मनुष्य की बलिष्ठ आत्म चेतना

June 1986

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अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डा. नेलसन वाल्ट का कथन है कि- मनुष्य के अन्दर एक बलवती आत्म-चेतना रहती है, जिसे जिजीविषा एवं प्राणधात्री कह सकते हैं। यह न केवल रोग निरोध अथवा अन्य आत्म-रक्षा जैसे अस्तित्व संरक्षण के अविज्ञात साधन जुटाती है वरन् चेतना जगत में चल रही हलचलों का पता लगा लेती है जो अपने आगे विपत्ति के रूप में आने वाली हैं। पूर्वाभास बहुधा अपने तथा अपने सम्बन्धियों के ऊपर आने वाले संकटों के ही होते हैं। सुख-सुविधा की परिस्थितियों का ज्ञान कभी-कभी या किसी-किसी को ही हो पाता है।

मनःशास्त्री हेनब्रुक ने अपनी शोधों में इस बात का उल्लेख किया है कि अतीन्द्रिय क्षमता पुरुषों की अपेक्षा नारियों में कहीं अधिक होती है। दिव्य अनुभूतियों की अधिकता उन्हें ही क्यों मिलती इसका कारण वे नारी स्वभाव में कोमलता, सहृदयता जैसे सौम्य गुणों के आधिक्य को ही महत्व देते हैं। उनकी दृष्टि में अध्यात्म क्षेत्र नारी को अपनी प्रकृति प्रदत्त विशेषताओं के कारण सहज ही अधिक सफलता मिलती रहती है।

पाया गया है कि अब लोगों में एक अपूर्व जिज्ञासा विकसित होती जा रही है कि आखिर मनुष्य शरीर और उसकी बुद्धि में ऐसे कौन से तत्व विद्यमान हैं जो बहुत अधिक समय बाद में होने वाली घटनाओं का भी बोध करा देते हैं। अब तक मनुष्य शरीर और उसकी रचना को मात्र भौतिक दृष्टि से देखा जाता था, पर समय की इन सिमटती हुई दूरियों ने मनुष्य को अब इतना ध्यानस्थ कर दिया कि उसे मनुष्य जीवन के प्रति सुनिश्चित दृष्टिकोण प्राप्त किये बिना चैन न मिलेगा।

इन भविष्य वाणियों से जहाँ उच्चसत्ता की उपस्थिति, मानवता के उज्ज्वल भविष्य, इस देश की अकल्पित प्रगति और इससे आध्यात्मिक पुनरुत्थान की आशा बँधती है, वहीं हमारे चिन्तन में स्वस्थ अध्यात्मवादी दृष्टिकोण का भी समावेश होता है जो व्यक्ति, समाज और संसार सभी के लिए उज्ज्वल सम्भावनाओं का अध्याय है। संसार की शान्ति और प्रगति इसी दृष्टिकोण पर आधारित है यह सुनिश्चित मानना चाहिए।

महायुद्ध छिड़ने से पहले की बात है लन्दन के स्पेन दूतावास में एक भोज दिया जिसमें ब्रिटेन का तत्कालीन विदेश मन्त्री लार्ड हैली फैक्स सम्मिलित थे। आमन्त्रित अतिथियों में भविष्य वक्ता डी. ह्वोल भी थे संयोग से विदेश मन्त्री महोदय भी बगल में ही बैठे थे। उन्होंने चुपके से भावी महायुद्ध और उसके सम्बन्ध में हिटलर को पूर्व योजनाओं की जानकारी बताने का अनुरोध किया। उसके उत्तर में ह्वोल ने कई ऐसी बातें बताई जो अप्रत्याशित थीं। हैली फैक्स ने वायदा किया कि यदि उनकी भविष्यवाणी सच निकाली तो उन्हें सम्मानित सरकारी पद दिया जायगा। पद की उन्हें आकांक्षा नहीं थी। उनकी बताई सभी बातें सच निकलीं।

