कुण्डलिनी है महाशक्ति, इस जीवन की। इसमें ऊर्जा केन्द्रित रहती तन-मन की॥
योगी, ऋषि, मुनियों ने, की थी खोज यही। कुण्डलिनी है परम शक्ति यह बात कहीं।
अंतिम पगडण्डी है, यही प्रभु मिलन की। कुण्डलिनी है महाशक्ति इस जीवन की।
इसे जगाने से, मानव होता ज्ञानी। बन सकता कवि, कलाकार या विज्ञान॥
जननी यह अध्यात्मिक, बौद्धिक चिंतन की। कुण्डलिनी है महाशक्ति, इस जीवन की॥
इस सागर मंथन में चौदह रत्न भरे। कामधेनु यह बस इच्छाएँ पूर्ण करें॥
सुख की वर्षा हेतु, घटा यह सावन की। कुण्डलिनी है महाशक्ति, इस जीवन की॥
सहस्रार दल-कमल, इसी से खिलाता है। आत्मा को प्रभु धाम, परम पद मिलता है।
गंध यही है सूक्ष्म जगत के कानन की। कुण्डलिनी है महाशक्ति इस जीवन की॥
इसमें झरते प्रज्ञा, मेधा के झरने। ऋद्धि सिद्धियाँ आतीं जीवन नद भरने।
स्वस्थ गात मन सुखी पूर्ति होती धन की। कुण्डलिनी है महाशक्ति इस जीवन की॥
इसका स्वामी, दिव्य गुणों का सागर है। यह जीवन के, प्राणामृत की गागर है।
ब्राह्मी शक्ति यही तो है, पंचानन की। कुण्डलिनी है महाशक्ति, इस जीवन की॥
*समाप्त*