वह पूँजी है तप की, जिसको हम सामान्य क्लास का कहते हैं। जिससे हम आपकी मुसीबतों में, कठिनाइयों में सहायता कर सकते हैं। दूसरा वह जिसमें हम आपको संसार का नेता बनाना चाहते हैं। हमको भगवान ने नेता बनाकर भेजा है। चाणक्य को नेता बनाकर भेजा था। वह नालंदा विश्वविद्यालय के डीन थे। अब्राहम लिंकन को, जॉर्जवाशिंगटन को, गारफील्ड को नेता बनाकर भेजा था। विनोबा को नेता बनाकर भेजा है। हम भी आप में से हर एक आदमी को नेता बनाना चाहते हैं, नेता बनाने की हमारी इच्छा है। आपकी इच्छायें क्या हैं, यह हमको मालूम हो या न हो तो आप लिखकर दे जाना। हमारा एक क्रम है। जब हम बैठते हैं तब देख लेते हैं। रात में हमारा क्रम पूजा-उपासना का रहता है। सबेरे से लेकर दोपहर तक हम अपना लेख लिखते हैं ताकि अखण्ड-ज्योति बीस साल तक बराबर निकलती रहे। बीस साल के लिए लेख और जो पुस्तकें लिखनी हैं, वह सब हम लिखकर रख जायेंगे। जब यह युगसंधि समाप्त होगी और सन् 2000 आयेगा, उस वक्त तक आप यह अनुभव करेंगे कि गुरुजी जो लिखकर रख गये थे, उनकी लेखनी में कोई फर्क नहीं आया, उनके अक्षरों में कोई फर्क नहीं आया। उनकी पुस्तकों में, पत्रिकाओं में कोई फर्क नहीं आया है। मिशन में कोई फर्क नहीं आया है और न ही आयेगा। दोपहर बाद तो अब हमने मिलना भी शुरू कर दिया है। पाँच-पच्चीस आदमी को ऊपर बुला भी लेते हैं। यह हमारा दोपहर से शाम तक का क्रम है। इस तरीके से कभी आयेंगे तो जब किसी को बहुत जरूरी काम हो तो मिल लेना। साँसारिक कठिनाइयाँ हों तो माता जी से कह देना। यह महकमा मैंने माता जी के जिम्मे कर दिया है। संसार की आपको जितनी कठिनाइयाँ हों, सब माता जी से कहियेगा। कोई आध्यात्मिक बात हो या कुछ ऊंचा उठना हो, समाज के लिए कोई बड़ा कदम उठाना हो तो फिर हमारे पास आना। बड़ा कदम नहीं उठाना है, अपनी कोई मुसीबत कहनी है तो माता जी से कह दें और कोई बड़ा कदम उठाना है तो हमारे पास आवें। हम आपके बड़े कदम उठाने में मदद करेंगे। हमने इस दुनिया में बड़े कदम उठाये हैं और बड़े कदम उठाने के लिए आपसे भी कहते हैं। दो बातें हो गयी हैं आप ध्यान रखना।

