चेतना जगत के अदृश्य संदेश वाहक

June 1980

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मनुष्य जीवन का सर्वाधिक समय सोने में लगता है। यद्यपि दिन के 24 घन्टों में से सामान्यतः 16 घन्टे जागते हुँए ही बीतते है परन्तु इन 16 घन्टों में अनेक विध क्रिया कलाप अपनाया जाता रहता है। यदि एक ही काम में समय लगने की दृष्टि से समय विभाजन और उकस मूल्याकंन किया जाये तो इसी निर्ष्कष पर पहुँचना पड़ेगा कि निद्रा ही मनुष्य का सबसे ज्यादा समय लेती है। स्वस्थ मनुष्य के लिए प्रायः आठ घन्टे नींद लेना आवश्यक समझा गया है।

नींद के सम्बन्ध में एक तथ्य यह भी प्रकाश में आया है कि उस समय शरीर तो सोया रहता है किन्तु मन जागता रहता है और वह तरह-तरह की हलचलें किया करता है। जागृत अवस्था में मन के जो क्रिया-कलाप, व्यवहार, आचरण और कार्यों के रुप में अभिव्यक्त होते जान पड़ते है सुप्तावस्था में मन की वही हलचलें स्वप्न के रुप में दिखाई देती है। जागृत स्थिति में मन की उचंगों को सामाजिक दबाब, नैतिकता और सभ्यता के मानदण्डों से दबाना पड़ता है उन्हें व्यक्त होने से रोकना पड़ता है। लेकिन स्वप्न एक ऐसी स्थिति है कि वहाँ इस तरह का कोई दबाब अथवा नैतिक बाध्यता नहीं रहती, इसलिए सपनों में मन स्वच्छन्द हेकर विहार करता है। इसी आधार पर प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्राइड ने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया, कि “ प्रत्येक स्वप्न अतीत की अनुभूतियों और दैहिक संवेदनों, विकारों का संयुक्त परिणाम होता है। स्वप्न यह स्पष्ट करते है कि हमारा चेतन मन, हमारी भावनाओं के हाथ का एक खिलौना मात्र है।

फ्राइड ने यह भी कहा कि मन की उचित वासनाएँ ही प्रायः स्वप्न के रुप में प्रकट होती है और तरह-तरह के रंग गिरंगे चित्र दिखाकर अपनी तृप्ति का उपाय सृजती रहती है। लेकिन अब यह धारणा पुरानी पड़ चुकी है और यह स्वप्नों का एक पक्ष सिद्ध हुई, न कि उन्हे समझने या व्याख्यायित करने का सम्पूर्ण आधार। फ्रायड के अनुसार व्यक्ति के अवचेतन को किन्ही सामान्य और संकीर्ण सिद्धान्तो द्वारा स्वप्न के माध्यम से समझने का दावा किया जाता था और उन्हें अतृप्त इच्छाओं की अभिव्यक्ति मात्र समझा जाता था। किन्तु अब स्वप्नों को सामान्यतः तीन वर्गों में रखा जाता है, एक तो वह स्वप्न जो शारीरिक दबावों से प्रभावित होने के कारण दिखाई देते है, दूसरे प्रकार के स्वप्न मानसिक स्थिति की प्रक्रिया स्वरुप उत्पन्न होते है, तीसरी श्रेंणी में उन स्वप्नों को रखा गया है जिन्हें आध्यात्मिक स्वप्न कहा जा सकता है।

शारीरिक दशाओं से प्रभावित स्वप्नों में अपच, उदर, विकार, सर्दी गर्मी की अधिकता, भूख-प्यास, शरीर से किसी वस्तु के र्स्पश होने, सोते समय वातावरण में विशेष बदलाव आ जाने के कारण दिखाई पड़ने वाले दृश्य आते है। ऐसे स्वप्नों में अतिरंजना और विकृति की प्रधानता होती है। उदाहरण के लिये सोते समय यदि कोई सुई या कील वगैरह चुभ रही हो तो स्वप्न में जान पड़ता है कि किसी ने भाला या तलवार घुसेड़ दिया हो। सर्दी की अधिकता में बर्फ की सिल्लियों पर लेटने या ठन्डे पानी में डूबने तथा गर्मी में आग से झुलसने जैसे अनेक दृश्य दिखाई पड़ते है।

मनमस्तिष्क पर पड़ने वाले विभिन्न दबावों, इच्छाओं वासनाओं के आघातों से उत्पन्न स्वप्न दृश्य दूसरी श्रेणी के स्वप्नों की कोटी में आते है। इस प्रकार के स्वप्नों के संबंध में प्रसिद्ध मनःशास्त्री कार्य शेरनल का कथन है कि “शरीर या मन का प्रत्येक विक्षोभ एक विशिष्ट प्रकार के स्वप्न को उत्पन्न करता है। यह ठीक है कि स्वप्न तथ्यों पर आधारित होते है किन्तु वे तथ्यों की सीमाओं से बँधे नहीं होते। उनमें कल्पनात्मक उड़ान भी भरपूर होती है।

तीसरी श्रेणी के स्वप्न वे है जिन्हें आध्यत्मिक कहा जाता है। उन्हें अतीन्द्रिय भी कहा जा सकता है। फ्रायड ने इस तरह के स्वप्नों को योन कुष्ठाओं के द्वारा प्रेरित और दमित इच्छाओं का प्रतीक कहा था, वहीं स्वप्न अब अतीन्द्रिय अनुभूतियों के आधार सिद्ध हो रहे है। विभिन्न अनुसंधानों, प्रयोगों और परीक्षणों द्वारा यह भली भाँति स्पष्ट हो चुका हैं कि स्वप्न मात्र दमित यौन आकाँक्षाओं अथवा कल्पित क्लिष्ट मनोविकृतियों के दायरे में नहीं सिमट सकते अपितु उनके विविध वर्ग एवं स्तर है। अतीन्द्रिय अथवा आध्यात्मिक स्वप्न भी उनमें से एक है।

