मस्तिष्क पगलाता क्यों है?

June 1980

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मनोरोग दिखाई नहीं पड़ते। उसकी हानि प्रत्यक्ष नहीं है। ध्यान देने पर समझ में आती हैं साधारणतया तो ऐसा लगता है कि मानसिक रोगी ढीठता दिखाता और उच्छखलता भर बरतता है। यह प्रतीत ही नहीं होता कि यह किसी विकृति से ग्रसित होने के कारण अपनी भौतिक क्षमता गँवाता और विकृतियों के दलदल में फँसता चला जा रहा है। जब रोग का आभास ही नहीं तो उसका इलाज कौन करे। कईबार महिलाओं की बीमारियों को बहाने बाजी कहकर टाल दिया जाता है। मानसिक रोगों की बात तो इसलिए भी उपेक्षा में पड़ी रहती है कि उनकी उपस्थिति की कोई जानकारी तक सर्वसाधारण को नहीं है। फिर भी यह एक तथ्य है कि मानसिक रोगों से मनुष्य समाज का जो अहित होता है वह शारीरिक बीमारियों से होने वाली हानि की तुलना में किसी भी प्रकार कम भयंकर नहीं है। शरीर के पीड़ित या अपंग रहते संसार के असख्य व्यक्तियों ने अति महत्वपूर्ण काम करने में सफलताएँ पाई है, पर ऐसा एक भी व्यक्त नहीं हुआ जो मानसिक दृष्टि से अपंग होने पर कुछ कहने लायक सफलता प्राप्त कर सका हो। सच तो यह है कि ऐसे लोग अपनी जीवन यात्रा तक शान्ति और सम्मानपूर्वक परी नहीं कर पाते।

महर्षि अष्टावक्र आठ जगह से कुबड़े थे, चाणक्य को अति कुरुप कहा जाता है। सुकरात की कुरुपता भी प्रख्यात है। आद्यशंकराचार्य भगन्दर के कोडे़ से ग्रसित थे। सूरदास अन्धे थे। कुमारी केलर गूँगी, बहरी और अन्धी होते हुए भी अनेक भाषाओं और विषयों की स्नातक है। ऐसे असंख्य प्रसंग है जिनमें अस्पतालों के विस्तरों पर पड़े-पडे़ लोगों ने माहन कृतियाँ तैयार की है। शरीर एक उपकरण है, पर मस्तिष्क की स्थिति सूत्र संचालक की है। मस्तिष्क लड़खड़ा जाने पर तो मनुष्य अपने और साथियों के लिए भार बन जाता है जबकि अन्धे और अपंग भी अपनी उपस्थिति से परिवार को कई तरह लाभान्वित करते रहते है।

