कुण्डलिनी के पाँच मुख पाँच शक्ति प्रवाह

January 1987

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बोलचाल की भाषा में सभी जीवित प्राणियों को जीवधारी कहते हैं। वे प्राणवान है, इसलिए प्राणी भी कहते हैं। पर बात इतनी साधारण नहीं है। पदार्थ विज्ञानी तो जीव की कोई सत्ता ही नहीं मानते। पंचतत्वों एवं रासायनिक द्रव्यों का मिलन मात्र ही जीवन है ऐसा उनका मत है। वे कहते हैं कि इस संयोग का वियोग हो जाना जीव की सत्ता का आत्यंतिक समापन है। उनकी दृष्टि में आत्मा नाम की कोई चीज नहीं। मनुष्य एक चलता, फिरता बोलता पौधा भर है।

ये परिभाषाएँ तत्वज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं वे आत्म का अस्तित्व परमात्मा के छोटे घटक रूप में मानते हैं प्राण इससे भिन्न है। प्राण जीवट को कहा गया है। जिसमें आन्तरिक साहस और बहिरंग पराक्रम है वही प्राणवान है। प्राणवान होने में ही जीवधारी का गौरव और और जीवन का महत्व है। यहाँ चर्चा जिस प्राण की की गई है, जीवन का महत्व है। यहाँ चर्चा जिस प्राण की की गई, उसे सामान्य भाषा में जीवट कहते हैं। जीवट से तात्पर्य है प्रतिभा प्रतिभा कहते हैं समझदारी ईमानदारी जिम्मेदारी और बहादुरी के समन्वय को। अध्यात्म की भाषा में इसी विभूति विशेषण को प्राणाग्नि कहा गया है। हिम्मत वाले और बलवान तो दुष्ट डाकू और कुचक्री भी होते हैं। पर उन्हें शौर्यवान पुरुषार्थी कहलाने का श्रेय नहीं मिलता। अधिक से अधिक उन्हें दैत्य दुष्ट कहा जा सकता है।

प्राणवान होना मनुष्य जीवन की महानता उपलब्धि है। जिनके पास यह वर्चस्व होता है। वे ही अनुकरणीय अभिनन्दनीय कार्य कर पाते हैं। महापुरुष कहलाते हैं और अपने सुसंस्कृत व्यक्तित्व के कारण स्वयं उठते और दूसरों को उठाते हैं। स्वयं पार होते और असंख्यों को अपनी नाव पर बिठाकर पार उतारते हैं।

प्राण एक चेतना शक्ति है। जिसे जीवन्त विद्युत कहा जा सकता है। बिजली की शक्ति से बड़े बड़े कल कारखाने चलते हैं। नगर रोशनी से जगमगाते और उस ऊर्जा के सहारे अनेकों सुख साधन जुटते हैं। प्राण विद्युत भी साधारण से शरीरों के सहारे ऐसे असम्भव जैसे कार्य सम्पन्न कर दिखाती है जिनका स्वरूप देखते हुए आश्चर्य चकित रह जाना पड़े।

संसार में जीवित प्राणियों की संख्या गिन पानी कठिन है। जल थल में रहने वाले और आकाश में परिभ्रमण करते रहने वाले जन्तुओं की कोई गणना नहीं कर सकता। उपजाऊ भूमि में सूक्ष्म जीवी होते हैं। पानी की एक बूँद में सहस्रों अदृश्य जन्तु देखें जा सकते हैं। इनकी गणना कौन करें? उनकी संख्या कल्पनातीत है। यों कहने को तो इन सभी को प्राणी कहा जा सकता है। पर इन पंक्तियों में जिस प्राण की चर्चा की जा रही है, उसका तात्पर्य ऐसी प्रतिभा एवं क्षमता से हैं जो साधारण मनुष्यों में नहीं पाई जाती। ऊँची छलाँग लगाने की हिम्मत उन्हीं में होती है जिनकी नाड़ियों में माँस पेशियों में कल्पना और विचारणा में उच्चस्तरीय विद्युतशक्ति पाई जाती है। जो असाधारण सोचते और अपने एकाकी पराक्रम के बलबूते अनोखी योजना बनाते और असाधारण सफलता पाते हैं ऐसे लोगों ही अपने को कृतकृत्य हुआ मानते हैं देखने और सुनने वाले उन्हें धन्य कहते हैं।