एक और बात मैं आपसे सबूत में आपको बताता हूँ जो विश्व के एक बहुत बड़े भविष्यवक्ता ने सैकड़ों वर्ष पूर्व कही थी। संसार में ऐसे भविष्य वक्ता तो बहुत से हैं जो हाथ देखकर यह बताते हैं कि तेरा विवाह कब होगा, पैसा कब आयेगा, कब क्या हो जायेगा। इसी तरह जन्मपत्री बनाने वाले तो बहुत से लोग हैं, किंतु दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा हुआ है जिसने सारे संसार की राजनीति के बारे में लिख है जिसमें आठ सौ भविष्यवाणियाँ सही हो चुकी हैं। एक हजार वर्ष पहले हुआ था वह, नाम था नोस्ट्राडेमस। उसने ऐसी भविष्यवाणी की थी जो एकाएक सौ फीसदी सही हो जाती थी। ब्रिटेन का तब नामोनिशान नहीं था जब नोस्ट्राडेमस पैदा हुआ था। स्काटलैण्ड था, आयरलैंड था, इंग्लैण्ड था, पर ब्रिटेन नहीं था, लेकिन उसमें लिखा था कि ब्रिटेन बनेगा, इतने दिनों तक राज्य करेगा और सन् 1942 में इसका सीराजा बिखर जायेगा और तब जितना भी उसका राज्यमंडल है सब खत्म हो जायेगा। वह सब एक-एक अक्षर सही हुआ। यह तो नमूने के लिए बता रहा हूँ। उसकी ऐसी भविष्यवाणियाँ कवितामय पुस्तक में लिपिबद्ध हैं जिसे फ्राँस के राष्ट्रपति मितरा सिरहाने रखकर सोया करते हैं। उस कवितामय पुस्तक पर हजारों आदमियों ने टिप्पणियाँ की हैं। उसी में से एक आप अखण्ड-ज्योति के अगले अंक में पढेंगे जो उसने हिन्दुस्तान के बारे में की है। उसकी भविष्यवाणी है कि हिन्दुस्तान का अध्यात्म और पाश्चात्य का तत्व विज्ञान यह दोनों आपस में मिल जायेंगे पाश्चात्य भौतिक विज्ञान और अध्यात्म मिल जायेंगे। रूस और हिन्दुस्तान मिल जायेंगे। चीन से अमेरिका की लड़ाई हो जायेगी। आदि-आदि बहुत सी भविष्यवाणियाँ हैं। उन बहुत सी भविष्यवाणियों में से आपके काम की एक ही है कि हिन्दुस्तान सारी दुनिया का नेतृत्व करेगा जैसा कि आजकल अमेरिका कर रहा है। चाहे वह बम बनाये, चैलेंजर बनाये, स्टारवार की योजना बनाये, किंतु बाद का नेतृत्व भारत करेगा। हिन्दुस्तान को सारी दुनिया का नेतृत्व करने के लिए बड़े कर्मठ व्यक्ति चाहिए, बड़े शक्तिशाली और क्षमता संपन्न व्यक्ति चाहिए बेटे, तुममें योग्यता नहीं है तो तुम्हें योग्यता हम देंगे। तुम्हारी खेती-बाड़ी को ही नहीं संभालूंगा वरन् योग्यता भी दूँगा ताकि तुम संसार का नेतृत्व कर सको।

नालंदा विश्वविद्यालय की तरीके से हमने यहाँ नेता बनाने का एक विद्यालय बनाया है। नालंदा विश्वविद्यालय में चाणक्य जहाँ पढ़ाता था उसमें दस हजार विद्यार्थी पढ़ते थे एक साथ। हमारी भी इच्छा है कि हम दस हजार विद्यार्थी एक साथ पढ़ायें, पर यहाँ इतने विद्यार्थियों के लिए जगह नहीं है। अभी यहाँ कल तक साढ़े अट्ठाइस सौ आदमी थे, आज चार हजार हो गये हैं। ठूँस-ठूँस कर भी रखना चाहें तो चार हजार से अधिक व्यक्ति नहीं आ सकते, जबकि हमारा मन है कि जिस तरीके से चाणक्य दस हजार आदमियों को पढ़ाता था और पढ़ाकर के हिन्दुस्तान से लेकर सारे विश्वभर में अपने आदमी भेजता था। चन्द्रगुप्त को उसने चक्रवर्ती राजा बनाया था। हमारी भी इच्छा है कि ऐसे-ऐसे नेता बनायें, पर बना नहीं सकते क्योंकि जगह हमारे पास कम है। ऐसे में पढ़ा नहीं सकते। तो फिर क्या योजना है? कुछ नयी स्कीम है जो आज गुरुपूर्णिमा के दिन कहना है और वह यह है कि प्रज्ञा विद्यालय तो चलेगा यहीं, क्योंकि केन्द्र तो यही है, शक्ति का उद्भव यहीं होगा। जेनरेटर तो यहीं लगेगा, लेकिन जगह-जगह प्रज्ञा पाठशालाओं की स्थापना हमें करनी है। इसके लिए आप सब जितने भी आदमी हैं, उनको एक काम सौंपते हैं। एक महीने की प्रज्ञा पाठशालायें तो यहीं होंगी, पर पंद्रह दिन की पाठशाला क्षेत्रों में शक्तिपीठों पर चलेंगी। यहाँ बड़े साइज का प्रमाण पत्र उत्तीर्ण होने पर दिया जाता है, पर वहाँ छोटे साइज का दिया जायगा। परीक्षा ली जायेगी और वहाँ भी हम नेता बनायेंगे। आपको हम हिन्दुस्तान का ही नहीं, सारे विश्व का नेता बनाने वाले हैं। हिन्दुस्तान में हमने दस-दस गाँवों के खण्ड काटे हैं और उन्हें एक-एक व्यक्ति के सुपुर्द किया है और कहा है कि आप अपने यहाँ प्रज्ञा पाठशालायें चलायें। पिछले साल आप लोगों ने हमारे कहने पर किसी ने यज्ञ किये, किसी ने शक्तिपीठ बनाये, किसी ने क्या किया, हजारों काम बताये और लोगों ने किये हैं। इस वर्ष अब आप लोग यह विचार लेकर जायँ कि या तो हम प्रज्ञा पाठशाला चलायेंगे या चलवायेंगे। इस कार्य में कोई रुकावट नहीं आवेगी।