पूर्ण पागलों की संख्या तो संसार में इस अनुपात में बढ़ रही है जिसे देखते हुँए संसार की सभी बीमारियों की दौड़ उससे पीछे रह गई है। खुले फिरने वाले पागलों की संख्या और उनके द्वारा जनसाधारण को होने वाली असुविधा ऐसी है, जिसे दूर करने के लिए पागल खानों की बड़ी संख्या में आवश्यकता अनुभव की जा रही है। जेलखानों से भी अधिक पागलखानों के लिए स्थान बने तब उपद्रवी पागलों के द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले संकटों से बचा जा सकता है। अध पगले-सनकी, असन्तुलित अस्त व्यस्त, अव्यवस्थित, अदूरदर्शी लोगों की संख्या तो इतनी बढ़ी-चढ़ी है कि मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से सही मनुष्य की संख्या सामान्य आबादी का एक छोटा अंश ही मिल सकेगा। शारीरिक दृष्टि से जितने लोग रुग्ण है मानसिक विकृतियों से ग्रसित की संख्या उसे कम नहीं अधिक ही मिलेगी। यह अधूरे और अस्त-व्यस्त मनुष्य मानव समाज की प्रगति, एवं सुव्यवस्था में अवरोध ही कहे जा सकते है। खेद इस बात का है-गरीबी, बीमारी, अशिक्षा, अपराधी उद्दण्डता से भी अधिक कष्टदायक और भयानक बढ़ती हुई विक्षिप्तता की हानि को समझने और उसकी रोकथाम करने के लिए प्रयत्न नहीं किया जा रहा है।

अपराध भी वस्तुतः एक प्रकार का आवेश है। जिन्हें मनुष्य एक प्रकार के उन्माद से ग्रसित स्थिति में करता है। चोर, उच्क्के अपने कुकृत्यों की हानियाँ समझते है, उन पर पछताते भी है, छोड़ना भी चाहते है, भलमनसाहत के रास्ते चलने पर लोग कितनी उन्नति कर गये और कितने सम्मानित हुए यह तथ्य वे आँखों से देखते और कानों से सुनते है। दूसरे उन्हें समझाते है और वे बात को समझाते भी है कुछ समय उनका विवेक जागृत भी रहता है और भले आदमियों की तरह रहते भी है, फिर कभी ऐसी उचंग उठती है कि रोके नहीं रुकती यहाँ तक कि व्यक्ति उस छोड़े हुँए कार्य को करने के लिए एक प्रकार से विवश ही हो जाता है और फिर उसे dj gh xqtjrk gSA u'ksckth dh gkyr Hkh izk;% ,slh gh gksrh gSA chM+h flxjsV rks 'kkSd&ekSt ds fy, Hkh pyrh gS] ij 'kjkc] xkatk] pjl] vQhe dh ry iM+ tkus ls iSls dh] 'kjhj dh] lEeku dh fdruh {kfr tkus ls iSls dh] 'kjhj dh] lEeku dh fdruh {kfr gksrh gS mls os izR;{k ns[krs gSa] Hkyh izdkj le>rs gSaA NksM+us ds ladYi fodYi jkst gh eu esa mBrs jgrs gSaA le>kus ij yfTtr Hkh gksrs gSa vkSj nq[kh Hkh ij vius