अतीन्द्रिय अनुभूतियों स्पष्ट प्रमाण देने वाले विभिन्न स्वप्नों की वैज्ञानिक छान-बीन से यही संकेत मिल रहे है कि व्यक्ति का अवचेतन मनुष्य के सामूहिक अवचेतन का ही एक अंग है। उसका विस्तार विराट् और महत् है विश्व के अनेक आविष्कार इसी अवचेतन की कृपा से सम्भव हुए है। हेनरी फार डेसफाटिस, डन पाइनकेयर जैसे गणितज्ञों को स्वप्न से मार्गदर्शन मिलने की घटनाएँ सर्व विदित है। सिलाई की सुई से लेकर बन्दूक के लिए शीसे के छर्रों और मनुष्यों तक की सैकड़ों वैज्ञानिकों आविष्कारों की सफलताओं का आधार स्वप्न प्रेरणाएँ रही है। विश्व विख्यात संगेतकार मीजार्ट को एक ललित संगीत धुन एक ही बग्घी में बैठकर कही जाते समय जरा भी झपकी लेने के वक्त सूझी। वायलिन बाद तारालिनी को द डेविल्स सानेट’ नामक धुन पूरी की पूरी स्वप्न में दिखाई पड़ी थी। ये धुने काफी प्रसिद्ध और लोकप्रिय हुई। विश्व प्रसिद्ध संगीतकार चैम्पीन भी अपने संगीत सृजन की प्रेरणाएँ सपनों में पाते थे। प्रसिद्ध नृत्याँगना मेरी विगमैन ने ‘पास्तेरोल’ नामक एक नृत्य की प्रेरणा एक स्वप्न द्वारा ही प्राप्त की थी। हेनरी भूर पाठलो पिकासो, ‘एडयू वेथ, वान गाँगासल्वाडोर डाली आदि प्रख्यात चित्रकारों की सृजन चेतना में स्वप्नों का बड़ा हाथ रहा है।

साहित्यकारों का तो कहना ही क्या? पुश्किन, गेटे, शेक्सपीयर, टालस्टाय आदि सैकड़ों लेखकों स्वप्न में प्राप्त हुए संकेतों, प्रेरणाओं, निर्देशों और परामर्शो के आधार पर एक से एक अनूँठी और ऐतिहासिक कृतियाँ सृजीं। प्रख्यात यूनानी लेखक होमर अँग्रेजी साहित्यकार कालरिज, एडगर एलनपो आदि ने अर्द्ध चेतन स्थिति में,स्वप्न लोक में विचरण करते उन्हीं प्रेरणाओं के आधार पर अनेक रचनाओं का सृजन किया।

इसी प्रकार अनेक गणितज्ञों ने गणित की जटिल समस्याओं को स्वप्नों के माध्यम से अवचेतन की झलकियों के आधार पर सुलझाया। वैज्ञानिकों ने इस आधार पर अनेकों महत्वपूर्ण आविष्कार किये है, कवियों ने अमर काव्यकृतियाँ रची है, कथाकारों और नाट्यकारों ने स्वप्नों के माध्यम से रचनाओं के प्लाट प्राप्त किये है इन स्वप्नों का विश्लेषण अभी संभव नहीं हुआ है पर यह तथ्य है कि अनेक व्यक्तियों ने स्वप्नों के माध्यम से वर्तमान में प्रस्तुत जटिल गुत्थियों का समाधान प्राप्त किया और उन्हें सुलझाया। अनेक वैज्ञानिक आविष्कारों के मूल में स्वप्नों की प्रेरणा होने तथा साहित्यिक कृतियों का आधार मिलने की सैकड़ों घटनाएँ मिलती है। उनमें से कई तो विश्व विख्यात है। प्रश्न उठता है कि स्वप्नों का कारण यदि मन की दमित और कुँठित इच्छाएँ वासनाएँ ही है तो ये महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्वप्नों के पीछे कौन-सी दमित आकाँक्षाएँ काम करती रही थीं जिन्होने सृजन और निर्माण की नई-नई धाराओं को निःसृत किया।

इन सभी घटनाओं का विश्लेषण करने के बाद इसी निर्ष्कष पर पहुँचना पड़ता है कि स्वप्न में मानवीय मस्तिष्क का अधिक विस्तृत और सशक्त भाग, जिसे अवचेतन कहा जाता है जागृत और क्रियाशील रहता है तथा व्यक्ति के मन की संरचना के अनुसार वह विश्वव्यापी गतिविधियों से गहराई के साथ सम्बद्ध हो सकता है। अतीन्द्रिय स्वप्नों का यह एक प्रकार है और सर्व सामान्य भी यदा-कदा इस प्रकार की अनुभूतियाँ प्राप्त करता है। जब कोई सुलझाये नहीं सुलझ रही हो, मन बहुत बेचैन और व्यथित हो तो न जाने कहाँ से कई बार ऐसे समाधान सूझ पड़ते है कि चमत्कृत रह जाना पड़ता है। इसे सृष्टा की अनुकम्पा और करुणा ही कहा जाना चाहिए कि उसने अपनी प्रिय सन्तान के लिए स्वयं उत्पन्न की गई समस्याओं के लिए भी समाधान के ऐसे स्त्रोत प्रस्तुत किऐ और न सही समस्याएँ, अनेक महत्वपूर्ण प्रेरणाएँ सृजन के सन्देश इस विचित्र माध्यम से प्राप्त होते है।


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