जीव धारियों के समुदाय में प्राणवानों की ही विशिष्टता और वरिष्ठता है। वे जहाँ तहाँ कदाचित कभी कभी ही दीख पड़ते हैं, पर जो होते हैं वे ज्योतिर्मान होकर असंख्यों की आँखों में चकाचौंध उत्पन्न करते हैं। अनेकों को श्रद्धालु एवं अनुयायी बनाते हैं। जिस राह पर वे चलते हैं उस पर पीछे चलने वालों की कमी नहीं रहती। सड़क न सही वे एक अच्छी खासी पगडंडी तो बनाकर छोड़ ही जाते हैं जिस पर चलकर भूले भटके भी गन्तव्य लक्ष्य तक पहुँच सकें। ऐसे लोग आत्म गौरव अनुभव करते हैं और दूसरों की दृष्टि में दिव्य विभूतियों से भरे पूरे माने जाते हैं। इतिहास में ऐसे ही जीवट सम्पन्नों द्वारा किये गये महान कार्यों का उल्लेख है। उन्हीं को महामानव के नाम से मूर्धन्यों की गणना में गिना गया है।

जीवन के साथ जुड़े हुए शरीर, मस्तिष्क परिवार वैभव को एक तराजू पर रखा जाय और प्राण प्रतिभा को दूसरे पलड़े पर तो भारी भरकम प्रतिभा ही बैठेगी। उन्हें ही नररत्न कहते हैं। आदर्शों का अवलम्बन लेने और उसके लिए बढ़ चढ़कर त्याग बलिदान कर गुजरने पर तो उन्हें नर नारायण कहा जाता है। उनकी कृतियाँ अनेकों का मार्ग दर्शन करती है। राजा हरिश्चन्द्र का नाटक देखने पर बालक गान्धी ने निश्चय किया कि वे भी हरिश्चन्द्र जैसे महान बनकर रहेंगे। वह संकल्प अंततः पूरा ही हुआ सत्य अहिंसा की अवधारण करने वाले गान्धी सचमुच ही दूसरे हरिश्चन्द्र बन गये।

ऐसी जीवट प्राप्त करने के लिए स्वाध्याय सत्संग मनन चिन्तन के आत्म निर्माण करने वाले तरीके भी हो सकते हैं मनःस्थिति भी परिस्थिति बनाती हैं पर आध्यात्मिक उपचारों में ऐसी प्रतिभा प्राप्त करने के लिए प्राणायाम प्राणाकर्षण जैसे उपचार भी है। उन उपचारों में सबसे ऊँची प्रक्रिया कुण्डलिनी जागरण की है। इस सूर्योपासना के माध्यम से भी संपन्न किया जा सकता है। सूर्य को भौतिक ऊर्जा का स्रोत मानना अपर्याप्त होगा आत्मिकी के सिद्धान्त उसे परब्रह्म का दृश्यमान स्वरूप भी मानते हैं और उसे गर्मी रोशनी का ग्रह गोलक भर न मानकर अन्तरात्मा में अंतःकरण में और उसके प्रत्येक स्फुल्लिंग में जीवट का अभिनव संचारकर्ता भी मानते हैं। वस्तुतः वह है भी ऐसा ही सविता की तेजस्विता यदि साधना तपश्चर्या सघन श्रद्धा एवं प्रबल इच्छा शक्ति के सहारे धारण की जाय तो साधक को निराश न होना पड़ेगा।