vkidks foo'k ikrs gSaA dksbZ v/kM+ Hkhrj ls ,slk mBrk gS fd Kku&foosd dks ,d vkSj iVd dj og djk ysrk gS ftls djus dh dqN Hkh vko';drk ugha FkhA lekt 'kkL=h bls ?k`"Vrk] nq"Vrk vkfn dk uke ns ldrs gSa] ij eu%jksx 'kkL= dh n`f"V ls ;g ml O;fDr dh vlgk; fLFkfr gSA Bhd oSlh gh tSlh Toj ;k f'kj nnZ ls vkØkr euq"; dh gksrh gSA vijk/k djus dh fn'kk esa ftuds eu epyrs jgrs gSa mgsa eu%'kkL= dh Hkk"kk esa *lknw dks iSFk* dgk tkrk gSA fo'ys"k.k djus ij mudh eu%fLFkfr lkek; yksxksa tSlh ugha gksrh oju~ vlkek; vkSj vlrqfyr ikbZ tkrh gSA

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द2ड्ट द्धशश्चद्मद्भ द्बभ्शद्मद्द द्गह्यड्डह्य फ्रु+ष्रु+द्ध द्बरु+ ह्लद्मह्वह्य स्रह्य स्रंघद्बह्वद्म, क्द्धह्व;द्ध=ह् द्दद्मह्य ह्लद्मह्द्ध द्दस््न ष्ठ;द्म द्यद्मह्यश्चह्वद्म द्वद्ब;ह्नष्ठह् द्दस् ष्ठ;द्म ह्वद्दद्धड्डझ्र ष्ठ;द्म द्यश्व॥द्मश द्दस् ;द्म क्द्यश्व॥द्मशझ्र द्यद्म/द्मह्वद्मह्यड्ड क्द्मस्द्भ द्बद्धद्भद्धरुस्नद्मद्धह्;द्मह्यड्ड स्रद्म य़द्मह्व ह्व द्भद्दह्वह्य द्यह्य शह्य क्द्बह्वद्ध द्दद्भ स्रंघद्बह्वद्म द्गह्यड्ड द्यद्भब्ह्द्मद्बर्ख्शंस्र द्यश्व॥द्मश द्दद्मह्य द्यस्रह्वह्य ;द्मह्यंग; द्गद्मह्व ष्स्क्चह्ह्य द्भद्दह्ह्य द्दस्ड्ड्न ;द्द ॥द्मद्ध क्ह्वह्नद्गद्मह्व ह्वद्दद्धड्ड ब्फ्द्म द्बद्मह्ह्य द्धस्र ड्ढह्व स्रंघद्बह्वद्मक्द्मह्यड्ड स्रद्मह्य द्बख्द्भद्म स्रद्भह्वह्य स्रह्य द्धब्, द्धस्रह्ह्वद्म द्यद्ग; ब्फ्ह्यफ्द्म क्द्मस्द्भ ष्ठ;द्म द्यद्म/द्मह्व ह्लह्नंकद्मह्वह्य द्दद्मह्यड्डफ्ह्य्न स्रंघद्बह्वद्म क्द्मस्द्भ द्यक्तब्ह्द्म स्रह्य ष्द्धश्च शह्य द्धस्रद्यद्ध क्ह्द्भ क्शद्भद्मह्य/द्म स्रद्म क्ह्वह्नद्गद्मह्व ह्वद्दद्धड्ड ब्फ्द्म द्बद्मह्ह्य क्तब्ह्त्न द्बद्भद्ध ब्द्मह्यस्र द्गह्यड्ड द्धशश्चद्भ.द्म स्रद्भह्वह्य शद्मब्ह्य ष्द्मब्स्रद्मह्यड्ड ह्लस्द्यद्ध द्वह्वस्रद्ध द्गह्वत्नद्धरुस्नद्मद्धह् द्भद्दह्द्ध द्दस््न ष्द्दह्नश्चद्धर्श्चंह् 'द्मह्य[द्मद्धश्चंघब्द्ध द्यश्व॥