शरीर की रुग्णता में मनोविकार प्रधान कारण

June 1986

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शरीर पर मात्र भोजन का ही प्रभाव नहीं होता। विचारों का भी उस पर प्रभाव होता है। विशेषकर मनोविकारों की प्रतिक्रिया किसी न किसी रोग के रूप में प्रकट होती है। जल्दी उत्तेजित होने वाले, आतुर, क्रोधी व्यक्ति का रक्त आवश्यकता से अधिक दौड़ने लगता है। बढ़ा हुआ रक्तचाप ऐसे ही लोगों में देखा जाता है। चिकित्सा करनी हो तो रक्त दौड़ हलकी करने वाली दवाएं सेवन करने से ही काम न चलेगा वरन् स्वभाव की उत्तेजना को हटाने, मन को शान्त रहने की भी आदत डालनी होगी।

हृदय की धड़कन बढ़ने का चिन्ता से विशेष सम्बन्ध है। भय की आशंका मन पर छाई रहे तो हृदय की चाल असामान्य हो जाती है कभी धड़कन बढ़ जाती है कभी उसकी चाल धीमी पड़ जाती है। हृदय की कमजोरी को ही इसका कारण मानना ठीक न होगा। हृदय का बल बढ़ाने वाली औषधियों से ही काम न चलेगा वरन् स्वयं में निश्चिन्तता, स्थिरता और धैर्य जैसे गुण स्वभाव का अभ्यास करना होगा।

शरीर में कमजोरी, आँखों के आगे अँधेरा आना, प्रमेह, बहुमूत्र जैसे रोगों के लिए पौष्टिक औषधियाँ सेवन करना अपर्याप्त है। कामुकता के विचार मन में भरे रहना और विषय भोग की आदत बढ़ा लेना ऐसे रोगों का प्रमुख कारण है। उन्हें स्थायी रूप से दूर करना हो तो ब्रह्मचर्य का महत्व समझना चाहिए और संयमशीलता अपनाने का स्वभाव बनाना चाहिए।

ईर्ष्यालु स्वभाव वालों का पेट खराब हो जाता है। अपच रहता है। दस्त, पेट फूलना, डकारें आना उन लोगों को विशेष रूप में होता है जिन्हें कुढ़न की आदत होती है। जरूरत से अधिक कृपणता अपनाने वाले, पैसा होते हुए भी आवश्यक कामों के लिए खर्च न करने वाले, संग्रह करने और मालदार बनने की आदत वाले अपनी पाचन शक्ति गँवा बैठते हैं। उन्हें पाचक चूर्ण गोली, अरिष्ट, आसव आदि देते रहने पर भी पेट ठीक नहीं होता। आदत सुधारने और दिनचर्या शुद्ध रखने पर इन शिकायतों से सहज ही छुटकारा मिल जाता है।

शत्रुता, ईर्ष्या, कुढ़न, भय, आशंका के कारण कई प्रकार के रक्त विकार हो जाते हैं। अनिद्रा का प्रधान कारण चिन्तातुर या भयभीत रहना होता है। इन रोगों का इलाज कराते समय निर्भयता का अभ्यास करना चाहिए, साहस बटोरना चाहिए और हिम्मत बढ़ानी चाहिए कि हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। स्वभाव में निर्भीकता बढ़ने पर बिना दवा के भी ऐसे रोग अच्छे हो जाते हैं। इसके विपरीत यदि सदा जी घबराता रहे, किसी विपत्ति के आ टूटने की आशंका बनी रहे तो कीमती दवाओं का इलाज भी व्यर्थ चला जाता है।

बदला लेने की, नीचा दिखाने की, षड़यन्त्र रचने की मनः स्थिति हो चले और वैसी ही योजनाएँ बनाते रहने पर प्रत्यक्षतः कुछ कर न पाने पर भी भीतर की उधेड़ बुन सिर दर्द जैसी बीमारियाँ खड़ी कर देती है। इलाज कराते रहने पर भी कारगर लाभ नहीं होता। ऐसे लोग अपना मन हलका रखें, वैर भाव निकाल दें, हँसते-हंसाते रहें तो अनेकों बीमारियों से ऐसे पिण्ड छूट जाता है मानों वे थी ही नहीं।

मन को हल्का रखा जाय, सदैव मुसकाते, दूसरों को प्रसन्न करते रहने की आदत डाल ली जाय, सात्विक विचार रखे जाएँ तो शरीर भी अनायास ही रोगमुक्त रहने लगेगा। स्वस्थ जीवन की यह एक महत्वपूर्ण कुँजी है।


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