प्राण की चैतन्य विद्युत इस निखिल ब्रह्माण्ड में सर्वत्र भरी पड़ी है। उसमें से मनुष्य अपने संकल्प बल पर चाहे जितनी मात्रा में उसे ग्रहण कर सकता है। पर उसको धारण करना उतना ही सम्भव है जितनी अपनी पात्रता हो जलाशय में अथाह पानी भरा रहता है। उसमें से कितना ही लेने पर कोई रोक टोक भी नहीं है। पर लिया उतना ही जा सकता है जितना बड़ा कि अपने पास पात्र हो इसके अभाव में अधिक ले चलने की आकाँक्षा अधूरी ही रह जाती है।

सूर्य ग्रह नक्षत्रों के बीच सबसे अधिक प्रकाशवान है। यह प्रकाश रोशनी के बल्ब जैसा नहीं है। वरन् अपनी ऊर्जा के प्रकाश से इतना चमकता है। सौर मण्डल के अन्य सदस्य भी उसी के प्रकाश में प्रकाशवान होकर दृष्टिगोचर होते हैं। वृक्षों वनस्पतियों में जीवन वहीं बाँटता है। उसी के कारण कलियाँ फूल बनकर विकसित होती हैं प्रश्नोपनिषद् में नचिकेता को विस्तार से इसी प्राण की महिमा बताई और उससे संबंधित पाँच प्रकार की प्राणाग्नि विद्या सिखाई है।

इसी प्रकार गायत्री महाशक्ति का प्राण पक्ष शक्ति पक्ष कुण्डलिनी है। दोनों मूलतः एक ही हैं विद्युत तत्व एक है। ऋण और धन उसके दो विभाग मात्र हैं। जीव सत्ता एक है शरीर और प्राण उसके दो विभाग मात्र हैं। जीव सत्ता एक है, शरीर और प्राण उसके दो घटक भर हैं गायत्री और कुण्डलिनी को पृथक नहीं वरन् दो धाराओं का परस्पर पूरक स्वरूप समझा जाना चाहिए। कहा भी है -

कुण्डलिन्याँ समुद्भूता गायत्री प्राणधारिणी। प्राणविद्या महाविद्या यस्ताँ वेति स वेदवित्। -योगचूड़ामणि उपनिषद्

कुण्डलिनी ही प्राणशक्तिमयी गायत्री का उत्पत्ति स्थान है। यह गायत्री ही प्राणविद्या रूपा महाविद्या है। जो व्यक्ति इस विद्या को जानने हैं, वे ही वेदवित् हैं।

जीव सत्ता के साथ पाँच सशक्त देवता उसके लक्ष्य प्रयोजनों को पूर्ण करने के लिए मिले हुए हैं। व निद्राग्रस्त हो जाने के कारण मृततुल्य पड़े रहते हैं और किसी काम नहीं आते। फलतः जीव दीन दुर्बल बना रहता है। यदि इन सशक्त सहायकों को जगाया जा सके उसकी सामर्थ्य का उपयोग किया जा सके तो मनुष्य सामान्य न रह कर असामान्य बनेगा। दुर्दशाग्रस्त स्थिति से उबरने और अपने महान गौरव के अनुरूप जीवन यापन का अवसर मिलेगा। शरीरगत पाँच तत्वों का उल्लेख कपिलतंत्र में पाँच देवताओं के रूप में इस प्रकार किया है -

“आकाशस्याधिपो विष्णुरग्नेश्चैव महैश्वरी। वायोः सूर्यः क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधितः॥”

अर्थात् आकाश के अधिपति हैं विष्णु। अग्नि की अधिपति महेश्वरी शक्ति हैं। वायु अधिपति सूर्य हैं पृथ्वी के स्वामी शिव हैं और जल के अधिपति गणपति गणेश जी हैं। इस प्रकार पंच देश शरीर के पंचतत्वों की ही अधिपति सत्ताएँ हैं।