द्मशह्त्न ड्ढद्यद्ध द्बभ्स्रद्मद्भ स्रह्य द्गह्वद्मह्यद्भद्मह्यफ्द्मह्यड्ड द्यह्य फ्भ्द्धद्यह् द्भद्दह्य द्दद्मह्यड्डफ्ह्य्न ,ह्यद्यह्य ब्द्मह्यफ् द्वंघंकद्म द्यद्मह्यश्चह्वह्य ब्फ्ह्य ह्द्मह्य द्यद्मद्गद्म; ठ्ठस्द्धह्वस्र स्रक्वक्र;द्मह्यड्ड ह्स्र स्रह्य द्धब्, क्द्बह्वह्य स्रद्मह्य क्द्यद्गस्नर्द्मं द्बद्मह्ह्य द्दस्ड्ड] क्द्मस्द्भ ठ्ठख्द्यद्भद्मह्यड्ड स्रद्ध द्यद्दद्म;ह्द्म द्धष्ह्वद्म स्रह्नहृ ॥द्मद्ध स्रद्भह्वह्य स्रद्ध द्धद्दश्वद्गह् फ्शद्म ठ्ठह्यह्ह्य द्दस््न ह्वस्द्धह्स्र क्द्मस्द्भ क्ह्वस्द्धह्स्र] द्यद्मद्गद्मद्धह्लस्र क्द्मस्द्भ क्द्यद्मद्गद्मद्धह्लस्र द्धश्चह्ह्व स्रद्म क्ह्द्भ >द्धह्वद्म द्बरु+ ह्लद्मह्वह्य द्यह्य शह्य ,ह्यद्यद्म द्यद्मह्यश्चह्ह्य क्द्मस्द्भ स्रद्दह्ह्य द्बद्म;ह्य ह्लद्मह्ह्य द्दस्ड्ड्न द्धह्लद्यद्यह्य द्यह्नह्वह्वह्य शद्मब्द्मह्यड्ड स्रद्मह्य ॥द्मद्ध ब्ञ्जञ्जद्मद्म क्द्मह्द्ध द्दस््न

द3ड्ट ह्र;शद्दद्मद्भ क्ह्वह्नद्गद्मह्व ह्= द्गह्यड्ड फ्रु+ष्रु+द्ध द्दद्मह्यह्वह्य द्यह्य द्गह्वह्न"; स्रह्य द्धब्, ;द्द क्ह्वह्नद्गद्मह्व ब्फ्द्मह्वद्म स्रद्धक्चह्व द्बरु+ह्द्म द्दस् द्धस्र ठ्ठख्द्यद्भह्य ब्द्मह्यफ्द्मह्यड्ड स्रद्म ह्र;शद्दद्मद्भ द्वद्यस्रह्य द्यद्मस्नद्म स्रस्द्यद्म क्द्मस्द्भ द्धस्रद्य द्वठ्ठ−ठ्ठह्य'; द्यह्य द्बभ्ह्यद्धद्भह् द्दस््न 'द्म=ह्नक्द्मह्यड्ड स्रद्मह्य द्धद्ग=शह्− द्गद्मह्वह्वह्य स्रद्म द्बद्मफ्ब्द्बह्व ॥द्मद्ध स्रर्ड्ढं ष्द्मद्भ द्बद्म;द्म ह्लद्मह्द्म द्दस्] द्धश'द्मह्य"द्मह्द्म द्वक्चह्द्ध द्दह्नर्ड्ढं क्द्म;ह्न स्रद्ध ब्रु+द्धस्र;द्मँ द्बभ्द्गड्डफ्द्मह्यड्ड द्गह्यड्ड ड्ढद्य द्बभ्स्रद्मद्भ स्रद्ध द्गद्म;ह्द्म, फ्<+ ब्ह्यह्द्ध द्दस्ड्ड द्धस्र द्धह्लह्वद्गह्यड्ड ;द्द ठ्ठक्वद्ध"क द्यह्य द्वह्वस्रद्म क्द्धद्दह् स्रद्भह्वह्य द्बद्भ द्वह्द्म: ह्स्नद्मद्मस्रद्धस्नद्मह् द्बह्यभ्द्गद्ध द्वद्दह्यड्ड क्द्बह्वद्म र्द्यशंरुश ठ्ठद्ध/द्मह्द्म द्दस् क्द्मस्द्भ द्वद्यद्यह्य द्धशद्भह् द्दद्मह्यह्वह्य स्रद्म द्धद्य[द्मद्मशह्व द्धस्रद्यद्ध द्बद्भद्ग द्धद्दह्स्"द्मद्ध स्रद्म ॥द्मद्ध ह्वद्दद्धड्ड द्गद्मह्वह्द्ध] द्बद्भ ;द्द ॥