हिटलर के सलाहकारों में पाँच दिव्यदर्शी भी थे उनका नेतृत्व विलियम क्राफ्ट करते थे। उनकी सलाह को हिटलर बहुत महत्व देता था। इस मण्डली के एक सदस्य किसी समय ह्वोल भी रह चुके थे। वे जानते थे हिटलर के ज्योतिषी उसे क्या सलाह दे रहे होंगे। उस जानकारी को वह इंग्लैण्ड के अधिकारियों को बता देता। इन जानकारियों से ब्रिटेन बहुत लाभान्वित हुआ और उसने अपनी रणनीति में काफी हेर-फेर किये। फौज के महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व कुछ फौजी अफसरों को सौंपे जाने थे। उनमें से किसी का भविष्य उज्ज्वल है इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने एक आदमी से जनरल मान्टगुमरी की ओर इशारा किया। उन्हें ही वह पद दिया गया और अंततः उन्होंने आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त करके दिखाई। जापान के जहाजी बेड़े को बुरी तरह नष्ट करने की जो सफल योजना बनाई गई थी उसमें से भी व्होल से गम्भीर परामर्श किया गया था। महायुद्ध समाप्त होने तक ही उन्होंने ब्रिटिश सरकार को भविष्यवाणियों का लाभ दिया। पीछे उन्होंने वह कार्य पूरी तरह छोड़ दिया और अपने पुराने धार्मिक लेखन कार्य में लग गये।

विज्ञानी डा. मोरे बर्सटीन ने लेडी वंडर के बारे में एक दिन अपने एक मित्र से सुना, इसके पूर्व विमान-यात्रा में उनका बिस्तर व सामान खो गया था। जिसमें जरूरी कागजातों वाला बक्सा भी था। विमान कम्पनी ने खोए सामान के न मिलने की घोषणा करदी थी तथा मुआवजे का प्रस्ताव रखा था, जिसे वर्सटीन ने अस्वीकार कर खोज जारी रखने को कहा था।

अब मित्र से सुन वर्सटीन को अपने सामान की चिन्ता तो जाती रही। भीतर की जिज्ञासा- वृति उमड़ उठी। वे चल पड़े लेडी वन्डर से मिलने। वहाँ सर्वप्रथम वर्सटीन ने पूछा- बताइये, पेरिस में मैंने जो बिल्ली पाल रखी थी, उसका नाम क्या था? लेडी वंडर ने उसे विस्मित करते हुए बताया- भर्तिनी। फिर वर्सटीन ने अपने सामान की बावत पूछा। लेडी वन्डर ने बताया तुम्हारा सामान न्यूयार्क हवाई अड्डे में है।

पहले तो वर्सटीन को अविश्वास हुआ। क्योंकि न्यूयार्क हवाई अड्डा छाना जा चुका था। पर फिर उसने हवाई अड्डे के अधिकारियों को फोन किया- “महोदय, मुझे विश्वस्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि मेरा सामान न्यूयार्क हवाई अड्डे के भवन के ही भीतर है। कृपया दुबारा तलाश करें।” तलाशी शुरू हुई और सामान सचमुच मिल गया।

‘लन्दन से हाँगकाँग तक’ पुस्तक के विद्वान लेखक हुसेन रोफे एक बार अपने घनिष्ठ मित्र श्री जे. बी. से मिलने गये। यह अवसर बहुत दिन बाद आया था, इसलिए हुसेन रोफे अनेक कल्पनायें अनेक योजनाएँ लेकर मित्र महोदय के पास गये थे, किन्तु जैसे-जैसे वह घर के समीप पहुंचते गये न जाने क्यों उनके मस्तिष्क में निराशा बढ़ती गई। अपनी इस अनायास स्थिति पर स्वयं रोफे को भी हैरानी थी। धीरे-धीरे उनके मस्तिष्क में न जाने कहाँ से दबे-दबे विचार उठने लगे कि “ जे. बी. की आत्महत्या” और भी इतना जोरदार कि उन विचारों के आगे कोई और विचार टिक ही न पा रहा था।