आज गुरुपूर्णिमा के दिन से आप लोग एक काम यह करना कि हमेशा यह अनुभव करना कि आप देवता हैं। रीछ-बंदर का लिबास पहने बैठे हैं। कोई कुर्ता पहने बैठा है, कोई धोती पहने बैठा है, कोई चश्मा लगाये बैठा है, तो कोई कुछ किये बैठा है, पर आप वास्तव में देवता जो किसी खास काम के लिए खास उद्देश्य के लिए किसी खास निमंत्रण पर आप काम करने के लिए आये हैं। यह हुई बात नंबर एक, दो जो आपको मुश्किल जान पड़ती है कि संसार में बुराइयाँ कैसे दूर होंगी? इस संबंध में नोस्ट्राडेमस की राजनीतिक भविष्यवाणी तो हमने बता दी है और अब अपनी स्वयं की भविष्यवाणी बताते हैं कि हमने आपके बैरियों को दुश्मनों को मार दिया है। वे मरे हुए रखे हैं और आपके लिए श्रेय जीवित है-सौभाग्य जीवित है। आपके लिए मुकुट जीवित है, बड़प्पन जीवित है, आप बड़प्पन को उठा लेना। आज आप से तीसरी बात यह कहनी थी कि नालंदा विश्वविद्यालय बनाने का हमने संकल्प लिया था कि एक लाख कार्यकर्ता हम देश को समाज को, विश्व को देंगे। इस काम में आप लोग हमारी मदद कीजिए और पंद्रह-पंद्रह दिन के लिए अपने यहाँ प्रज्ञा पाठशाला चलाने के लिए कोशिश कीजिए। हम वहाँ पढ़ने के लिए तो नहीं जायेंगे, पर अपनी शक्ति देंगे, अपनी बुद्धि देंगे, अपनी भावना देंगे इसलिए जब आदमी जायेगा तो कुछ का कुछ होकर जायेगा।

कितने काम हो गये तीन। एक और काम कहता हूँ, उसे ध्यान से सुनना। हमने जो लड़ाई छेड़ी है वह दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध छेड़ी है और लंका दमन की छेड़ी है। यह काम बहुत बड़ा है और इसमें कुछ मुसीबतें भी आयेंगी, पर उन मुसीबतों को आप तक नहीं पहुँचने देंगे। उन मुसीबतों को अपने ऊपर लेते रहेंगे। राणा साँगा जो था, उसे जहाँ कहीं भी दीखता कि साथियों पर गाज गिरी, उनके ऊपर तलवार गिरी, वह भागकर वहीं आ जाता था और उनके बदले का भाला, तलवार अपने शरीर पर झेल जाता था। उसने ढेरों आदमी इस तरह बचा दिये थे। जब उसके शरीर पर अस्सी घाव हो गये तब वह बेहोश हो गया और अपना काम बंद कर दिया। अस्सी घाव खाने तक तो कोई भी मुसीबत आपके ऊपर नहीं आयेगी। मुसीबत आयेगी तो हमारे ऊपर आयेगी। पहले भी आयी थी। श्री कृष्ण भगवान के पास आयी थी। रामचन्द्र जी पर भी मुसीबत आयी थी। सीताहरण हो गया था। किसी का क्या हो गया। लेकिन हमारे ऊपर एक और तरह की मुसीबत आयेगी जिसकी जानकारी आपको देना चाहता हूँ। वह मुसीबत इस तरह की है जैसी कि कालनेमि ने पैदा की थी। कालनेमि रावण का कुटुँबी था। स्कंद पुराण में कथा आती है कि वह सबकी बुद्धि बिगाड़ देता था। बड़ा भाई कुँभकरण था। उसने योगाभ्यास किया, तप किया। वह चाहता था कि 6 महीने जगा करूं और एक दिन सोया करूं, लेकिन कालनेमि ने उसकी ऐसी बुद्धि बिगाड़ दी-भ्रष्ट कर दी कि कुँभकरण यह माँगने लगा कि 6 महीने सोया करूं और एक दिन जगा करूं। अगर वह 6 महीने जगा होता तो रावण का ढेर हो गया होता। इसी तरह मारीचि ने भी तप किया था। वह स्वर्ग चाहता था, पर कालनेमि ने उसकी ऐसी बुद्धि भ्रष्ट की और कहा कि तू यह मत माँग कि मैं स्वर्ग जाऊँ, वरन् यह माँग कि सोने का हिरन बन जाऊँ। कारण चमड़े वाले को तो मारता है एक आदमी पर सोने वाले को मारेंगे सौ आदमी। बेचारा छिपा-छिपा बैठा रहता था अपने वेश को बनाये। एक बार सोने का वेश बनाया, सो सीता जी के कहने पर रामचन्द्र जी ने उसे मार डाला।