द्मख्ब् द्बभ्द्म;त्न द्धह्व"द्मह्य/द्मद्मक्रद्गस्र द्दद्ध द्दद्मह्यह्द्ध द्दस््न क्द्गह्नस्र ह्र;द्धष्ठह् क्द्बह्वह्य 'द्म=ह्न ष्ह्वह्य द्दह्न, द्दस्ड्ड] ह्लद्मठ्ठख् कद्मह्यह्वद्म स्रद्भ द्भद्दह्य द्दस्ड्ड द्गद्मद्भह्वह्य] ह्लद्दद्भ ठ्ठह्यह्वह्य द्धद्गंकद्म ठ्ठह्यह्वह्य] ह्लस्द्यह्य "द्मरु+;ड्ड= द्भश्चह्य द्दह्न, द्दस्ड्ड ह्लस्द्यद्ध द्गद्म;ह्द्म ष्ह्वद्म ब्ह्यह्ह्य द्दस्ड्ड क्द्मस्द्भ द्धह्वद्भह्द्भ ॥द्म;॥द्मद्धह् द्भद्दह्ह्य द्दस्ड्ड] द्धस्रह्ह्वद्मह्यड्ड स्रद्मह्य द्दद्ध ठ्ठह्न?र्द्मंकह्वद्म] द्गक्वक्र;ह्न] क्द्मयद्ग.द्म] द्दद्मद्धह्व] द्धशहृद्मह्यद्द ह्लह्यब् क्द्मद्धठ्ठ स्रद्म ॥द्म; द्यह्द्मह्द्म द्भद्दह्द्म द्दस्] ,ह्यद्यह्य ब्द्मह्यफ् ;द्द ॥द्मद्ध द्धह्व.र्द्मं; ह्वद्दद्धड्ड स्रद्भ द्बद्मह्ह्य द्धस्र द्धस्रद्य स्रद्धक्चह्वद्मर्ड्ढं स्रद्म द्धह्वद्भद्मस्रद्भ.द्म द्धस्रद्य द्बभ्स्रद्मद्भ स्रद्भह्वद्म श्चद्मद्धद्द,] द्धस्रह्व द्यद्गरु;द्मक्द्मह्यड्ड स्रद्म द्यद्गद्म/द्मद्मह्व द्धस्रद्यद्यह्य द्बख्हृह्वद्म श्चद्मद्धद्द;ह्य] शह्य द्बभ्/द्मद्मह्वद्गड्ड=द्ध द्यह्य हृद्मह्यंकह्य क्द्ध/द्मस्रद्मद्भद्ध ह्स्र क्द्बह्वद्ध क्तद्धद्भ;द्मठ्ठ ह्वद्दद्धड्ड द्बद्दह्नँश्चद्मह्वद्म श्चद्मद्दह्ह्य द्दस्ड्ड्न क्द्मस्द्भ द्वनद्मद्भ स्रद्ध द्बभ्ह्द्धम्द्मद्म द्धस्र;ह्य द्धष्ह्वद्म क्द्म;ह्य द्धठ्ठह्व द्वद्दह्यड्ड द्ब= द्धब्[द्मह्ह्य द्भद्दह्ह्य द्दड्डस्ड्ड्न ठ्ठख्द्यद्भह्य स्रद्ध द्धरुस्नद्मद्धह् क्द्मस्द्भ म्द्मद्गह्द्म स्रद्म ॥द्मद्ध द्वद्दह्यड्ड क्चद्धस्र क्ठ्ठद्मह्लद्म ह्वद्दद्धड्ड द्भद्दह्द्म क्द्मस्द्भ द्वह्वस्रह्य द्यश्वष्/द्म द्गह्यड्ड स्रह्नहृ द्यह्य स्रह्नहृ द्गद्म;ह्द्म ष्ह्वद्म ब्ह्यह्ह्य द्दस्ड्ड्न ड्ढद्यद्ध द्बभ्स्रद्मद्भ क्द्बह्वह्य स्रद्मह्य ॥