पाँच प्राणों को पाँच देव बताया गया है। तंत्रार्णव में कहा गया है -

पंच देवमयं जीव पंच प्राणमयं शिव। कुण्डली शक्ति संयुक्तं शुभ्र विद्युल्लतोपम्॥

अर्थात् यह जीव पाँच देव सहित है। प्राणवान होने पर यह शिव है। यह परिकर कुंडलिनी शक्तियुक्त है। इनका आकार चमकती हुई बिजली के समान है।

मनुष्य के सूक्ष्म शरीर में यह पाँच प्राण (1) प्राण (2) उदान (3) अपान (4) व्यान (5) समान के रूप में विकसित हुए हैं। इनके पाँच सहायक भी हैं जिन्हें (1) देवदत्त (2) वृकल (3) कूर्म (4) नाग (5) धनंजय के नाम से वर्णित किया गया है। यह चेतना की पाँच परतें हैं। इनके सम्मिश्रण से व्यक्तित्व बनता है। उनका स्तर एवं अनुपात जितना ऊँचा नीचा होता है, उसी आधार पर व्यक्ति की वरिष्ठता एवं विशिष्टता एवं विशिष्टता प्रदीप्त होती है।

आधुनिकतम गेस्टॉल्ट साइकोलॉजी के अनुसार भी व्यक्तित्व को पाँच भागों में विभाजित किया गया है। मन चिकित्सक डॉ. फ्रेडरिक ए. पर्ल्स ने यह प्रतिपादन व्यक्त करते हुए बताया कि पाँच परतें जो व्यक्तित्व का निर्माण करते हुए बताया कि पाँच परतें जो व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं यदि सही विश्लेषण विधि द्वारा खोली टटोली जा सकें तो स्वभाव की अनगढ़ता को मिटाकर व्यक्तित्व को परिष्कृत कर सकना संभव है। ये पाँच परतें इस प्रकार हैं (1) क्लीश लेयर (2) सिंथेटिक लेयर (3) इम्पल्स लेयर (4) इम्पलोसिव अथवा डेथ लेयर एवं 5 इम्पल्स लेयर (4) इम्पलोसिव अथवा डेथ लेयर एवं 5) एक्सप्लोजिव अथवा लाइफ लेयर। निरर्थक अनगढ़ जीवन से आरम्भ होने वाली कलीश लेयर अपने विकास की चरमावस्था में एक विस्फोटित ऊर्जा का रूप ले लेती हैं जिसमें व्यक्ति स्वतंत्र विश्वसनीय सक्रिय और यथार्थ जीवन जीने लगता है। गेस्टॉल्ट ने ऊपर जिन ऊर्जा परतों की ओर संकेत किया है वे व्यक्ति के सूक्ष्म शरीर में अवस्थित पंचकोश ही है।

जिस प्रकार ब्रह्माण्ड का दृश्यमान पदार्थ पंचतत्वों से बना है उसी प्रकार संव्याप्त चेतना प्राण रूप में भरी पड़ी है। यह ब्रह्माण्ड पंच चेतन सत्ताओं से भरा पड़ा है मानवी पिण्ड भी उसी का छोटा संस्करण है। जो ब्रह्माण्ड में है वही पिण्ड भी उसी का छोटा संस्करण है जो ब्रह्माण्ड में है वही पिण्ड में है। ब्रह्माण्डव्यापी पंच प्राणों का समावेश इस काया में भी है। वह सुषुप्त एवं बीज रूप में विद्यमान है। बीज में समूचा वृक्ष विद्यमान रहता है। पर उसकी स्थिति को स्पष्ट देख सकना संभव नहीं। पुरुष और स्त्रियों के शुक्राणु डिम्बाणु मिल कर बालक की संरचना करते हैं किन्तु उन कणों को उलट पुलट कर सूक्ष्मदर्शी यंत्रों से भी देखा जाय तो भी उनमें शिशु शरीर का कोई ढाँचा दृष्टिगोचर नहीं होगा। ठीक इसी प्रकार सावित्री शक्ति की पंचधा प्रवृत्तियों के संबंध में यह नहीं कहा जा सकता कि प्रत्यक्ष उनका स्वरूप और परिणाम क्या है? तो भी इस दिव्य शक्ति के शरीर में अवतरित होने पर जो परिणाम सामने आते हैं उनके आधार पर उनकी शक्ति और सत्ता को समझा जा सकता है।

