ग्रहण सरल है, प्रेषण कठिन

January 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

इच्छा शक्ति संकल्पबल एकाग्रता अनुशासन यह सामान्य जीवन की योग साधनाएँ हैं। जिन्हें किसी भी माध्यम से विकसित किया जा सकता है अपने आप को बिखराव से बचाकर एकाग्र तन्मय कर लेना मन क्षेत्र की साधना है। इन्हें दैनिक सामान्य क्रिया कलापों में समन्वित रखकर भी अपने मन संस्थान के बिखराव को बचाया जा सकता है। इतना भर कर लेने से अध्यात्म धाराओं के प्रभाव का ग्रहण करने की पात्रता विकसित की जा सकती है। पर इतने भर से काम नहीं चलता। प्रेरक शक्ति को किसी अन्य पर प्रयोग करने के लिए विशेष स्तर की सामर्थ्य अर्जित करनी पड़ती है। उसके लिए विशिष्ट साधनाएँ करना आवश्यक है।

रेडियो की आवाज पकड़ने के लिए साधारण टान्जीस्टर काम दे जाते हैं। पर प्रसारण करने के यंत्र जहाँ भी लगे होते हैं। वे बड़ी ताकत के भी होते हैं। और बड़ी कीमत के भी आंखों के सामने के दृश्य सहज ही दीख जाते है। पर दूर देशों तक किसी दृश्य को भेजना या देखना हो तो टेलीविजन प्रेरणा ओर ग्रहण के समग्र तंत्र पास में होना चाहिए कान समीपवर्ती वार्तालाप को सहज ही सुन लेते हैं। पर यदि बहुत दूरी तक आवाज पहुँचानी हो तो उसके लिए टेलीफोन तार ओर उसके लिए अभीष्ट ताकत वाली बैटरी चाहिए। सामान्य गति से तो अपने पैर भी चल लेते है। पर तेजगति से दौड़ना हो तो मोटर या मोटर साइकिल चाहिए और उसमें पर्याप्त तेल पेट्रोल भरा रहना चाहिए। यही बात अध्यात्म प्रसंगों के संबंध में भी है। ग्रहण सरल है। पर प्रेषण दुर्लभ। लाभ उठाना और खर्च करना सरल है। पर कमाना और सम्भालना कठिन। किसी के द्वारा प्रेषित शक्ति को ग्रहण कर लेने में उतनी कठिनाई नहीं है। उसमें मनोयोग से एकाग्रता से ही साधना से काम चल जाता है। यह प्रयोग साधनाओं द्वारा तो हो तो ही सकता है। पर यह भी सम्भव है कि तन्मयता के आधार पर किए जाने वाले दैनिक कार्यों में तनिक अधिक अभिरुचि और जिम्मेदारी का समावेश किया जाय तो मन का बिखराव सिमट कर एक केन्द्र पर केन्द्रीभूत होने लगेगा। सरकस वाले कला का अभिनेता हिसाब रखने वाले मुनीम खिलाड़ी बाजीगर मदारी आदि का सारा क्रिया कलाप एकाग्रता के आधार पर ही चलता है। यदि वे ध्यान बटा दे। करे कुछ साँचे कुछ देखे कही सुने कही तो उनका मानसिक बिखराव सारा खेल बिगाड़ देता है। किसी के द्वारा प्रेषित भाव संवेदन या आध्यात्मिक क्षमता यदि एकाग्रतापूर्वक ग्रहण की जाय तो उसका समुचित लाभ मिलेगा।

हलके लाभ उठाने के लिए संकल्पशक्ति इच्छाशक्ति और एकाग्रता के समन्वय के काम चल जाता है। कहीं कोई घटना हुई और उसका संदेश किसी तक पहुँचना या पहुंचाना जाना है। तो इसमें इतनी ही बैटरी खर्च होगी जितनी कि ग्रहीता के उसे पकड़ने के लिए चाहिए।

समुद्र से भाप बनकर उठने और बादल बनने में अनेकों संकट खड़े होते है। किन्तु जब वे बरसते है। तो कुछ ही समय में जल जंगल एक कर देते है। कुण्डलिनी शक्ति का जागरण कठिन है। उसके लिए संयम बरतने की ओर साधना करने की आवश्यकता पड़ती है। किन्तु यदि किसी ने वह शक्ति अर्जित एकत्रित कर ली हो तो उसके कुछ अंश का लाभ किसी को देने में अड़चन नहीं है। पैसा कमाने में बुद्धि भी लड़ानी पड़ती है। और मेहनत भी करनी होती है। पर यदि उस पैसे को उधार या दान देना हो तो बड़ी से बड़ी संपत्ति कुछ ही देर में खप जायगी। साधना उन्हें करनी पड़ती है। जो किसी को कुछ देना चाहते है। अध्यात्म क्षेत्र में यह सिद्धांत आदिकाल से चला आया है।

प्रत्यक्ष शरीर का कोई भी अं्रग काटकर किसी दूसरे के शरीर में प्रयुक्त होने के लिए दिया जा सकता है। हृदयदान गुर्दादान नेत्रदान रक्तदान आदि की शल्य क्रियाएँ प्रायः होती रहती हैं।