द्मद्ध स्रर्ड्ढंष्द्मद्भ स्रद्मह्यर्ड्ढं द्धद्य) द्बह्नप्त"द्म] ह्वह्यह्द्म] द्धशत्त्द्मह्व] द्भद्मह्लद्म क्द्मद्धठ्ठ द्गद्मह्व ष्स्क्चह्ह्य द्दस्ड्ड्न ड्ढद्य शरुह्ह्नद्धरुस्नद्मद्धह् स्रद्म द्यद्दद्ध क्ह्वह्नद्गद्मह्व ह्व ब्फ्द्म द्बद्मह्वह्य स्रद्ध द्गह्वत्नद्धरुस्नद्मद्धह् शद्मब्ह्य द्भद्मह्यद्धफ्;द्मह्यड्ड स्रद्मह्य द्बस्द्भह्यद्गद्मह्यड्ढ;द्म ;द्म द्गस्गब्द्मह्यद्गद्मह्यद्धह्व;द्म द्यह्य फ्भ्द्धद्यह् स्रद्दद्म ह्लद्मह्द्म द्दस््न ,ह्यद्यह्य ब्द्मह्यफ् क्द्बह्वह्य द्यश्वष्/द्म द्गह्यड्ड ह्स्नद्मद्म द्यद्गद्मह्ल] द्यड्डद्यद्मद्भ स्रह्य द्यश्वष्/द्म द्गह्यड्ड ह्द्भद्द&ह्द्भद्द स्रह्य फ्ब्ह् क्ह्वह्नद्गद्मह्व ब्फ्द्मह्ह्य द्भद्दह्ह्य द्दस्ड्ड्न

द4ड्ट द्गख्रु+ फ्रु+ष्रु+द्मह्वह्य द्यह्य ह्र;द्धष्ठह् ह्व'द्मह्यष्द्मह्लद्मह्यड्ड स्रद्ध द्धरुस्नद्मद्धह् द्गह्यड्ड श्चब्द्म ह्लद्मह्द्म द्दस्] स्र॥द्मद्ध ह्द्मह्य द्बख्द्भह्य द्वक्रद्यद्मद्द द्गह्यड्ड] द्बभ्द्यह्वह्द्म द्गह्यड्ड द्वद्दह्यड्ड द्बद्म;द्म ह्लद्मह्द्म द्दस्] क्द्मस्द्भ क्ह्वद्मश';स्र :द्ब द्यह्य द्दँद्यह्ह्य] ह्लद्मह्य'द्म द्धठ्ठ[द्मद्मह्ह्य] ष्रु+द्ध&ष्रु+द्ध क्द्म'द्मद्म, द्बभ्स्रंक स्रद्भह्ह्य द्दस्ड्ड क्द्मस्द्भ स्र॥द्मद्ध द्धश्चह्द्मक्द्मह्यड्ड क्द्मस्द्भ द्धह्वद्भद्म'द्मद्मक्द्मह्यड्ड द्गह्यड्ड ड्ढद्य स्रठ्ठद्भ ह्लद्म रुख्ष्ह्ह्य द्दस्ड्ड द्गद्मह्वद्मह्य क्द्मद्यद्गद्मह्व ड्ढद्दद्धड्ड स्रह्य टद्बद्भ कख्क द्बरु+द्म ;द्म कख्कह्वह्य शद्मब्द्म द्दस््न स्रड्ढ;द्मह्यड्ड स्रद्म स्रद्मह्यर्ड्ढं ॥द्म;ड्डस्रद्भ द्भद्मह्यफ् 'द्मद्भद्धद्भ द्गह्यड्ड द्बभ्शह्य'द्म स्रद्भ श्चह्नस्रह्वह्य स्रद्ध ;द्म द्धह्वस्रंक ॥द्मद्धश"; द्गह्यड्ड द्दद्मह्यह्वह्य स्रद्ध क्द्म'द्मड्डस्रद्म ष्ह्व ह्लद्मह्द्म द्दस््न द्गह्वद्मह्यद्धश्चद्धस्रक्रद्यस्र ड्ढद्य द्धरुस्नद्मद्धह् स्रद्म द्गद्धह्व;स्र द्धरुद्बभ्ह्यद्धद्यह्व स्रद्दह्ह्य द्दस्ड्ड] ड्ढद्य रुह्द्भ स्रह्य ब्द्मह्यफ् स्रर्ड्ढंष्द्मद्भ श्चह्नह्वद्मश ह्लद्धह्ह्वह्य] ब्द्मस्कद्भद्ध शद्मब्ह्य] फ्<+द्म [द्मह्लद्मह्वद्म [द्मद्मह्यठ्ठह्वह्य ;द्मह्यफ् ष्ह्द्मह्वह्य स्रद्ध ,ह्यद्यद्ध द्गद्म;ह्द्म, क्द्बह्वह्य द्यद्मस्नद्म द्धब्, द्धक्तद्भह्ह्य द्दस्ड्ड] द्गद्मह्वद्मह्य ;द्द द्यक्तब्ह्द्म, द्वद्दह्यड्ड ह्ल:द्भद्ध द्दद्ध द्धद्गब्ह्वह्य शद्मब्ह्य द्दस्ड्ड ठ्ठह्यशद्ध&ठ्ठह्यशह्द्मक्द्मह्यड्ड स्रद्मह्य श'द्म द्गह्यड्ड स्रद्भ ब्ह्यह्वह्य स्रद्ध ष्द्मह् ॥