पाँच वैभवों की गणना होता है। (1) बल (2) धन (3) ज्ञान (4) विज्ञान (5) कौशल। इस प्रकार अन्यान्य भी कई प्रकार के पंच प्रकरण हैं। महाभारत के प्रमुख योद्धा पाँच पाण्डव थे। राम दल में भी हनुमान अंगद नल नील जामवन्त यह पाँच ही प्रमुख सेनापति थे। पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। पाँच ही कर्मेन्द्रियाँ पंचरत्न पंचामृत पंचगव्य पंचाँग जैसे कितने ही पंचक गिनाये जा सकते हैं। वेदान्त की पंचीकरण साधना प्रसिद्ध है।

कुण्डलिनी जागरण की साधना में प्रयुक्त पँचकोशों में अन्नमय प्राणमय की साधना में प्रयुक्त पँचकोशों में अन्नमय प्राणमय मनोमय विज्ञानमय एवं आनन्दमय कोशों की गणना की जाती है।

महायोग विज्ञान में कुण्डलिनी जागरण का परिचय पंच कोशों की जागृति के रूप में मिलता है।

कुण्डलिनी शक्तिराविर्भवति साधके तदा स पंच कोशे मत्तेजोऽनुभवति ध्रुवम॥

अर्थात् जब कुण्डलिनी जागृत होती है तो साधक के पांचों कोश ज्योतिर्मय हो उठते हैं।

पाँच तत्वों से शरीर बना है। उसके सत्व गुण चेतना के पाँच उभारों के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। (1) मन माइण्ड (2) बुद्धि इन्टलैक्ट (3) इच्छा विल?) चित माइन्ड स्टफ (5) अहंकार ईगी।

पाँच तत्वों के राजस तत्व से पाँच प्राण उत्पन्न होते हैं इन्हें वायटल फोर्स भी कहा जा सकता है। पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ उन्हीं के आधार पर अपने विषयों का उत्तरदायित्व निबाहती है। तत्वों के तमस् भाग से काय कलेवर का निर्माण हुआ है। (1) रस (2) रक्त (3) माँस (4) अस्थि (5) मज्जा के रूप में उन्हें क्रिया निरत काया में देखा जा सकता है। मस्तिष्क हृदय आमाशय फुफ्फुस और गुर्दे यह पाँचों विशिष्ट अवयव तथा पाँच कर्मेन्द्रियों को उसी क्षेत्र का उत्पादन कह सकते हैं।

जब हम विज्ञान की परिभाषा में इन पंचप्राणों पंचकोशों की विवेचना करते हैं तो पाते हैं कि इनके प्रतिनिधिगण व्यष्टि एवं समष्टि सभी में संव्याप्त है।

