स्वामी रामतीर्थ जब प्रोफेसर थे तब उनके बोर्ड पर एक लाइन खींचकर विद्यार्थियों से कहा- “इसे बिना मिटाये छोटा करके दिखाओ।” एक चतुर विद्यार्थी उठा, उसने उसकी बराबर ही एक लाइन कुछ बड़ी खींच दी। रामतीर्थ बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने कहा- “छात्रों ! यही क्रम जीवन में भी है। यदि तुम दूसरों से बड़े होना चाहते हो तो किसी को पीछे धकेलने या उससे ईर्ष्या करने की जरूरत नहीं है। अपने गुणों और कार्यों को उससे अच्छा बनाओ, तुम स्वयं उनसे बड़े हो जाओगे।