प्राण उपार्जन यों निजी सम्पदा है। पर कोई उदार चेता अपनी कमाई का कुछ अंश किसी दूसरे को भी हस्तांतरित कर सकते हैं। इसी को अध्यात्म भाषा में शक्तिपात कहा गया है। लोक व्यवहार में जिस प्रकार धनी लोग जरूरतमंदों को दान देते रहते है। उसी प्रकार दुर्बल प्राण व्यक्तियों को सशक्त प्राण वाले अपनी अध्यात्म सम्पदा का उपयुक्त भाग दान करते रहते है। इस उपलब्धि के सहारे वे अपने कष्टों से छूटते है। और अभीष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक कारगर सहायता प्राप्त करते है।

शक्तिपात के सम्बन्ध में योगचूड़ामणि तेज बिंदूपनिषद् ज्ञान सकलानि तत्व हठयोग संहिता कुलाणवितंत्र धेरड संहिता रुद्र यामल तंत्र योग कुंडल्योपनिषद् शारदातिलक आदि ग्रन्थों में विस्तृत वर्णन है। यह प्रबल प्राण वाले व्यक्ति द्वारा अपनी सामर्थ्य दूसरे के लिए हस्तान्तरित करने के सदृश है। उधार या दान में किसी को पैसा दिया जा सकता है। उसी प्रकार निकट सान्निध्य में यह शक्ति स्वयं भी अधिकारी लोगों की ओर चलने लगती है। अथवा प्रयत्नपूर्वक चलाई जा सकती है।

जलते चूल्हे के पास बैठने पर शरीर गरम होने लगता है। इसी प्रकार इस शक्ति की समीपता अपेक्षित होती है। नर और नारी के बीच यह आकर्षण विकर्षण अनायास ही काम करने लगता है। इसीलिए योगजिन अपनी सामर्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए स्त्रीसेवन या संपर्क से यथा सम्भव दूर रहते हैं। मित्रता की घनिष्ठता से भी यह प्रवाह बढ़ जाता है। इसलिए कुसंस्कारी के साथ रहना भी आध्यात्मिक दृष्टि से घाटे का सौदा है। किन्तु यदि स्वेच्छा पूर्वक किसी को ऊँचा उठाने या आगे बढ़ाने के लिए यह अनुदान दिया जाय तो दूसरी बात है। पर उसमें भी इतना विवेक तो रखना ही पड़ता है। कि उपलब्धकर्ता कही उसका उपयोग अनथ् प्रयोजनों में न करने लगे ऐसी दशा में जो दिया गया है। वह वापस भी लौटाया जा सकता है।

देखने में आत है। कि कितने ही व्यक्तियों को दूसरों के भेजे संदेश मिल जाते है। स्वप्न में तथा दूसरे प्रकार से भी निर्देशन प्राप्त हो जाते है। इसके लिए उपलब्धकर्ता को अपना चित एकाग्र करने का अभ्यास होना चाहिए। आकाश में बिखरी अनेकानेक तरंगों में से वह अपने काम की तरंगें पकड़ लेता है। और ऐसा अभ्यास प्राप्त कर लेता है। जिसे आश्चर्यजनक कहा जा सके।

कई लोगों में भविष्य कथन की दूसरों के विचार या क्रिया−कलाप जानने की भूतकाल में गुजरी घटनाओं की जानकारियों बता देने की क्षमता होती है। उन्हें अदृश्य आत्माओं के संदेश या संकेत आते है। किसी की बीमारियाँ या कठिनाइयों का समाधान बता सकते या कर सकते है। जमीन में या कोठे तिजोरियों में क्यों इसका विवरण बता सकते हैं

इनमें अनेक लोग ऐसी भी होते है। जिनने कोई विशेष साधना नहीं की है। इसका कारण तलाश करने पर पता चलता है। कि या तो उनने पहिले जन्मों में कोई कठिन साधना की है। और मिला उसका प्रभाव अभी तक बना हुआ है। इसके अतिरिक्त ऐसा भी हो सकता है। कि किसी सामर्थ्यवान का अनुग्रह अनुदान मिला है। इसके अतिरिक्त एक कारण यह भी हैं कि एकाग्रता इस स्तर की विकसित हो कि उसके सहारे अतीन्द्रिय क्षमताएं काम करने लगे अथवा ऐसे कल्पना चित्र उभरने लगे जो यथार्थता के समतुल्य है। जिनने कोई योग साधना नहीं की है। फिर भी उनमें चमत्कारी क्षमता मौजूद है। तो उपरोक्त प्रसंगों में से कुछ न कुछ विलक्षण उनके साथ अवश्य घटित हुआ होता है। बिना कारण किसी में चमत्कारी क्षमताओं का उद्भव होना सम्भव नहीं।

शक्तिपात अनुदान को अपनी पात्रता से अर्जित करके कोई व्यक्ति साधारण होते हुए भी सशक्त मनुष्यों के समतुल्य बन सकता है। और उपलब्धि का श्रेष्ठ उपयोग करके वैसा ही लाभ उठा सकता है जैसा कि योगीजन उठाते है।

यह सच है। कि शक्तिपात के आधार पर उच्चस्तरीय सफलताएँ अर्जित की जा सकती है। पर न्याय और नीति का तकाजा यह है। मुफ्त में किसी से कुछ न लिया जाय। शक्ति लेने के बदले में भक्ति तो देनी ही चाहिए


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118