रोफे के आश्चर्य का उस समय ठिकाना न रहा जब मित्र के घर पहुंचते ही उसने पाया कि वह जहर खरीद लाया है और आत्म हत्या की बिल्कुल तैयारी में ही है। हुसेन रोफे ठीक समय पर न पहुँच गये होते तो उन सज्जन ने अपना प्राभान्त ही कर लिया होता।

इस प्रकार की अतींद्रिय दिव्य शक्ति कोई भी व्यक्ति अपने में विकसित करा सकता है। इसके लिए योग साधनाओं का विधान है।

मैस्मरेजम के आविष्कर्ता डा. मैस्मर ने लिखा है- “मन को यदि संसार के पदार्थों और तुच्छ इन्द्रिय भोगों से उठाकर ऊर्ध्वगामी बनाया जा सके तो वह ऐसी विलक्षण शक्ति और सामर्थ्यों से परिपूर्ण हो सकता है, जो साधारण लोगों के लिये चमत्कार सी जान पड़े। मन आकाश में भ्रमण कर सकता है और उन घटनाओं को ग्रहण करने में समर्थ हो सकता है, जिन्हें हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ ग्रहण न कर सकें और हमारा तर्क जिन्हें व्यक्त करने में असमर्थ हो।”

सन् 1759 की वह घटना प्रामाणिक उल्लेखों में दर्ज है जिसके अनुसार स्वीडन के इमेनुअल स्वीडन वर्ग नामक साधक ने सैंकड़ों मील दूर पर ठीक उसी समय हो रहे भयंकर अग्निकांड का सुविस्तृत विवरण अपनी मित्र मण्डली को सुनाया था। इस अग्निकाण्ड में घायल तथा मरने वालों के नाम तक उसने सुनाये थे जो पीछे पता लगाने पर अक्षरशः सच निकले।

“इन सर्च आफ दि ट्रुथ” पुस्तक में श्रीमती रूथ मान्टगुमरी लिखती हैं कि युद्धों के समय पाशविक वृत्तियाँ एकाएक आत्म-मुखी हो उठती हैं तब कैसे भी व्यक्तियों को अतीन्द्रिय अनुभूतियाँ स्पष्ट रूप से होने लगती हैं। युद्ध के मैदानों में लड़ने वाले सैनिक और उसके सम्बन्धी रिश्तेदारों के बीच एक प्रगाढ़ भावुक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है वही इन अति मानसिक अनुभूतियों की सत्यता का कारण होता है। ध्यान की गहन अवस्था में होने वाले भविष्य की घटनाओं के पूर्वाभ्यास भी इसी कारण होते हैं कि उस समय एक ओर से मानसिक विद्युत दूसरी ओर से पूरी क्षमता के साथ सम्बन्ध जोड़ देती और जिस प्रकार लेजर यन्त्र, टेलीविजन, राडार आदि हमें दूर के दृश्य व समाचार बताने दिखाने लगते हैं उसी प्रकार यह भाव सम्बन्ध हमें दूरवर्ती स्थानों की घटनाओं के सत्य आभास कराने लगते हैं।

यह जीव-कोशों के मन ही मिलकर अवयव मन का निर्माण करते हैं, इसलिये मन को एक वस्तु न मानकर अध्यात्म-शास्त्र में उसे ‘मनोमय कोश’ कहा गया है। एक अवस्था ऐसी होती है, जब शरीर के सब मन उसके अधीन काम करते हैं, जब यह अनुशासन स्थापित हो जाता है तो मन की क्षमता बड़ी प्रचण्ड हो जाती है और उसे जिस तरफ लगा दिया जाये उसी ओर वह तूफान की सी तीव्र हलचल पैदा कर देता है।

