नवयुग का भवन बना बसंती (Kavita)

January 1995

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पूज्य गुरुसत्ता! बसंती रंग, तुम्हारा, रंग लाया। मिशन के सब परिजनों ने हँस, बसंती पट रँगाया॥

पुष्पवासंती-चमन, यह शांतिकुँजी-फल रहा है। सिलसिला-युग सैनिकों के, प्रस्फुटन का चल रहा है॥ जो खिला इस जगह उसने, मनुजता का मन खिलाया॥

है विभा मंडल बसंती-व्यक्ति ये बहुमूल्य हीरे। कार्य निष्ठा और लगन के, हृदय में जिनके जखीरे॥ माल जिनकी पहनने का, देव! तुमने मन बनाया॥

जाएँगे हर ग्राम ये, हर नगर और हर देश में भी। भरेंगे हर हृदय में, अवधारणा अपने मिशन की॥ वह बनेगा देवता-जो व्यक्ति इनके पास आया॥

प्राण में इनके भरी ऊर्जा, तुम्हारे ताप की है। पास इनके शुचि अमल संपत्ति, अपने जाप की है॥ यों मिले जप और तप तो, ज्ञान का सूरज उगाया॥

सद्गुणों, सद्भावनाओं की, चली बेरोक आँधी। जन्म फिर लेंगे हमीं में-बुद्ध, नानक और गाँधी॥ किया संस्कारित पवन को, यज्ञ हर घर में रचाया॥

देव पूजन नित्य करते, बोलते वैदिक ऋचाएँ। है प्रकाश मशाल का-तव जन्मदिन मिलकर मनाएँ॥ मनुजता का प्यार का सबने, विहँस कर गीत गाया॥

यों बसंती रंग से पोता भवन, इस नये युग का। हाँ, करेंगे हमीं कायाकल्प, दुख से, जीर्ण जग का॥ इसलिए देवात्माओं को, जनम लेने बुलाया॥

मायावर्मा


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