अपनों से अपनी बात - तीनों चरण सम्पन्न होने चाहिये

January 1987

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अखण्ड ज्योति के प्रत्येक परिजन को इन दिनों अपने निजी काम धंधे में कटौती करके भी युग देवता के आमंत्रण को चुनौती रूप में स्वीकार करना चाहिए और नव सृजन की ऐतिहासिक बेला में हाथ बटाने कंधा लगाने और कदम से कदम मिलाकर चलने की तैयारी करनी चाहिए। साथ ही यह विश्वास भी रखना चाहिए कि लोक मंगल के लिए बरती गई उदार साहसिकता उससे अधिक मूल्यवान फसल लेकर वापस लौटेगी जितना कि बीज बोया गया है।

यह युग संधि बेला है। इसमें भी वर्तमान वर्ष का अपना विशेष महत्व है दो वर्ष से चल रही हीरक जयन्ती अखण्ड ज्योति देश की कुण्डलिनी जगाने की त्रिवर्षीय योजना का यह त्रिविधि संगम समागम है। इसे त्रिवेणी संगम भी कह सकती है और पूर्णाहुति वर्ष भी। किन्तु कार्य पद्धति इतनी सरल है जिसे वयस्क व्यक्ति भी अपने निजी प्रयास से अथवा संपर्क परिकर के सहारे सरलता पूर्वक सम्पन्न कर सके।

जहाँ बड़े सामूहिक यज्ञ सम्पन्न हुए है। वहाँ समीपवर्ती क्षेत्रों में अन्य छोटे बड़े महायज्ञ सम्पन्न करने का प्रयत्न करना चाहिए। देश को देवभूमि यज्ञभूमि बनाना है। वातावरण वायुमण्डल का संशोधन करना है साथ ही यज्ञ की साक्षी में सत्प्रवृत्ति संवर्धन एवं दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन के संकल्प भी लेने है। व्यक्ति एवं समाज कायाकल्प का यह एक प्रभावशाली तरीका है। जहाँ सामूहिक यज्ञ बड़े रूप में सम्पन्न न हो सके वहाँ इतना तो करना ही चाहिए कि अपना जन्मदिवसोत्सव मनाया जाय। एक कुण्डी यज्ञ सम्पन्न किया जाय और संपर्क क्षेत्र के अन्य साधक लोगों को एकत्रित करके इस अवसर पर सम्पन्न हुई विचार इसका महत्व समझा जाना चाहिए अनुमान करना चाहिए कि महाकाल के ऐसे चुनौती भरे आमंत्रण बार बार नहीं आते पेट प्रजनन का लोभ मोह से भरा पूरा जंजाल तो जन्म जन्मांतरों तक यथावत चलता रहता है।

इस वर्ष के महासंकल्प को तीन चरणों में विभाजित किया गया है तीनों एक से एक अधिक महत्वपूर्ण है 1 राष्ट्रीय एकता सम्मेलन सहित एक सहस्र से भी अधिक गायत्री महायज्ञों की शतकुण्डी और चौबीस कुण्डी श्रृंखला इस योजना के अंतर्गत एक लाख कुंडों के यज्ञ सम्मेलन संपन्न होने है 2 प्रज्ञा परिवार की एक लाख अभिनव शाखाओं का संगठन 3 शान्ति कुंज में चल रहे नालन्दा विश्व विद्यालय स्तर के एक एक मास वाले युग शिल्पी सत्रों में एक लाख देव मानवो का प्रशिक्षण।

यह तीनों ही कार्य एक से एक महत्वपूर्ण है। साथ ही यह कार्यक्रम ऐसे भी है जिनका माहात्म्य असाधारण है गोष्ठी का उन सब को लाभ लेने दिया जाय।

सामूहिक यज्ञों के लिए हरिद्वार से सभी आवश्यक समान लेकर अक् पहुंच रहे हैं इससे स्थानीय लोगों को भोजन व्यवस्था के अतिरिक्त अनरु कार्यों में कम ही भागदौड़ करनी पड़ती है। फिर भी रोशनी सफाई स्थान का चयन निमंत्रण सुरक्षा जैसी अनेकों जिम्मेदारी तो उठानी ही पड़ती है जहाँ नियमित संगठन नहीं हैं। वहाँ के लोग एकाकी साहस के बल पर भी यह व्यवस्था कर सकते है प्रबंध के लिए समीपवर्ती शाखाओं के जानकार लोगों को बुला सकते है। संकल्पित एक लाख कुंडों के यज्ञ आयोजनों की पूर्ति होने की सुनिश्चित संभावना है।

अभिनव प्रज्ञा परिवारों की स्थापना के लिए न्यूनतम तीन सदस्यों की शाखा से काम चल जाता है। यह तीनों नियमित समय दान और अंश दान की प्रतिज्ञा लें उसी उदार अनुदान के सहारे अपने छोटे बड़े संपर्क क्षेत्र में जन जागरण की गाड़ी चल पड़ेगी।

अत्यन्त छोटे रूप में यह अपने घर पड़ोसी परिवार रिश्तेदार, दफ्तर, परिचित क्षेत्र में से भी चलता रह सकता है। बड़े रूप में तीनों की टोली जन संपर्क के लिए अपने गाँव मुहल्ले से निकले और जन मानस के परिष्कार एवं सत्प्रवृत्ति सम्वर्धन के दोनों कार्य अधिकाधिक व्यापक बनाने का प्रयत्न करें। नैतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक सुधार परिवर्तन के कार्य इसी परिधि में आते हैं। जिनसे भी संपर्क बने, बढ़े उन्हें प्रभावित परिचित करवाने का प्रयत्न किया जाय।