इन सभी का वैज्ञानिक समाधान ढूंढ़ें तो हम पाते हैं कि इलेक्ट्रान और प्रकाश यदि शक्ति है तो पदार्थ भी हैं। कण हैं तो लहर भी। इलेक्ट्रान सृष्टि के हर कण में है, पर वह अपनी उत्पादकता न होकर नाभिक से बंधा है उसी प्रकार प्रकाश ब्रह्मांड भर में कहीं विचरण कर सकता है पर वह स्वयं उसका अपना उत्पादन नहीं है अपने जीवन के अन्तिम समय में आइन्स्टीन, जो कि ऋषियों के मायावाद सिद्धान्त तक पहुँच गये थे, ने यह बताया कि काल और स्थान सापेक्ष हैं और वे प्रकाश की माप पर निर्भर है, वे अब यह सिद्ध करना चाहते थे कि कोई यूनीफाईड फील्ड ऐसा है जिसमें एलेक्ड्रोमेगनेटिक फोर्स भी है और गुरुत्वाकर्षण भी। वह क्षेत्र इन दोनों से युक्त भी है और मुक्त भी। यह इलेक्ट्रॉन की तरह ही द्वैत गुण युक्त था और आइन्स्टीन ने उसके अस्तित्व से इनकार नहीं किया वरन् माना था कि “मस्तिष्कीय द्रव्य” में वह गुण है वह समय और पदार्थ से परे तत्व है उसकी गति और अगति में कोई अन्तर नहीं है अर्थात् वह मस्तिष्कीय द्रव्य- माइण्ड स्टाफ एक ही समय में मद्रास या बम्बई में भी हो सकता है और उसी समय वह हरिद्वार में भी उपस्थित रह सकता है। यही वह तत्व है जो प्रकाश को धारण करके उसकी गति से किसी भी वस्तु का स्थानान्तरण कर सकता है। पदार्थ को शक्ति में बदलकर उसे कहीं भी सूक्ष्म अणुओं के रूप में बहाकर ले जा सकता है और उसे सेकेंड से भी कम समय में बदल सकता है।

योगी और साधक ध्यान द्वारा मस्तिष्क के इसी एकान्त क्षेत्र पर अवस्थित होकर इलेक्ट्रान और प्रकाश कणों द्वारा ई.=एम. सी. के आधार पर वह शक्ति अपने भीतर से उत्पन्न करते हैं जो किसी भी परमाणविक शक्ति से बढ़कर होती है, उसमें इलेक्ट्रान और प्रकाश कणों की द्वैत शक्ति ही होती है। जिससे वे स्थूल और क्रियायें सम्भव हैं जो अतीन्द्रिय घटनाओं के रूप में प्रकट होती हैं।

हमें सामान्य जानकारियाँ इन्द्रिय शक्ति के आधार पर मिलती हैं। पर यदि प्रसुप्त अतीन्द्रिय शक्ति को जागृत किया जा सके तो व्यापक ब्रह्मांड सत्ता के साथ अपना संपर्क जुड़ सकता है और असीम से असीम स्थिति में पहुँचा जा सकता है।

इस विश्व में जड़ और चेतना की द्विधा अपने-अपने नियत प्रयोजनों में संलग्न है। उनका वैभव भी महासमुद्र की तरह है जिसके किनारे पर बैठकर मनुष्य ने सीप और घोंघे ही ढूंढ़े हैं। प्रकृत परमाणुओं में और जीवाणु घटकों में जो सामर्थ्य तथा चेतना विद्यमान है उसका बहुत छोटा अंश ही जानना, हथियाना सम्भव हो सका है। सब कुछ पाना खींच-तान से- झीना झपटी से नहीं उसमें घुल जाने से ही सम्भव हो सकता है। समुद्र के पानी को कोई घड़ा कितनी मात्रा में अपने में भर सकेगा? सम्पूर्ण समुद्र के साथ एकता स्थापित करनी हो तो घड़े को अपना जल समुद्र में मिला देना पड़ेगा तभी तुच्छता को सुविस्तृत स्थिति में अनुभव कर सकना सम्भव होगा।


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