द्मद्ध द्वह्वस्रह्य द्गह्व द्बद्भ ,ह्यद्यद्ध हृद्मर्ड्ढं द्भद्दह्द्ध द्दस्] द्गद्मह्वद्मह्य क्ष् द्वद्य ष्द्मह् द्गह्यड्ड द्यठ्ठह्यद्द स्रद्ध स्रद्मह्यर्ड्ढं फ्ह्नह्लद्मड्ढड्ड'द्म द्दद्ध ह्वद्दद्धड्ड द्भद्दद्ध्न

द्गद्धरुह्"स्र ;ड्ड= स्रद्मह्य द्बभ्स्रक्वद्धह् ह्वह्य द्धह्लह्ह्वद्म द्वद्ब;द्मह्यफ्द्ध ष्ह्वद्म;द्म द्दस् द्वह्ह्वद्म द्दद्ध द्वनद्मद्ग द्वद्यस्रद्ध द्यह्नद्भम्द्मद्म स्रद्म द्बभ्ष्?द्म ॥द्मद्ध द्धस्र;द्म द्दस्] [द्मद्मह्यद्बरु+द्ध स्रद्ध द्दरु−रुद्ध स्रद्ध द्गह्लष्ख्ह् द्धरुष्टष्द्ध द्गह्यड्ड द्वद्यह्य द्यँ॥द्मद्मब् स्रद्भ द्भ[द्मद्म फ्;द्म द्दस््न द्वद्यस्रह्य ॥द्मद्धह्द्भ द्दद्ध ,ह्यद्यद्ध ह्र;शरुस्नद्मद्म द्दस् ह्लद्दद्मँ हृद्मह्यंकद्ध&द्गद्मह्यंकद्ध फ्रु+ष्रु+द्ध स्रद्ध स्रद्मह्यर्ड्ढं द्बद्दह्नँश्च ह्व द्दद्मह्य द्यस्रह्य] क्द्मद्गह्द्मस्द्भ द्यह्य द्गद्धरुह्"स्र स्रद्मह्य द्यद्मह्यश्चह्वह्य स्रद्म द्यद्दद्ध ह्द्भद्धस्रद्म ह्व द्गद्मब्ख्द्ग द्दद्मह्यह्वह्य द्यह्य द्वक्रद्बह्व द्दद्मह्यह्ह्य द्दस्ड्ड्न क्ह्वद्म<+द्ध रुऊद्मड्ढशद्भ स्रह्य द्दद्मस्नद्म द्गह्यड्ड द्यद्मस्ड्डद्बद्ध द्दह्नर्ड्ढं द्गद्मह्यंकद्भ स्रद्ध] क्ह्वद्ध॥द्मय़ द्बभ्;द्मह्यष्ठह्द्म स्रह्य स्रद्मद्भ.द्म स्रद्धद्गह्द्ध स्रश्वढ्ढ;ख्कद्भ स्रद्ध ष्द्भष्द्मठ्ठद्ध द्दद्ध द्दद्मह्यह्द्ध द्दस््न शह्य द्वह्वद्यह्य द्यद्दद्ध स्रद्मद्ग ह्द्मह्य ब्ह्य ह्वद्दद्धड्ड द्बद्मह्ह्य] ;द्दद्ध ष्द्मह् द्गद्धरुह्"स्र स्रह्य ;= स्रह्य द्यश्वष्/द्म द्गह्यड्ड ॥द्मद्ध द्दस्] शद्द द्धह्लह्ह्वद्म ष्द्दह्नद्गख्घ; द्दस्] द्वह्ह्वद्म द्दद्ध द्बभ्;द्मह्यष्ठह्द्म स्रद्ध स्रह्न'द्मब्ह्द्म ॥द्मद्ध श्चद्मद्दह्द्म द्दस््न ह्लद्धशह्व द्गह्यड्ड ॥द्मब्द्ध&ष्ह्नद्भद्ध ?द्मंकह्वद्मक्द्मह्यड्ड] द्धद्बभ्;&क्द्धद्बभ्; द्बभ्द्यड्डफ्द्मह्यड्ड स्रद्म ह्द्मह्वद्म ष्द्मह्वद्म श्चब्ह्द्म द्दद्ध द्भद्दह्द्म द्दस््न ष्द्मह् स्रद्म शह्फ्रु+ ष्ह्वद्मस्रद्भ ;द्धठ्ठ द्यड्डह्ह्नब्ह्व फ्शद्म द्धठ्ठ;द्म ह्लद्म; ह्द्मह्य द्वद्यद्यह्य क्द्मशह्य'द्म द्बख्.