तीन सदस्यों वाले शाखा संगठन इसलिए बनाने पड़े कि बड़े संगठनों को चलाने के लिए जितनी आत्मीयता और दूरदर्शिता की आवश्यकता है। उसका विकास अभी नहीं हुआ है। फलतः वे कुछ कार्य करने की अपेक्षा आपसी झंझटों में फँस जाते हैं। संगठन का कार्य ठप्प हो जाता है। इसलिए एक मन के तीन व्यक्तियों के एक जुट होकर काम करने पर अपेक्षाकृत अधिक एवं ठोस कार्य होने की आशा की गई है। ऐसे संगठन कहीं भी आसानी से वन भी सकते हैं। उनकी उद्देश्य पूर्ण मित्रता लोक सेवा के क्षेत्र में निभ भी सकती है।

अभिनव शाखा संगठनों को पाँच सूत्री कार्यक्रम दिये गये हैं। (1) झोला पुस्तकालय। संपर्क क्षेत्र के शिथिलों को अपना युग साहित्य पढ़ने देना वापस लेना और अशिक्षितों को सुनाना (2) विज्ञजनों के जन्मोत्सव मनाना (3) स्लाइड प्रोजेक्टर के माध्यम से हर मुहल्ले में प्रकाश चित्र दिखाना और उनकी व्याख्या में प्रचलन करना। (4) दीवारों पर आदर्श वाक्य लिखना (5) सुगम संगीत के माध्यम से विचार गोष्ठियों एवं बड़े आयोजनों में युग चेतना का प्रचार विस्तार करना।

इन प्रचार माध्यमों के सहारे उन सभी विषयों पर प्रकाश डाला जा सकता है। जो आज के समय में नितान्त आवश्यक है। शिक्षा संवर्धन स्वच्छता अभियान व्यायाम शाला बाल संस्कार शाला प्रौढ़ शिक्षा महिला उत्कर्ष वृक्षारोपण आँगनबाड़ी जड़ी–बूटी चिकित्सा जैसे उपयोगी कार्यों के जहाँ जितना सम्भव हो शुभारंभ कराये जा सकते हैं। कुरीति निवारण क्षेत्र में नशानिषेध जातिपाँतिगत ऊँच नीच पर्दा प्रथा भिक्षा व्यवसाय मृतक भोज, धूमधाम वाले दहेज विवाह जैसे बुरे प्रचलन समाज के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में फैले हुए हैं। इनका निराकरण करने के लिए लेखनी और वाणी से सुधार किया जाना है और आवश्यकतानुसार असहयोग विरोध संघर्ष भी खड़ा किया जाना है। इस सबके लिए योजना बद्ध रूप में अपनी शक्ति और सीमा के अंतर्गत प्रत्येक छोटी बड़ी शाखाओं को पूरी लगन और निष्ठा के साथ कार्य करना चाहिए।

नवशाखा स्थापित करने वालों को सभी आवश्यकता उपकरणों का प्रबन्ध करना चाहिए। जिनके पास पहले से ही हैं उनके अतिरिक्त जो कभी पड़े उसे स्थानीय कारीगरों से बना सकते हैं या हरिद्वार से खरीद सकते हैं। इसके लिए आरम्भिक पूँजी के रूप में प्रायः एक हजार की राशि मिल जुलकर एकत्रित करनी चाहिए। यह भी हो सकता है। कि जितने पैसे का प्रबन्ध होता चले उतने उपकरण खरीदते भी रहे और उन्हें क्रमश बढ़ाते चलें। शाखा का कार्यक्रम किसी संचालक के घर में रखा जा सकता है। आवश्यक उपकरण भी वहीं सुरक्षित रहे। अखण्ड ज्योति के सदस्य स्वाध्याय मण्डल प्रज्ञा पीठ समर्थ शाखा संगठन कार्य क्षेत्र में उतरेंगे तो विश्वास है कि नये शाखा संगठन जिनमें तीन तीन सदस्य हों एक लाख की संख्या में एक वर्ष के भीतर ही बन जायेंगे।

तीसरा चरण है एक लाख प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को तैयार करना। शान्ति कुँज में नालन्दा विश्वविद्यालय स्तर की एक एक महीने वाली युग शिल्पी शिक्षा गत वर्ष से सफलता पूर्वक चल रही है। अब इसे और भी द्रुतगामी बनाने के प्रयत्न चल पड़ने चाहिए। नव स्थापित शाखाओं के तीन सदस्य शिक्षा प्राप्त करने आयें। यज्ञ आयोजनों के माध्यम से जिन क्षेत्रों से संपर्क बना और बढ़ा हो उसके प्रतिभावान भावनाशीलों को आग्रह पूर्वक सत्रों से भिजवाया जाय। अब यह भय निकाल देना चाहिए कि हरिद्वार में अधिक ठंड पड़ती है। यहाँ भी मौसम अब सामान्य स्थानों जैसा ही रहने लगा है। गत दो माहों में 300 से भी अधिक नैष्ठिक कार्यकर्ताओं का प्रति मास शिविर में शिक्षण प्राप्त करके जाना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

प्रज्ञा परिवार के प्रत्येक परिजन को उपरोक्त तीनों ही संकल्प पूरा कराने में अपना भाव भरा योगदान देना चाहिए और उनकी पूर्ति के लिए प्राणपण से जुटना चाहिए।


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