कालनेमि की कथा सुना रहा हूं- स्कंद पुराण की आपको। पूतना के कोई बालक बच्चा नहीं था। कालनेमि ने उससे कहा कि तेरे बच्चा नहीं होता है तो तू जादू का मंत्र लेकर जा और श्रीकृष्ण को दूध पिला दे। तेरा दूध पियेगा तो अपनी मम्मी को भूल जायेगा और तेरे पास रहने लगेगा। कालनेमि के बहकावे में आकर पूतना बेचारी गयी कि मेरे बेटा नहीं होता तो बेटा ले आऊँ और बेटा तो मिला नहीं, उलटे थुक्का फजीहत और हुई। सूर्पनखा से कालनेमि ने कहा-तू ब्याह करेगी? उसने कहा हाँ। वह बोला-राक्षस तो काले-कलूटे होते हैं, माँस खाते हैं, शराब पीते हैं तुझे गाली भी देंगे और मारेंगे भी। हम तुझे ऐसा दूल्हा बताते है कि उससे खूबसूरत तुझे दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। बस तेरे जाने भर की देर है, तू गयी और ब्याह हुआ। दूल्हे का नाम राम है। उनके पिता के तीन ब्याह हुए थे, राम के भी दो ब्याह करा देंगे। सीता जी भी बनी रहेंगी और तू भी बनी रहेगी ओर राजगद्दी पर बैठेगी। तू गोरी होगी और तेरे बच्चे भी गोरे होंगे। सूर्पनखा कालनेमि के बहकाने पर रामचन्द्र जी के पास गयी और अपनी फजीहत कराकर लौटी। उसकी बुद्धि जो बिगाड़ दी थी कालनेमि ने। मंथर की भी बुद्धि बिगाड़ दी थी उसने-उससे कहा कि भरत के साथ तेरा ब्याह करा देंगे। ये जो कैकेयी है ये जायेगी मर और तू रानी बनेगी-राज्य करेगी उसको समझा करके भरत के लिए राज्य माँग ले। मंथरा की ऐसी बुद्धि बिगाड़ी कि उसने कैकेयी को पट्टी पढ़ा कर अपना काम बनाना चाहा। इस तरह दुनिया भर की अंडम-बंडम करके उसने मंथरा की भी मिट्टी पलीद की।