भौतिक विज्ञान भी पाँच शक्तियों को प्रमुख मानता है। (1) महासत्व (2) अल्पसत्व (3) गुरुत्वाकर्षण (4) विद्युत्चुम्बकीय बल (5) एण्टीमैटर। ब्रह्माण्डीय कण भी पाँच ही प्रख्यात है। न्यूटीनों क्वार्कस पल्सार्ज फोटाँन्स एवं लेप्टान्स। क्वान्टस क्वार्कस पल्सार्ज फोटाँन्स एवं लेप्टान्स। क्वान्टम बेव थ्योरी के अनुसार सारी शक्ति का कार्य व्यापार तरंगों से ही चल रहा है। ब्रह्माण्डीय किरणें पाँच ही हैं। अल्ट्रावायलेट इन्फ्रारेड कास्मिक रेडियो वेव्स या माइक्रोवेव्स इन्टरस्टेलर वेव्स। ध्वनि तरंगें भी पांच हैं सोनिक अल्ट्रासोनिक इन्फ्रासोनिक हाइपरसोनिक सुपरसोनिक पृथ्वी पर चढ़े पाँच ही कवच लीथोस्फियर हाइट्रोस्फियर बायोस्फियर एवं एटमोस्फियर इनके ऊपर डायनोस्फियर है जो 1600 किलोमीटर ऊँचाई तक चला गया है। इसकी भी पांच परतें हैं एण्डोस्फियर ट्रोपोस्फीयर स्ट्रेटोस्फीयर ओजोनोस्फियर एवं एक्जोस्फियर।

पाँच शक्तियाँ ऐसी हैं जो जैव भौतिकी के क्षेत्र में क्रियाशील हैं। ये बायोइलेक्ट्रिसिटी जैवविद्युत बायोमैग्नेटिज्म जैवचुंबकत्व रेडिएशन विकिरण क्रिएशन रिप्रोडक्शन (प्रजनन) इम्यूनिटी प्रतिरोधी सामर्थ्य जैवविद्युत के भी वैज्ञानिक दृष्टि से पाँच भेद हैं प्लेक्स इलेक्ट्रिसिटी न्यूरोनल इलेक्ट्रिसिटी सेल्युलर इलेक्ट्रिसिटी कनडक्शन इलेक्ट्रिसिटी एवं फेशियोंआँक्युलर इलेक्ट्रिसिटी प्रकारान्तर से इन्हीं को अध्यात्म भाषा में वर्चस ओजस तेजस ब्रह्मवर्चस एवं मनस के अंतर्गत समेट लिया गया है।

मस्तिष्क स्नायु संस्थान का संचालन करने वाले पाँच प्रमुख घटक कॉर्टिकल न्यूकलाई थेलेमस हाइपोथेलेमस में डुयुला एवं स्पाइनल कार्ड मस्तिष्क को सक्रिय रखने वाले रसस्राव भी प्रमुखतः पांच ही हैं जिन् न्येहयूमरल सिक्रीशन कहते हैं डोपामिन एण्डार्फिन सिरोटोनिन एन्केफेलीन एवं गाबा। इनमें न्यूनाधिक अस्तव्यव्थ्ता से मानसिक क्रिया−कलाप गड़बड़ा जाते हैं पाँच हारमोन ग्रन्थियाँ जिनकी संगति बहुधा पँचकोशों से बिठाई जाती है। इस प्रकार है पीनियल पिट्यूटरी थाइराइड एडीनल एवं गोनेडस। षटचक्रों की चर्चा आने पर छठी थाइमस ग्रन्थि का प्रसंग और जोड़ दिया जाता है।

इस प्रकार ब्रह्माण्डव्यापी और शरीरगत कई विभाजन है जिनका योगदान सूक्ष्म क्रिया–कलापों में होता है। इन सभी पाँच प्रमुख शक्त समूहों को सावित्री के पाँच मुखी का कुण्डलिनी शक्ति के पंचकोशों का ही अंग प्रत्यंग माना जा सकता है। इनमें से कुछ को भी नियंत्रित कर सुनियोजित किया जा सके तो उसकी उपलब्धियाँ ऐसी हो सकती है मानों पाँच लोकों से पाँच देवताओं द्वारा साधक पर दिव्यशक्ति भरे पुष्पों की वर्षा की जा रही हो कुण्डलिनी जागरण की फलश्रुतियाँ ऐसी ही विशिष्टताओं से भरी पूरी है।


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