र्द्मं द्धरुस्नद्मद्धह् स्रद्म ठ्ठह्न"द्बद्धद्भ.द्मद्मद्ग द्दद्ध द्दद्मह्यफ्द्म्न क्द्मशह्य'द्मद्मह्यड्ड क्द्मस्द्भ द्वनद्मह्यह्लह्वद्मक्द्मह्यड्ड स्रद्म द्गद्धरुह्"स्र द्बद्भ ष्ह्नद्भद्म द्बभ्॥द्मद्मश&द्बरु+ह्द्म द्दस््न स्रर्ड्ढं ष्द्मद्भ ह्व स्रद्भह्वह्य ब्द्म;स्र स्रंघद्बह्वद्म;ह्यड्ड स्रद्भह्वह्य क्द्मस्द्भ द्यद्म/द्मह्वद्मड्डह्य स्रह्य द्बभ्॥द्मद्मश द्गह्यड्ड द्वह्वस्रद्म द्बख्द्धह् ह्व द्दद्मह्य द्यस्रह्वह्य स्रह्य स्रद्मद्भ.द्म क्द्यक्तब् द्भद्दह्वह्य द्बद्भ स्रर्ड्ढं ब्द्मह्यफ् ष्द्मस्[द्मब्द्म ह्लद्मह्ह्य द्दस्ड्ड क्द्मस्द्भ द्वद्य द्वनद्मह्यह्लह्वद्म स्रद्ध फ्द्गर्द्धं द्यह्य द्गद्धरुह्"स्र स्रद्ध स्रद्मह्यद्गब्ह्द्म ह्लब्द्म ठ्ठह्यह्ह्य द्दस्ड्ड] क्ह्वस्द्धह्स्र द्धशश्चद्मद्भ क्द्बह्वद्ध द्बभ्स्रक्वद्धह् स्रह्य क्ह्वह्नद्यद्मद्भ रुशह्त्न द्दद्ध ?द्मद्मह्स्र द्दद्मह्यह्ह्य द्दस्ड्ड्न र्ड्ढं";र्द्मं] त्त्ह्य"द्म] यद्मह्य/द्म] ॥द्म; क्द्मद्धठ्ठ स्रद्म द्बभ्॥द्मद्मश ॥द्मद्ध द्गह्वत्नद्यड्डरुस्नद्मह्व द्बद्भ ष्ह्नद्भद्म द्बरु+ह्द्म द्दस््न ;द्द द्धशस्रक्वद्धह्;द्मँ ड्ढद्यद्धब्, द्वक्रद्बह्व द्दद्मह्यह्द्ध द्दस्ड्ड्न द्धस्र द्गह्वह्न"; स्रद्मह्य द्यद्दद्ध ठ्ठक्वद्ध"कस्रद्मह्य.द्म क्द्बह्वद्मस्रद्भ द्यद्गरु;द्मक्द्मह्यड्ड द्बद्धद्भरुस्नद्मद्धह्;द्मह्यड्ड स्रह्य द्यद्मस्नद्म ह्द्मब्द्गह्यब् द्धष्क्चद्मह्वह्य स्रद्म क्ह्वह्नह्न॥द्मश ह्वद्दद्ध द्दद्मह्यह्द्म्न द्गह्व ह्ड्ड= स्रद्म द्यह्नद्यड्डश्चद्मब्ह्व स्रद्भ द्यस्रह्वह्य शद्मब्ह्य द्धश्चह्ह्व यद्ग /द्मर्द्गं क्द्मस्द्भ क्/;द्मक्रद्ग स्रह्य ह्क्रश य़द्मह्व द्यह्य ह्लह्नरु+द्म द्दह्नक्द्म द्दस््न ;द्धठ्ठ द्वद्यह्य क्द्बह्वद्म;द्म ह्लद्म द्यस्रह्य ह्द्मह्य द्यड्डद्यद्मद्भ द्गह्यड्ड क्तस्ब्ह्य द्दह्न, द्बद्मफ्ब्द्बह्व क्द्मस्द्भ क्द्यड्डह्ह्नब्ह्व द्यह्य हृह्नंकस्रद्मद्भद्म द्धद्गब् द्यस्रह्द्म द्दस््न


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