कालनेमि की जो यह घटना है वह हमारे ऊपर भी लागू होती है। हमारे प्राणों से प्यारे बच्चे, हमारे हृदय के टुकड़ों को अलग करके बहका करके हमसे दूर करने की कोई कालनेमि कोशिश कर रहा है। तो गुरुजी आपका नुकसान हो जायगा? नहीं, बेटा, हमारा क्या नुकसान हो जायेगा। अभी ये लड़के गा रहे थे-’कोई साथ न दे तो अकेला चल।’ अकेले चल देंगे हम। अकेले वामन ने सारी जमीन नापी थी। हमें भी दुख होता हैं जब कोई कालनेमि हमारे बच्चों को हमसे दूर कर देता है-बागी कर देता है। अपने ये चौबीस हजार बच्चे हैं उनकी हमें फिकर है कि कोई कालनेमि उनकी बुद्धि को भ्रष्ट न कर दे। कालनेमि से हमारा नुकसान है। उसकी हमें फिकर रहती है और कोई फिकर नहीं। न मिशन की फिकर रहती है और न मरने की-न काम की। मिशन बढ़ रहा है और वह बढ़ेगा ही। काम भी हो रहा है। उसकी फिकर थोड़े ही है। काम तो बढ़ ही रहा है। गंगा में बाढ़ तो आयेगी, रुकेगी नहीं। उसे कोई रोकने वाला नहीं है। मिशन के लिए हम नहीं कहते कि आप कोई सहायता कीजिए। कहते हैं तो इसलिए कि नफा होगा आपको आप नेता हो जायेंगे। सरदार पटेल, नेहरू, जार्ज वाशिंगटन, अब्राहमलिंकन बन जायेंगे। नेता बनना जिनको पसंद होवे आगे आयें, कदम से कदम और कंधे से कंधा मिलाकर चलें। साथ नहीं चलेंगे तो योग्य आदमी कैसे बनेंगे?

आज और कुछ नहीं कहना है, केवल इतना ही कहना है कि जो हमारे बच्चे हैं, जिनको हमने पैदा किया है, पाला है, वे हमारी छाती से अलग न होने पावें। आप हमारी छाती से अलग हो जायेंगे तो हमें बहुत दुख होगा। किसी और बात से हमें दुख नहीं होगा, पर जब वे छोटे-छोटे बच्चे-जिनसे हमने बड़ी-बड़ी उम्मीदें लगाकर रखी हैं, वे अगर बागी होते दीखेंगे-विरोधी होते हुए दीखेंगे तो हमें बेहद दुख होगा। कालनेमि से तो कहना ही क्या है वह तो भगवान ने ही बनाया है। अगर वह न होता तो लंका का सत्यानाश नहीं होता? रावण सीताजी को नहीं चुराता जो कालनेमि की ही माया थी तो किसकी हिम्मत थी जो रावण सहित लंका का सफाया करता। जहाँ-कहीं भी कालनेमि गया वहीं हाहाकार पैदा किया। बस चौथी बात यही कहनी है कि हमारा कोई भी बच्चा हमारी छाती से अलग न होने पाये। कोई चोर, कोई बाबाजी इन्हें अपनी झोली में डालकर ले जायेगा तो हमको दुख होगा कि हमारा प्यारा बच्चा हमसे दूर हो गया। कितना कष्ट होगा आप नहीं समझते।

चार बातें हो गयीं बेटा अच्छा ध्यान रखना। हमने एक बात तो यह की है कि आप रीछ-बानर के रूप में देवता है। दूसरी यह कि तुम्हें श्रेय देने के लिए दुश्मनों को मारकर रख दिया है और तुम्हारे लिए राज सिंहासन बनाकर रख दिया है। तुम उसको ग्रहण करना। तीसरी बात यह कि तुम अपनी व्यक्तिगत कठिनाइयों के बारे में परेशान मत होना। तुम्हारी व्यक्तिगत कठिनाइयाँ कौन हल करेगा? हमारा पुण्य-हमारा तप करेगा। हमारा पुण्य जो पिछले समय से आया है वह हर एक के काम आयेगा और किसी के काम नहीं आयेगा। हमारा काम रुकने वाला नहीं है, वह बढ़ता ही जायेगा। बस आप तो अपने आपको कालनेमि से बचाये रखना। बहक जायेंगे तो हमें दुख होगा कि हमारा कैसा प्यारा बच्चा था। कितने प्यार और मोहब्बत से इसको हमने पाला था, और देखो आज यह कहाँ फिर हरा। चोरों के यहाँ फिर रहा है, भिखारियों के यहाँ फिर रहा है। कहाँ-कहाँ धक्के खा रहा है। ऐसा आप लोग मत करना। यह चार बातें कहनी थी आपसे बसंत पंचमी के बाद अब व्याख्यान दिया है। आज इतना ही बहुत है। इन्हीं बातों पर बार-बार विचार करना। आपके काम की देखभाल हम करेंगे। आप देवता हैं-ध्यान रखना आपको श्रेय लेना है-सिंहासन लेना है। आपको नेता बनना है और किसी झोली वाले बाबाजी से होशियार रहना है कि वह झोली में डालकर भाग खड़ा नहीं हो। बस आपसे विदा लेते हैं। ॐ शाँति


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